‘लोकतंत्र में कोई भी संस्था पूर्ण नहीं, सभी जज संविधान के सिपाही’, कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना पर बोले CJI चंद्रचूड़

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    नई दिल्ली: हर साल 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाया जाता है। उससे पहले इसकी पूर्व संध्या पर सुप्रीम कोर्ट में एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में कानून मंत्री किरेन रिजिजू के साथ साथ मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ भी शामिल हुए। इस दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि कॉलेजियम सिस्टम की आलोचना होती है, लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि सभी जज संविधान के सिपाही हैं। 

    दिल्ली में कॉलेजियम की आलोचना पर सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, लोकतंत्र में कोई भी संस्था पूर्ण नहीं है, लेकिन हम संविधान के मौजूदा ढांचे के भीतर काम करते हैं जैसा कि इसकी व्याख्या की जाती है और हमें दिया जाता है। चीफ जस्टिस ने कहा कि, लोगों का हित सिर्फ जनहित याचिका से नहीं होता है बल्कि इस बात से होता है कि न्याय तक सभी की पहुंच हो।

    डी वाई चंद्रचूड़ ने इस दौरान वकीलों के ड्रेस कोड पर भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि, वकील अभी औपनिवेशिक काल की पोशाक पहन रहे हैं। कम से कम गर्मी के लिए किसी बेहतर ड्रेस कोड पर विचार होना चाहिए, जो पेशे के हिसाब से गरिमापूर्ण भी हो।

    वहीं, दिल्ली में आयोजित संविधान दिवस समारोह में CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि, आने वाले सप्ताह से सुप्रीम कोर्ट की प्रत्येक पीठ 10 जमानत याचिकाओं पर सुनवाई करेगी, इससे पहले 10 स्थानांतरण याचिकाएं होंगी। सुप्रीम कोर्ट में लगभग 3000 स्थानांतरण याचिकाएँ लंबित हैं। उन्होंने कहा कि, चूंकि अभी हमारी 13 पीठें चल रही हैं, हमारा प्रयास है कि शीतकालीन अवकाश से पहले प्रतिदिन 130 स्थानांतरण याचिकाओं का निस्तारण किया जाए। SC यह सुनिश्चित करना चाहता है कि जमानत के मामले सूचीबद्ध हों और शीघ्रता से निपटाए जाएं। 

     आपसी टकराव का कोई फायदा नहीं: किरेन रिजिजू 

    वहीं, इस दौरान कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि, 8 साल से अधिक के कार्यकाल में सरकार ने न्यायपालिका के सम्मान को चोट पहुंचाने वाली कोई बात नहीं की। हम न्यायपालिका को अधिक मजबूत बनाने के लिए सब कुछ करेंगे। कार्यपालिका और न्यायपालिका एक ही माता-पिता (संविधान) की संतान हैं। आपसी टकराव का कोई फायदा नहीं।

    रिजिजू  ने कहा कि दुनिया के संविधानों में सबसे विशाल होते हुए भी भारतीय संविधान हमेशा की तरह जीवन्त और प्रासंगिक बना हुआ है, क्योंकि उसमें लचक और कठोरता का अनोखा संगम है। उन्होंने जोर दिया कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नागरिक होने के नाते, यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम संविधान की मूल भावना को जानें, ताकि सार्थक रूप से अपने अधिकारों को समझ सकें।