Gujarat court refuses to change order prohibiting Rath Yatra in Ahmedabad
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    -सीमा कुमारी

    सनातन धर्म के चार धामों में से एक जगन्नाथ धाम धाम है, जो ओडिशा के पुरी में स्थित है। असंख्य वर्षों से हर साल जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है, जो विश्वप्रसिद्ध है। पुरी, शंख क्षेत्र, श्रीक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। प्रभास खण्ड ग्रन्थ एवं अन्य पुराणों में भी जगन्नाथ जी की रथयात्रा के बारे में वर्णित है।

    कहते हैं कि वर्षों बाद कुरुक्षेत्र में जब ब्रजवासियों की भगवान श्रीकृष्ण से भेंट हुई, तो वे भगवान को वृन्दावन ले जाने का हठ करने लगे, यहां तक कि ब्रज की गोपियां श्री कृष्ण के रथ को खींचकर वृन्दावन की ओर ले जाने लगीं। जानकार बताते हैं कि रथ यात्रा भगवान गोपीनाथ श्रीकृष्ण की मधुर-रस वाली एक विशिष्ट लीला है। 

    जगन्नाथ रथ यात्रा हर वर्ष अषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को निकाली जाती है। इस साल जगन्नाथ यात्रा 1 जुलाई को शुरू होगी। ओडिशा के पुरी में वैष्णव संप्रदाय को मानने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है। यहां राधा और श्रीकृष्ण की युगल मूर्ति के प्रतीक स्वयं भगवान जगन्नाथ जी हैं। शास्त्रों और पुराणों में भी रथयात्रा की महिमा बताई गई है।

    ब्रह्माण्ड पुराण में उल्लेख आता है कि- “रथे चागमनं दृष्ट्वा पुनर्जन्म न विद्यते” अर्थात्- जो भी मनुष्य रथ के ऊपर बैठे हुए भगवान श्री जगन्नाथ जी का दर्शन करता है उसका पुनर्जन्म नहीं होता, उस श्रद्धालु को मोक्ष मिल जाता है। इसलिए जगतवासियों के कल्याणार्थ उन्हें दर्शन देने के लिये, जन्म-मृत्यु रूपी बंधनों से मुक्ति दिलाने के लिए, श्री भगवान रथ में बैठकर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं।

    जो व्यक्ति भगवान जगन्नाथ जी का दर्शन करते हुए, प्रणाम करते हैं, वे सीधे भगवान श्री विष्णु के ‘उत्तम धाम’ को जाते हैं। कहते हैं कि जो श्रद्धालु ‘गुंडिचा मंडप” में रथ पर विराजमान श्री कृष्ण, बलराम और सुभद्रा देवी के दर्शन दक्षिण दिशा को आते हुए करते हैं, वे मोक्ष को प्राप्त होते हैं। मान्य है कि, रथयात्रा एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान जगन्नाथ चलकर जनता के बीच आते हैं और उनके सुख दुख में सहभागी होते हैं।

    ऐसे शुरू होती है रथयात्रा

    रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम, उनके पीछे पद्म ध्वज रथ पर बहिन सुभद्रा और सुदर्शन चक्र और अंत में गरुण ध्वज पर या नंदीघोष नाम के रथ पर भगवान जगन्नाथ जी चलते हैं। तालध्वज रथ 65 फीट लंबा, 65 फीट चौड़ा और 45 फीट ऊंचा है। इसमें 7 फीट व्यास के 17 पहिए लगे होते हैं।

    बलभद्र जी का रथ तालध्वज और सुभद्रा जी का रथ को देवलन जगन्नाथ जी के रथ से कुछ छोटे हैं। शाम तक ये तीनों ही रथ मंदिर में जा पहुंचते हैं। अगले दिन भगवान रथ से उतर कर मंदिर में प्रवेश करते हैं और सात दिन वहीं रहते हैं। गुंडीचा मंदिर में 9 दिनों भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने के लिए भक्तों का तांता लगा होता है इसे आड़प दर्शन कहा जाता है।

    रथयात्रा का दिव्य प्रसाद

    भगवान जगन्नाथ के प्रसाद को महाप्रसाद कहा जाता है। पहली बार महाप्रभु बल्लभाचार्य ने भगवान जगन्नाथ के प्रसाद को महाप्रसाद कहा तभी से इसे ‘महाप्रसाद’ कहा जाता है। पौराणिक कहानियों में उल्लेख मिलता है कि महाप्रभु बल्लभाचार्य की निष्ठा की परीक्षा लेने के लिए एकादशी व्रत के दिन पुरी पहुंचने पर मंदिर में ही किसी ने प्रसाद दे दिया।

    महाप्रभु ने प्रसाद हाथ में लेकर एक दिन बिता दिया और उनको भूख नहीं लगी। अगले दिन द्वादशी को व्रत की समाप्ति पर उस प्रसाद को ग्रहण किया और उस प्रसाद को महाप्रसाद कहा। यहां विशेष रूप से नारियल, लाई, गजामूंग और मालपुआ का प्रसाद विशेष रूप से इस दिन मिलता है।