Burjis Godrej
बुर्जिस गोदरेज, कार्यकारी निदेशक और सीओओ-फसल संरक्षण व्यवसाय, जीएवीएल गोदरेज एग्रोवेट लिमिटेड

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मुंबई: भारतीय कृषि क्षेत्र ऐतिहासिक मोड़ पर है। एक ओर, इस पर दुनिया की सबसे बड़ी आबादी का पेट भरना है तो वहीं दूसरी ओर, उसे जलवायु परिवर्तन से पैदा अनिश्चितताओं से जूझते हुए इस ज़िम्मेदारी को निभाना होगा। सीधे शब्दों में कहें तो, आज पहले से कहीं अधिक खाद्य उत्पादन की ज़रूरत है जबकि खाद्य उत्पादन कठिन हो गया है।

ऐसे में खाद्य उत्पादन और इसके लक्ष्य को हासिल करने के लिए, हमें एक और क्रांति – डिजिटल क्रांति की ज़रूरत है। कृषि क्षेत्र, भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, लेकिन इसकी चमक खो रही है। इस साल की शुरुआत में जारी भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण 2022-2023 में एक गंभीर चेतावनी को रेखांकित किया।

छोटी-छोटी जोत वाली ज़मीन, ज़रुरत से कम मशीनीकरण और कम उत्पादकता जैसी बाधाओं का ज़िक्र करते हुए, सर्वेक्षण में इन चुनौतियों से निपटने में मदद करने के लिए देश के किसानों के लिए नई दिशा अपनाने ( “पुनर्उन्मुखीकरण” – री-ओरिएंटेशन) का आह्वान किया गया। मुझे लगता है कि डिजिटलीकरण ही वह रामबाण इलाज हो सकता है जिसकी भारत के किसानों को ज़रूरत है।

पारंपरिक तरीके में बदलाव (डिसरप्शन) अपनाना

डिसरप्शन पैदा करने वाली नई डिजिटल प्रौद्योगिकी  ने हमारे जीवन और समाज के हर पहलू को बदल दिया है। लेन-देन से लेकर हमारे यात्रा करने के तरीके तक, डिजिटलीकरण ने मानव जीवन के अनुभव को पूरी तरह से बदल दिया है। संभावनाओं से भरपूर यह प्रौद्योगिकी, कृषि के लिए भी यही बदलाव ला सकती है।

एकदम बुनियादी स्तर पर देखें तो प्रौद्योगिकी, किसानों को मौसम संबंधी अपडेट या उनकी उपज की मौजूदा बाज़ार कीमत या आसानी से ऋण हासिल करने जैसी जानकारी देकर सशक्त बना सकती है। अपेक्षाकृत विकसित स्तर पर, यह उन्हें मिट्टी के स्वास्थ्य की निगरानी करने, संसाधन के उपयोग, फसल की रोपाई और बुवाई चक्र की योजना बनाने में मदद करेगी, जो अप्रत्याशित मौसम के दौर में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है।

यह कृषि को और अधिक दक्ष बनाएगई, जिससे हमारे किसान कम लागत में अधिक उत्पादन कर सकेंगे। उपग्रहों का उपयोग इस बात का एक और अच्छा उदाहरण है कि कृषि को अधिक वहनीय बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग कैसे किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, ऑयल पाम की खेती में, ज़मीन के उपयोग की निगरानी के लिए उपग्रहों को तैनात किया जा सकता है। 

ऑयल पाम की खेती ऐतिहासिक रूप से वनों की कटाई से जुड़ी हुई है, लेकिन आज वन भूमि के साथ सह-अस्तित्व के लिए वहनीय तरीके से वृक्षारोपण किया जा सकता है। वृक्षारोपण के लिए उपयुक्त भूमि की पहचान करने में उपग्रह महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। यह आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ऑयल पाम की खेती की सफलता के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा है। सही ढंग से उपयोग किया गया, प्रौद्योगिकी हमारे किसानों को अधिक लचीला बना सकती है, उनकी उत्पादकता में सुधार कर सकती है, आत्मनिर्भरता, आय और समृद्धि को बढ़ावा दे सकती है।

