Transgender teacher removed from service after her gender identity was revealed, approaches Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट पहुंची ट्रांसजेंडर महिला

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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने बुधवार को कहा कि वह देशभर में नफरत फैलाने वाले भाषणों (Hate Speech) से निपटने के लिए एक प्रशासनिक तंत्र स्थापित करने पर विचार कर रहा है। साथ ही उसने स्पष्ट किया कि वह व्यक्तिगत मामलों से नहीं निपट सकता क्योंकि इससे मामलों की बाढ़ आ जायेगी।

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति एस. वी. एन भट्टी की पीठ ने कहा कि नफरत फैलाने वाले भाषण को अदालत ने परिभाषित किया है और सवाल कार्यान्वयन और यह समझने का है कि इसे कैसे लागू किया जाये। पीठ ने कहा, ‘‘हम व्यक्तिगत पहलुओं से नहीं निपट सकते। यदि हम अलग-अलग मामलों से निपटना शुरू करेंगे तो इससे मामलों की बाढ़ आ जाएगी। हम बुनियादी ढांचा या प्रशासनिक तंत्र स्थापित करना चाहते हैं। यदि उसमें कोई उल्लंघन होता है तो आप संबंधित उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकते हैं।”

पीठ ने कहा कि भारत जैसे बड़े देश में, समस्याएं तो होंगी लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारे पास जरूरत पड़ने पर कार्रवाई करने के लिए पर्याप्त प्रशासनिक तंत्र है। शीर्ष अदालत ने नोडल अधिकारियों की नियुक्ति न होने पर तमिलनाडु, केरल, नगालैंड और गुजरात राज्यों को भी नोटिस जारी किया।

उच्चतम न्यायालय ने पहले कहा था कि नफरत फैलाने वाले भाषण को परिभाषित करना जटिल है लेकिन इससे निपटने में असली समस्या कानून और न्यायिक घोषणाओं के क्रियान्वयन में है। उच्चतम न्यायालय ने संविधान में भारत के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की परिकल्पना का हवाला देते हुए पिछले साल 21 अक्टूबर को दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को निर्देश दिया था कि वे नफरत भरे भाषणों के दोषियों के खिलाफ शिकायत दर्ज होने का इंतजार किये बिना सख्त कार्रवाई करें। (एजेंसी)