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अभी से इस निष्कर्ष पर पहुंचना जल्दबाजी होगी कि विपक्षी दलों का ‘इंडिया’ गठबंधन ताश के पत्तों के महल के समान बिखर जाएगा. यह टूटनेवाला नहीं है लेकिन जिस तरह का परिदृश्य अभी नजर आ रहा है उसमें गठजोड़ के प्रमुख घटक दल अधिकतम सीटों पर अपनी दावेदारी हासिल करने के लिए कांग्रेस पर जबरदस्त दबाव बनाते हुए सौदेबाजी कर रहे हैं. चाहे टीएमसी हो या आम आदमी पार्टी दोनों ही तीखे तेवर दिखा रही हैं. जो पार्टियां जोरशोर से इंडिया गठबंधन में शामिल हुई थीं, वह बेहद बचकानी दलीलें देकर अकेला चलने की बात कहने लगी है.

ममता बनर्जी और भगवंत मान ने अपने राज्यों में कांग्रेस से कोई तालमेल न करते हुए अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा की है. वास्तव में यह कांग्रेस को झुकाने की प्रेशर टैक्टिक है. ममता ने इस बात पर नाराजगी जताई है कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा का बंगाल में जो मार्ग तय किया गया उसमें टीएमसी की सहमति नहीं ली गई. राहुल की यात्रा का रूट तो महीनों से सबको मालूम था तो ममता की प्रतिक्रिया बंगाल में ईडी के छापों के बाद ही क्यों आई?

‘आप’ का विचित्र रुख

आम आदमी पार्टी ने चंडीगढ़ नगर निगम के चुनाव में कांग्रेस से तालमेल किया था. दिल्ली की 7 लोकसभा सीटों के बटवारे को लेकर भी दोनों दलों में रचनात्मक चर्चा हुई थी. इससे उम्मीद बंधी थी कि पंजाब, हरियाणा, गुजरात और गोवा में भी कांग्रेस और ‘आप’ के बीच सीटों का तालमेल हो जाएगा लेकिन भगवंत मान ने न जाने किस जोश में कह दिया कि पंजाब में ‘आप’ पूरी 13 सीटें अकेले लडेगी और जीतेगी. इससे पूरे देश में पंजाब बनेगा हीरो! ‘आप’ की सोच है कि पंजाब में कांग्रेस कमजोर हो चुकी है और अकाली दल व बीजेपी का कोई आधार ही नहीं बचा है. मान चाहे कुछ भी सोचें, केजरीवाल का रूख अधिक महत्व रखेगा.

दबाव की राजनीति

इंडिया गठबंधन में कांग्रेस राजद, एनसीपी (शरद), डीएमके पहले से शामिल है. टीएमसी की दबाव नीति इसलिए है कि बंगाल में लेफ्ट पार्टियों को अलग रखा जाए. कांग्रेस इसके लिए राजी हो सकती है क्योंकि केरल में तो उसका लेफ्ट से पहले ही गठबंधन है. कांग्रेस पर टीएमसी और आप का दबाव इसलिए भी है ताकि वह लचीलापन दिखाए. ममता को भी पता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में वह बीजेपी को बढ़ने से नहीं रोक पाई थीं. तब बीजेपी ने बंगाल में 18 सीटे जीती थी. यूपी में सपा भी अकड़ दिखा रही है उसने लखनऊ सीट से अपने उम्मीदवार की घोषणा कर दी. ऊपर से यही लगता है कि इन नेताओं के अडियल रवैये से इंडिया गठबंधन खटाई में पड़ सकता है लेकिन यह सब दबाव की रणनीति है कि किसी न किसी तरह अधिकतम सीटें खींच लो. ये घटक दल जानते है कि अपने बूते चुनाव लड़ने से नुकसान ही होगा इसलिए खींचातानी के बावजूद गठबंधन कायम रहेगा.