मंदिरों की अपार संपत्ति, जनोपयोगी कार्य क्यों नहीं कर रहे?

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    देश के नामी मंदिरों में अपार धन-संपदा है. भक्तजन मोटी रकम और स्वर्णाभूषणों का चढ़ावा वहां भेंट करते हैं. यदि यह रकम राष्ट्र के कल्याण और प्रगति के लिए उपयोग में लाई जाए तो देश का चेहरा-मोहरा बदल जाएगा. इससे बड़े पैमाने पर रोजगार उत्पन्न होंगे और गरीबी दूर होगी. मंदिर की व्यवस्था, पूजा-अर्चना-अनुष्ठान व पर्वों पर जितनी रकम लगती है उसके अलावा जितना भी धन है, वह देश और समाज की भलाई के लिए खर्च किया जाना चाहिए. 

    कोई कह सकता है कि यह तो ईश्वर को अर्पित रकम है लेकिन गरीबों, असहायों और कमजोर वर्गों का कल्याण ही तो ईश्वर की सच्ची सेवा है. स्वामी विवेकानंद ने दरिद्र नारायण की सेवा को सर्वोत्तम माना था. देश में आज भी करोड़ों लोगों को दो वक्त का भोजन नहीं मिलता. ऐसे साधनहीनों की मदद के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है. 

    बहुत से गांव और आदिवासी क्षेत्र पक्के मकान, पेयजल आपूर्ति, सड़क, स्वास्थ, शिक्षा आदि सेवाओं से वंचित है. आजादी के 75 वर्ष बाद भी कुछ क्षेत्रों में बिजली की रोशनी नहीं पहुंची है. जहां सरकारी साधन अधूरे पड़ते है वहां मंदिरों की अरबों रुपए की संपत्ति काम आ सकती है. धन तिजोरी में रखने की बजाय उसका सदुपयोगी करना पुण्य का काम है.

    देवस्थानों में अरबों-खरबों का धन

    तिरूपति बालाजी, पद्मनाभ मंदिर, पुरी का जगन्नाथ मंदिर, नाथद्वारा, वैष्णोदेवी, शिर्डी के साईं मंदिर में अपार संपत्ति है. विश्व में सबसे अमीर तिरूमाला तिरूपति देवस्थान के पास 86,000 करोड़ रुपए की संपत्ति है. भक्तों द्वारा मनोकामना पूर्ण होने पर निरंतर मोटी रकम व आभूषण अर्पित किए जाते हैं. वहां नोट गिनने की मशीने लगी है तथा बड़ी तादाद में स्टाफ निरंतर आ रहे चढ़ावे को संभालने का काम करता है. 

    लोगों की श्रद्धा-भक्ति अपनी जगह है लेकिन विश्व के रचयिता, सबके पालनहार भगवान को कोई क्या देगा? सब कुछ तो उन्ही का दिया हुआ है. तेरा तुझ को अर्पण की भावना से अर्पित की गई धनराशि यदि ईमानदारी से जनोपयोगी कार्यों में खर्च होगी तो ईश्वर वास्तव में प्रसन्न होंगे. संतों की यही सीख है. इस रकम से स्कूल, छात्रावास, उच्च शिक्षा संस्थान, अस्पताल खोले जाएं तथा उपयोगी प्रोजेक्ट चलाए जाएं. विकास के लिए गांवों को गोद लिया जाए तो यही मंदिर सामाजिक क्रांति के अग्रदूत बन सकते हैं.

    मंदिर ट्रस्टों में नेताओं की नियुक्ति से सुप्रीम कोर्ट नाराज

    देश के विभिन्न मंदिर ट्रस्टों में नेताओं की नियुक्ति याघुसपैठ पर सुप्रीम कोर्ट ने लेखी नाराजगी जताई है. इसमें सेवा भावना या भक्ति नहीं बल्कि नेताओं का स्वार्थ छिपा होता है. मंदिर की संपत्ति का नियंत्रण हासिल करने के लिए यह सारा प्रपंच होता है. चढ़ावा अर्पित करनेवाले भक्तों को क्या पता कि धन किन हाथों में जा रहा है. जब वहां की संपदा की बंदरबांट को लेकर ट्रस्टी आपस में झगड़ते है तब हकीकत सामने आती है. 

    शिर्डी संस्थान के संबंध में दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी किया है तथा साईंबाबा मंदिर के न्यासी बोर्ड को बर्खास्त करने के बाम्बे हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए ट्रस्टियों को करारा झटका दिया है. सुप्रीम कोर्ट नने निर्देश दिया है कि नए ट्रस्टियों की नियुक्ति करते समय राजनीतिक दखल नहीं होना चाहिए. सरकार को 1 माह के भीतर ट्रस्टी की नियुक्ति के संबंध में बयान देने का भी आदेश दिया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार व प्रतिवादियों को नोटिस भेजा है. इस मामले में नवंबर के प्रथम सप्ताह में फिर सुनवाई होगी.