
नई दिल्ली: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम (Indian freedom struggle) के इतिहास में महान शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु (Shaheed Bhagat Singh, Sukhdev and Rajguru) का नाम पूरे सम्मान एवं आदर के साथ लिया जाता है। इन्ही महान क्रांतिकारियों की याद में की याद में हर साल 23 मार्च को पूरे देश में शहीद दिवस (Martyrs Day) मनाया जाता है। लोगों के दिलों में आजादी की ज्वाला प्रज्ज्वलित करने वाले महान क्रांतिकारी मात्र 23 वर्ष और पांच महीने की उम्र में ही शहीद हो गए थे। 23 वर्ष की छोटी सी उम्र में ही देशभक्ति की लहर जगाने के लिए लिखे गए उनके क्रांतिकारी विचार बहुत महान हैं। शहीद दिवस युवा स्वतंत्रता सेनानियों भगत सिंह, सुखदेव थापर और शिवराम राजगुरु के देश के प्रति बलिदान का प्रतीक है।
समय से पहले दी गई फांसी
भारत माता के इन सपूतों को अंग्रेजों ने 23 मार्च 1931 को फांसी दी थी। भारत मां के बेटों को अंग्रेजों ने लाहौर षड़यंत्र मामले में मौत की सजा सुनाई गई थी और 24 मार्च, 1931 को फांसी देने का आदेश दिया गया था। हालांकि, शेड्यूल से 11 घंटे पहले यानी 23 मार्च, 1931 को शाम 7:30 बजे फांसी दे दी गई थी।
बात तीन फरवरी 1928 की है। जब साइमन कमीशन भारत आया था। जिसके विरोध में लाहौर में 30 अक्टूबर 1928 को एक बड़ी घटना घटी जब लाला लाजपतराय के नेतृत्व में साइमन का विरोध कर रहे युवाओं को बेरहमी से पीटा गया। अंग्रेजों की लाठियों से लाला लाजपत राय को गहरी चोट लगी और इस कारण 17 नवंबर 1928 को उनकी मौत हो गई।
इन जांबाजों को बदले में मिली थी फांसी
लाला लाजपत राय की मृत्यु से सारा देश भड़क उठा। अंग्रेजों को सबक सिखाने के लिए चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने देश के लाल की मौत का बदला लेने का निर्णय लिया। उन्होंने जेम्स ए स्कॉट को फांसी देने की योजना बनाई। स्कॉट ब्रिटिश शासन के दौरान पुलिस अधीक्षक थे और अपनी क्रूरता के लिए कुख्यात थे। यह स्कॉट ही था जिसने पुलिस को प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज करने का आदेश दिया था और राय पर व्यक्तिगत रूप से हमला किया था, जिससे जान को खतरा था।
इन जांबाज देशभक्तों ने लालाजी की मौत के ठीक एक महीने बाद अपनी प्रतिज्ञा पूरी कर ली और 17 दिसंबर 1928 को ब्रिटिश पुलिस के अफसर को गोली से उड़ा दिया। हालांकि, यह एक सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन पी सॉन्डर्स थे, जो गलती से मारे गए थे। तीन स्वतंत्रता सेनानियों पर सांडर्स की हत्या का आरोप लगाया गया था। उन्हें सांडर्स की हत्या के मामले में ही राजगुरु, सुखदेव और भगत सिंह को फांसी की सजा सुनाई गई।
अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करते रहेंगे
भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव केवल 23 साल के थे जब उन्हें सांडर्स की हत्या के लिए फांसी दी गई थी। स्वतंत्रता संग्राम में उनका योगदान अतुलनीय है और पीढ़ियों को अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित करता रहेगा।