बड़े मियां आलू, छोटे मियां प्याज नखरों के सरताज आती ही नहीं लाज

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज(Nishanebaaz) कहावत है- बड़े मियां तो बड़े मियां, छोटे मियां सुभान अल्ला! आलू और प्याज दोनों ही नखरे दिखा रहे हैं, कभी ये महंगा तो कभी वो महंगा! इनके बगैर रसोई में रौनक ही नहीं रहती. प्याज के तड़के के बगैर सब्जी या दाल का स्वाद ही नहीं आता. आलू के कॉम्बिनेशन के बगैर कोई सब्जी ढंग से बनती ही नहीं. आलू का गोभी, बैंगन, बरबटी, लौकी व तमाम हरी सब्जियों के साथ अटूट गठबंधन है. आलू का पराठा, आलू पोहा, आलू भजिया, आलू बोंडा, आलू चिप्स, फ्रेंच फ्राइज हर जगह आलू है. आलू में दम है, तभी तो आलूदम बनता है! उपवास में भी आलू का हलुआ, आलू वाला साबूदाना, आलू सेव वाला फलाहारी चूड़ा खाया जाता है.’’ हमने कहा, ‘‘आलू की तारीफ करते-करते आप प्याज को मत भूलिए.

यूं तो प्याज सफेद और लाल रंग का होता है लेकिन भाव चढ़ने पर वह गुस्से में लाल-पीला हो जाता है. जब प्याज महंगा हो जाए तो रेस्टोरेंट में वेटर प्याज के लच्छों की बजाय ग्राहक के सामने मूली-गाजर के टुकड़े रख जाता है. प्याज छीलते समय गृहिणी की आंखों में आंसू आ जाते हैं और जब प्याज बेहद सस्ता हो जाता है तो किसानों की आंखों में खून उतर आता है. वे गुस्से में आकर प्याज की फसल सड़क पर फेंक देते हैं. अभी तो प्याज सेंचुरी मार रहा है.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, देश की राजनीति भी प्याज की परतों के समान है. परतें उतारते चले जाओ, अंत में कुछ नहीं मिलेगा. जब प्याज महंगा होता है तो सरकार का सिंहासन डोलने लगता है. नमक और प्याज के साथ रोटी खाने वाले गरीब की आह से सत्ताधारी कांप उठते हैं. इलेक्शन के समय प्याज महंगा होना तो और भी खतरनाक है.

ऐसे में सरकार के हाथ-पैर फूल जाते हैं. वह तुरंत विदेश से प्याज मंगाने में जुट जाती है. आम तौर पर जब बाहरी देशों से प्याज की खेप लेकर जहाज मुंबई या गुजरात के बंदरगाहों पर आते हैं, तब तक अपने यहां की प्याज की नई फसल आ जाती है. प्याज का महत्व बादशाह अकबर के जमाने से है. उनके नौ रत्नों में से एक का नाम मुल्ला-दो-प्याजा था. वे अवश्य दिन में 2 प्याज खाया करते होंगे. जो सनातनी लोग प्याज-लहसुन छूते तक नहीं, उन्हें प्याज के महंगे-सस्ते होने से कोई फर्क नहीं पड़ता. जब प्याज बहुत महंगा हो जाए तो प्याज भरी पारदर्शी थैली लेकर लेकर सामने से निकलिए. पड़ोसियों की जान जल जाएगी.’’