ग्रामीण स्तर पर सम्पन्नता की एक नई लहर का निर्माण

कृषि के डिजिटलीकरण में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने की क्षमता है। नए कौशल की आवश्यकता पूरी करते हुए, यह नए व्यवसायों के लिए बीज बोएगा। इस क्षेत्र की प्रौद्योगिकी की ज़रूरत को पूरा करते हुए, यह प्रौद्योगिकी कृषि से जुड़े संपूर्ण परितंत्र के निर्माण का नेतृत्व कर सकता है।

इससे नौकरियां पैदा होंगी। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि यह कृषि क्षेत्र में अवसरों की धारणा को बदल देगा और इसे यह ऐसे क्षेत्र में तब्दील कर देगा जिसमें लोग प्रवेश करना चाहेंगे। ऐसा माहौल बनेगा जिसमें अगली पीढ़ी को अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी से अवगत कराया जाएगा और उनके लाभों को समझा जा सकेगा जिससे उन्हें कृषि में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए आकर्षित किया जा सकेगा।

इस तरह, यह ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि उद्यमियों की एक पूरी नई पीढ़ी को जन्म दे सकता है, जिससे आर्थिक और सामाजिक विकास हो सकता है। हालांकि, नवोन्मेष को बढ़ावा देने और कृषि में बदलाव लाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।

नीतिगत समर्थन

अच्छी बात यह है कि कृषि को डिजिटल बनाने के प्रयास शुरू हो चुके हैं। इनमें प्रमुख है, भारत सरकार का डिजिटल कृषि मिशन 2021-25, जिसका उद्देश्य है, कृषि पद्धतियों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस), ब्लॉकचेन, रिमोट-सेंसिंग और जीआईएस प्रौद्योगिकी, ड्रोन और रोबोट जैसी प्रौद्योगिकियों को शामिल करना।

उदाहरण के लिए ड्रोन को लें – ड्रोन कृषि पर परिवर्तनकारी प्रभाव डाल सकते हैं। पहली बात यह कि वे एक बड़े क्षेत्र को कवर कर सकते हैं, फसलों पर पानी से लेकर उर्वरक और कीटनाशकों तक, हर चीज का छिड़काव कर सकते हैं, जिससे खेत की सिंचाई और उर्वरक बनाने के लिए लोगों की ज़रुरत कम हो जाएगी। साथ ही, पानी और कीटनाशक जैसे संसाधनों को फसलों तक अधिक सटीकता से पहुंचाया जा सकता है, जिससे उनका अधिक विवेकपूर्ण उपयोग किया जा सकता है।

सरकार द्वारा प्रेसिज़न फार्मिंग (परिशुद्ध कृषि) के लिए इसके उपयोग को बढ़ावा देने से, किसानों को कम खेतिहर मजदूरों की ज़रुरत होगी और संसाधनों के संरक्षण में मदद मिलेगी। परिचालन और वित्तीय दक्षता बढ़ाने में सहायता कर, यह किसानों को लंबे समय तक मिट्टी के स्वास्थ्य को संरक्षित करने में लाभान्वित कर सकता है, जिससे कृषि अधिक वहनीय हो जाएगी और खेती में डिजिटलीकरण की सफलता की कुंजी होगी – जागरूकता। जागरूकता के बिना भारत के किसान प्रौद्योगिकी की क्षमता का अधिक से अधिक लाभ नहीं उठा पाएंगे। जागरूकता के बिना भारत खाद्य सुरक्षा हासिल नहीं कर पाएगा।

 जागरूकता बढ़ाने के लिए एक फास्ट-ट्रैक रणनीति की आवश्यकता होगी। लेकिन आख़िरकार, सार्वजनिक-निजी भागीदारी की इस क्षेत्र को आधुनिक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका होगी। हालांकि हमें ऐसा करते हुए कृषि में ग्राहक को केंद्र में रखने के मूल सिद्धांत को याद रखना चाहिए – अर्थात किसान को मुख्य भूमिका मिलनी चाहिए।