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    कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए दी जाने वाली वैक्सीन की 2 खुराकों में पहले 4 हफ्ते की गैप, फिर 6 हफ्तों की गैप बताई गई थी. अब 16 हफ्तों की गैप का एलान किया गया है. आखिर कैसे तय होती है ये गैप और कौन इसे निर्धारित करता है? प्रश्न यह भी उठता है कि क्या वैक्सीन की अनुपलब्धता या कमी होने की वजह से वैक्सीन की 2 खुराकों के बीच अंतर तो नहीं बढ़ा दिया जाता? आखिर समय के अंतर का वैज्ञानिक आधार क्या है? अलग-अलग किस्म की वैक्सीन के लिए भिन्न समयावधि का अंतर रखा गया है. 

    देश में जब 16 जनवरी को टीकाकरण अभियान शुरू किया गया था, तब कोविशील्ड की दोनों डोज के बीच 4 से 6 सप्ताह का अंतर रखा जा रहा था. मार्च में इस गैप को बढ़ाकर 4 से 8 सप्ताह कर दिया गया. यहां तक तो ठीक था लेकिन अब केंद्र सरकार ने सरकारी समूह एनटीएजीआई की सिफारिश को स्वीकार करते हुए कोविशील्ड वैक्सीन की 2 खुराकों के बीच अंतर बढ़ाकर 12 से 16 हफ्ते कर दिया है. तात्पर्य यह कि दो खुराक के बीच 3 से 4 महीने का अंतर रखा जा सकता है. 

    क्या कुछ ऐसा है कि इतने बड़े अंतर के दौरान शरीर में कोरोना से मुकाबले के लिए एंटीबॉडी बन जाती है तथा ज्यादा गैप देने से दूसरा टीका और प्रभावी हो जाता है? इस बारे में ठीक तरह से स्पष्टीकरण मिलना चाहिए. खास तौर पर मेडिकल विशेषज्ञों की राय सामने आनी चाहिए. लोगों को यह भी आशंका है कि यदि वैक्सीन की पहली खुराक लेने के बाद अगली खुराक के लिए 12 से 16 सप्ताह तक इंतजार किया और कहीं इस दौरान कोरोना संक्रमण ने घेर लिया तो फिर क्या होगा? 

    क्या ऐसी हालत में इलाज हो जाने के बाद कुछ समय का अंतर देते हुए पुन: दोनों टीके लेने होंगे? वैक्सीन की 2 खुराक के बीच क्या 12 से 16 हफ्तों का अंतर ज्यादा नहीं है? यदि यह सही है तो पहले गैप कम क्यों रखा गया था? यह बात और भी अच्छी है कि अगस्त से दिसंबर तक देशवासियों को 216 करोड़ खुराक मिलेंगी तथा 2 नहीं, बल्कि 8 वैक्सीन का विकल्प होगा.