केंद्र शासित प्रदेशों में LG या प्रशासन ही ताकतवर

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    केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों (CM) की कथा ही रही है कि वे सिर्फ नाम के सीएम हैं और उनके प्रदेश में सारे अधिकार उपराज्यपाल के हाथों में केंद्रित रहते हैं. कितने ही दशकों से ये मुख्यमंत्री ऐसी लाचारी झेलते रहे लेकिन उन्होंने चूं तक नहीं की. दिल्ली के चौधरी ब्रह्म प्रकाश से लेकर शीला दीक्षित (Sheila Dikshit) तक किसी भी सीएम ने इस बारे में आवाज नहीं उठाई लेकिन जब आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अधिकारों की मांग को लेकर संघर्ष की भूमिका अपनाई.

    पहले उनका टकराव तत्कालीन उपराज्यपाल नजीब जंग से चलता रहा. केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने मुख्यमंत्री रहते हुए भी सड़क पर धरना दिया था और बाद में उपराज्यपाल के निवास में अपने सहयोगियों के साथ जाकर धरने पर बैठे थे. केजरीवाल चाहते थे कि देश के अन्य मुख्यमंत्रियों जैसे अधिकार उन्हें भी हासिल हों लेकिन सार अधिकारी स्वयं को सिर्फ उपराज्यपाल के प्रति जवाबदेह मानकर उनके आदेशों का पालन करते थे. केजरीवाल की कोई भी नहीं सुनता था. दिल्ली पुलिस भी वहां के सीएम के अधीन नहीं है. जब से अनिल बैजल उपराज्यपाल बने तबसे तनाव कुछ कम हुआ है. फिर भी केजरीवाल का असंतोष शून्य हो जाए तो कैसे काम चलेगा. केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल ही सब कुछ है.

    पुडुचेरी में किरदा बेदी व नारायणसामी का टकराव

    पुडुचेरी में भी पूर्व मुख्यमंत्री नारायणसामी और तत्कालीन उपराज्यपाल किरण बेदी (Kiran Bedi) के बीच काफी कटुता बनी रही. देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी को जब पुडुचेरी का लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाया गया तो उनका वही पुलिसिया अंदाज कायम रहा. मुख्यमंत्री का आरोप था कि बेदी हमेशा सरकारी कामकाज में हस्तक्षेप करती हैं, उनकी राजनीति में दखलंदाजी बनी रही है और वे सरकार के खिलाफ साजिश रचती रही हैं. आखिर में कांग्रेसी मुख्यमंत्री नारायणसामी के खेमे में सेंध लगाने का काम हुआ और कांग्रेस के विधायक फोड़े गए. इसके पहले ही केंद्र ने किरण बेदी को वापस बुला लिया और उनकी जगह तेलंगाना की राज्यपाल तमिलराई सुंदरराजन को पुडुचेरी का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया.

    केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों की यही स्थिति अन्यत्र भी है. वे स्वयं को अधिकारों के मामले में विवश पाते हैं तथा देश के 28 राज्यों के सीएम की तुलना में स्वयं को कम पाते हैं. दादा नगर हवेली में प्रशासक हैं वहां भी पटेल-डेलकर के बीच खींचतान है. जो नेता कुछ काम करने की ख्वाहिश रखता है वह केंद्र शासित प्रदेश में मजबूर होकर रह जाता है क्योंकि वहां का प्रशासन उपराज्यपाल या प्रशासक के निर्देश पर ही काम करता है. मुख्यमंत्रियों के अधिकार अत्यंत सीमित या नहीं के बराबर रह जाते हैं. ऐसी हालत में निरंतर अंतर्द्वंद जारी है.

    दिल्ली के उपराज्यपाल को और शक्तिशाली बनाया जाएगा

    पहले ही केंद्र शासित प्रदेशों में उराज्यपाल काफी अधिकार संपन्न हैं. इसके बावजूद केंद्र सरकर ने संसद में एनसीटी एक्ट से जुड़ा एक विधेयक पेश किया है जिसके तहत दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) के अधिकारों में और बढ़ोतरी होगी. इससे नाराज होते हुए दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने केंद्र पर निशाना साधते हुए ट्वीट किया कि बीजेपी को दिल्ली के लोगों ने बुरी तरह नकार दिया. विधानसभा में बीजेपी की सिर्फ 8 सीट हैं और एमसीडी उपचुनाव में वह एक भी सीट नहीं जीत पाई. ऐसी हालत में बीजेपी अब लोकसभा में बिल लाकर दिल्ली की चुनी हुई सरकार की शक्तियां कम करने की फिराक में है. यह विधेयक संविधान पीठ के फैसले के विपरीत है.