अयोध्या में भगवान रामलला तो आ गए, अब रामराज्य भी आए…!

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संजय तिवारी

sanjay.tiwari@navabharatmedia.com

जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करे सब कोई

जा पर कृपा राम की होई, ता पर कृपा करे सब कोई रामचरित मानस (Ramcharit Manas) की हर चौपाई अद्भुत और अलौकिक महत्व लिए हुए है. रामचरितमानस के रचनाकार गोस्वामी तुलसीदास की इस चौपाई का अर्थ है कि जिस व्यक्ति पर प्रभु राम यानी ईश्वर की कृपा हो जाती है. उस पर हर किसी की कृपा बरसने लगती है, भगवान के आशीर्वाद से उसे हर बीज सहजता के साथ मिल जाती है, उसके जीवन में कुछ भी असंभव नहीं रह जाता. इसी मंगलकामना के साथ समूचे भारत ने और दुनिया भर में फैले भारतीयों ने सोमवार का दिन दूसरी दिवाली की तरह मनाया.

अयोध्या में भगवान श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा का अवसर हर भारतीय के लिए आत्मसम्मान, स्वाभिमान का ऐसा पल है जो हर भारतीय के हृदय से जुड़ा हुआ है. तीन लोकों के स्वामी प्रभु राम ने जब मनुष्य के रूप में अवतार लिया तब उन्होंने इतनी लीलाएं की जिनका आदर्श यदि समाज का हर व्यक्ति अपना ले तो अपने आप ही रामराज्य आ जाएगा. आखिर ऐसा क्या था रामराज्य में, जिसकी कामना हर भारतीय या इस भूमंडल में मौजूद हर व्यक्ति करता है? वास्तव में रामराज्य एक व्यवस्था है, जिसकी जिम्मेदारी प्रशासकों, सत्ताधीशों के साथ-साथ जनता को भी लेनी पड़ती है. अयोध्या में रामलला का वनवास भले ही अब सदा के लिए समाप्त हो गया हो, लेकिन इससे वर्तमान भारत के करोड़ों लोगों के दुखों का वनवास समाप्त हो गया. ऐसा नहीं कहा जा सकता. इस पावन अवसर पर उस संकल्प को सिद्धि में बदलने का प्रण लेना होगा.

रामराज्य की व्यवस्था और व्याख्या

पौराणिक ग्रंथों में जिस रामराज्य की संकल्पना की गई है, वह वास्तव में रामराज्य की असल व्यवस्था थी, जिसमें सामान्य व्यक्ति का कल्याण ही केंद्रबिन्दु था. उसे पहले समझना ही होगा.

दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहूहि व्यापा।।

सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती।। 

भावार्थ:- ‘रामराज्य’ में किसी को दैहिक, दैविक और भौतिक तकलीफ नहीं थी. सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते थे और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते थे.

चारिउ चरन धर्म जग माहीं। पूरि रहा सपनेहूं अघ नाहीं।।

राम भगति रत नर अरु नारी। सकल परम गति के अधिकारी।।

भावार्थ:- धर्म अपने चारों चरणों (सत्य, शौच, दया और दान) से जगत में परिपूर्ण हो रहा है, स्वप्न में भी कहीं पाप नहीं है, पुरुष और स्त्री सभी राम भक्ति के परायण हैं और सभी परम गति (मोक्ष) के अधिकारी हैं.

अल्पमृत्यु नहिं कवनिउ पीरा। सब सुन्दर सब बिरुज सरीरा।।

नहिं दरिद्र कोउ दुखी न दीना। नहिं कोउ अबुध न लच्छन होना।।

भावार्थ:- छोटी अवस्था में मृत्यु नहीं होती, न किसी को कोई पीड़ा होती है. सभी के शरीर सुंदर और निरोगी हैं. न कोई दरिद्र है, न दुखी है और न दीन ही है. न कोई मूर्ख है और न शुभ लक्षणों से हीन है.

सरसंघचालक ने भी दिया संकेत 

प्राणप्रतिष्ठा में अपने संबोधन में सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी रामराज्य की ओर संकेत किया. उन्होंने कहा कि अयोध्या में रामलला आए लेकिन यह भी विचार करें कि अयोध्या से बाहर क्यों गए थे? अयोध्या उस पुरी का नाम है जिसमें कोई इंद्र नहीं, कोई कलह नहीं है. राम जी 14 वर्ष बाद वापस आए और कलह खत्म हुआ. पीएम मोदी ने तप किया, अब हमको भी तप करना है. जनता को तप करने का संकेत करते हुए उन्होंने एक तरह से वर्तमान सरकार को भी संकेत दिया है कि इस तरह का सुशासन होना चाहिए जहां हर वर्ग सुखी हो जाए. जिस तरह की संकल्पना सरसंघचालक कर रहे हैं, उसी तरह सभी देशवासी ‘भी सुख-समृद्धि का इंतजार कर रहे हैं.

वर्तमान में देश के समक्ष भीषण चुनौतियां हैं. भुखमरी, बेरोजगारी, राजनीतिक शुचिता का अभाव, सत्ता का दुरुपयोग, लोकतांत्रिक मूल्यों का पतन जैसी चुनौतियां हैं जिससे निपटने के लिए एक समयबद्ध एजेंडा बनाना होगा, भारतीय दर्शन में राजनीति को जनकल्याण का हथियार बताया गया है. राजनीति में होने वाले लाभ के लिए कोई भी मनमानी न करे, इसलिए संविधान की मर्यादा ने सभी को बांध रखा है और जैसा कि गीता में अपने कर्मों के हिसाब से फल देते हैं.