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जानेमाने शायर गुलजार साहब का असली नाम 'संपूर्ण सिंह कालरा' है। उनका जन्म 18 अगस्त, 1934 को झेलम जिले के दीना गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्‍तान में है। गुलजार साहब अपने कॉलेज के दिनों से ही सफेद कपड़े पहन रहे हैं।
जानेमाने शायर गुलजार साहब का असली नाम 'संपूर्ण सिंह कालरा' है। उनका जन्म 18 अगस्त, 1934 को झेलम जिले के दीना गांव में हुआ था, जो अब पाकिस्‍तान में है। गुलजार साहब अपने कॉलेज के दिनों से ही सफेद कपड़े पहन रहे हैं।
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गुलजार साहब फिल्मों में आने से पहले गैराज मकेनिक के तौर पर काम किया करते थे। गुलजार साहब को बचपन से ही लिखने का बड़ा शौक था। लेकिन, उनके पिता को यह पसंद नहीं था। फिर भी उन्होंने अपना लिखने का शौक जारी रखा और आज उनकी लिखी हुई शायरी लोगों की ज़ुबान पर है।
गुलजार साहब फिल्मों में आने से पहले गैराज मकेनिक के तौर पर काम किया करते थे। गुलजार साहब को बचपन से ही लिखने का बड़ा शौक था। लेकिन, उनके पिता को यह पसंद नहीं था। फिर भी उन्होंने अपना लिखने का शौक जारी रखा और आज उनकी लिखी हुई शायरी लोगों की ज़ुबान पर है।
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उन्होंने साल 1961 विमल रॉय के साथ असिसटेंट का काम किया।  बाद में उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी और हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर भी काम किया।
उन्होंने साल 1961 विमल रॉय के साथ असिसटेंट का काम किया। बाद में उन्होंने ऋषिकेश मुखर्जी और हेमंत कुमार के सहायक के तौर पर भी काम किया।
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गुलजार साहब ने साल 1963 में रिलीज हुई फिल्म 'बंदिनी' के लिए अपना पहला गाना 'मोरा गोरा अंग लेई ले' लिखा था। यह गाना सुपरहिट साबित हुआ। साल 1971 में फिल्म 'मेरे अपने' के ज़रिये निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा। बंगाली फिल्म 'अपनाजन' की रीमेक थी।
गुलजार साहब ने साल 1963 में रिलीज हुई फिल्म 'बंदिनी' के लिए अपना पहला गाना 'मोरा गोरा अंग लेई ले' लिखा था। यह गाना सुपरहिट साबित हुआ। साल 1971 में फिल्म 'मेरे अपने' के ज़रिये निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा। बंगाली फिल्म 'अपनाजन' की रीमेक थी।
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 गुलजार साहब की अधिकतर फिल्मों में फ्लैशबैक देखने को मिलता है। उनका मानना है कि अतीत को दिखाए बिना फिल्म पूरी नहीं हो सकती।
गुलजार साहब की अधिकतर फिल्मों में फ्लैशबैक देखने को मिलता है। उनका मानना है कि अतीत को दिखाए बिना फिल्म पूरी नहीं हो सकती।
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गुलजार साहब ने साल 1973 में रिलीज हुई फिल्म 'कोशिश' के लिए 'साइन लैंग्वेज' सीखी थी। क्योंकि ये फिल्म 'मूक-वधिर' विषय पर थी। इस फिल्म में संजीव कुमार और जया भादुड़ी थे।
गुलजार साहब ने साल 1973 में रिलीज हुई फिल्म 'कोशिश' के लिए 'साइन लैंग्वेज' सीखी थी। क्योंकि ये फिल्म 'मूक-वधिर' विषय पर थी। इस फिल्म में संजीव कुमार और जया भादुड़ी थे।
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गुलजार साहब के लिखे हुए बाल गीत आज भी लोगों को याद हैं। जिनमें 'हम को मन की शक्ति देना दाता, मन विजय करें' और 'जंगल-जंगल बात चली पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है फूल खिला है' शामिल हैं। इन गानों को सुनकर हर कोई अपने बचपन को याद करने लग जाता है।
गुलजार साहब के लिखे हुए बाल गीत आज भी लोगों को याद हैं। जिनमें 'हम को मन की शक्ति देना दाता, मन विजय करें' और 'जंगल-जंगल बात चली पता चला है, चड्ढी पहन के फूल खिला है फूल खिला है' शामिल हैं। इन गानों को सुनकर हर कोई अपने बचपन को याद करने लग जाता है।
8/10
गुलजार साहब उर्दू में लिखना पसंद करते हैं। वहीं, उन्हें टेनिस खेलना बेहद पसंद है, और वे सुबह टेनिस जरूर खेलते हैं।
गुलजार साहब उर्दू में लिखना पसंद करते हैं। वहीं, उन्हें टेनिस खेलना बेहद पसंद है, और वे सुबह टेनिस जरूर खेलते हैं।
9/10
गुलजार साहब को  20 बार फिल्मफेयर तो 5 राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें साल 2010 में फिल्म 'स्लमडॉग मिलेनेयर' के गाने 'जय हो' के लिए ग्रैमी अवार्ड भी मिला था। भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए साल 2004 में उन्हें देश के तीसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। वहीं, उन्हें साल 2013 में दादा साहेब फालके अवॉर्ड से भी नवाज़ा जा चुका है।
गुलजार साहब को 20 बार फिल्मफेयर तो 5 राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें साल 2010 में फिल्म 'स्लमडॉग मिलेनेयर' के गाने 'जय हो' के लिए ग्रैमी अवार्ड भी मिला था। भारतीय सिनेमा में उनके योगदान को देखते हुए साल 2004 में उन्हें देश के तीसरे बड़े नागरिक सम्मान पद्मभूषण से सम्मानित किया गया। वहीं, उन्हें साल 2013 में दादा साहेब फालके अवॉर्ड से भी नवाज़ा जा चुका है।
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गुलजार साहब ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 'कोशिश', 'परिचय',  'मेरे अपने', 'अचानक', 'खूशबू', 'आंधी', 'मौसम', 'किनारा', 'मीरा', 'किताब', 'नमकीन', 'अंगूर', 'इजाज़त', 'लिबास', 'लेकिन', 'माचिस' और 'हू तू तू' जैसी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया है।
गुलजार साहब ने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में 'कोशिश', 'परिचय', 'मेरे अपने', 'अचानक', 'खूशबू', 'आंधी', 'मौसम', 'किनारा', 'मीरा', 'किताब', 'नमकीन', 'अंगूर', 'इजाज़त', 'लिबास', 'लेकिन', 'माचिस' और 'हू तू तू' जैसी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया है।