पड़ोसी ने हमसे कहा, निशानेबाज, (Nishanebaaz) अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) पर भारत ही नहीं, समूचे विश्व की हर उम्र की महिलाओं ने आत्म गौरव की अनुभूति की. उन्हें खुशी हुई कि यह उनका दिवस है क्योंकि पुरुषों का तो कोई दिवस ही नहीं होता. जिन महिलाओं को उनके पति ने हैपी वूमेंस डे कह कर बधाई दी उससे कहा, गया- कोरी बधाई काफी नहीं है. हमें अच्छी सी गिफ्ट चाहिए. अखबारों में ज्वेलर्स ने विज्ञापन देकर हमें बधाई दी है. चलो वहां कुछ खरीदारी हो जाए. वहीं से किसी मॉल में बढ़िया साड़ी खरीद देना. खरीदेंगी हम तुम बक्से संभालना.’’
हमने कहा, ‘‘महिलाओं का महत्व हर विवेकी व्यक्ति को समझना चाहिए वह मकान को घर बनाती है इसीलिए होम मेकर कहलाती है. पत्नी जब मायके चली जाती है तो बिन घरनी, घर भूत का डेरा बन जाता है. महिला सुरुचि संपन्न होती हैं और घर को सजाती हैं, वे यदि नौकरी करती हैं तो अपनी प्रोफेशनल लाइफ (Professional Life) और घरेलू लाइफ के बीच आदर्श संतुलन बनाकर चलती है. महिलाओं का गुणगान करते हुए कहा गया है- यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमंते तत्र देवता. जिन घरों में नारियों का सम्मान होता है और वे प्रसन्न रहती हैं, वहां देवता निवास करते हैं.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, महिलाओं ने तो राजनीति से लेकर एवरेस्ट के शिखर तक की ऊंचाई तय कर ली.
शिक्षा, प्रशासन, उद्योग, व्यवसाय, बैकिंग, चिकित्सा, विज्ञान जैसे हर क्षेत्र में नाम कमाया. एस्ट्रोनाट के रूप में अंतरिक्ष की सैर की. यूएस में पहली बार कोई महिला वाइस प्रेसीडेंट बनी. इतना, सब होते हुए भी पुरुष प्रधान मानसिकता किसी महिला के उत्कर्ष को बर्दाश्त नहीं कर पाती. जितना धैर्य और सहनशील महिला में होती हैं उतनी पुरुषों में नहीं होती. महिला दिवस की सार्थकता इसी में है कि पुरुष उन्हें बराबरी का हक व सम्मान हर दिन दें और उन्हें प्रसन्न व संतुष्ट रखें तभी आदर्श समाज बन पाएगा. क्यों न हम हर दिन को महिला दिवस का रूप दें और मां, बहन, पत्नी व बेटी के रूप में उनका यथोचित मान दें!’’