Wrestlers pleading for justice

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अपने शुरुआती विरोध-प्रदर्शन व धरने के तीन माह बाद देश के कुछ प्रमुख पहलवान एक बार फिर भारतीय कुश्ती संघ (डब्लूएफआई) के अध्यक्ष व बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह के विरुद्ध कार्यवाही की मांग करने के लिए दिल्ली के जंतर मंतर पर धरना दे रहे हैं. इस साल जनवरी में देश को अनेक अंतर्राष्ट्रीय पदक दिलाने वाले पहलवानों- बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट, साक्षी मलिक आदि ने अपने साथी पहलवानों की तरफ से बृजभूषण के खिलाफ यौन उत्पीड़न के गंभीर आरोप लगाये थे.

इसके बाद बृजभूषण से एक तरफ हटने को कहा गया था और केंद्रीय खेल मंत्रालय ने आरोपों की जांच करने के लिए छह-सदस्यों की ओवरसाईट कमेटी का गठन किया था. पहलवान अब मांग कर रहे हैं कि कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक की जाये और बृजभूषण को एक नाबालिग सहित सात महिला पहलवानों का तथाकथित यौन शोषण करने के लिए तुरंत गिरफ्तार किया जाये.

यह सम्पूर्ण घटनाक्रम कुश्ती समुदाय को तितर-बितर कर रहा है. डब्लूएफआई ने इन आरोपों का खंडन करते हुए बृजभूषण के विरुद्ध साजिश का संकेत दिया है. इस संदर्भ में अमेरिका का जिमनास्टिक सेक्स स्कैंडल आंखें खोलने वाला उदाहरण है. 368 से अधिक एथलीट्स ने जिम मालिकों, कोचों व राष्ट्रीय टीम के डॉक्टर लैरी नास्सर पर यौनाचार के गंभीर आरोप लगाये थे. ये यौन शोषण दो दशक से भी अधिक समय से चल रहा था. आखिरकार नास्सर के विरुद्ध आरोप-पत्र दाखिल हुआ, उसे दोषी पाया गया और लम्बे समय के लिए सलाखों के पीछे भेजा गया.

यह घटनाक्रम भारतीय खेल प्राधिकरणों के लिए टेस्ट-केस है कि वह यौन दुराचार की रिपोर्ट को किस प्रकार हैंडल करते हैं. इस प्रकरण ने पहले ही अगले साल होने जा रहे पेरिस ओलंपिक में कुश्ती में मिलने वाले पदकों की संभावना पर पानी फेर दिया है. इस अप्रैल के शुरू में बजरंग पूनिया व विनेश फोगाट को ट्रेनिंग के लिए क्रमशः खिर्गिस्तान व पोलैंड जाना था, लेकिन वे अपना विरोध दर्ज करने हेतु नहीं गए. एशियन कुश्ती चैंपियनशिप्स का आयोजन नई दिल्ली में होना था, लेकिन इस विवाद के चलते यूनाईटेड वर्ल्ड रेसलिंग (यूडब्लूडब्लू) ने इसे कजाकस्थान की राजधानी अस्ताना में आयोजित किया. इस विवाद से न केवल देश के टॉप पहलवानों का करिअर बर्बाद हो रहा है बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी खासी बदनामी हो रही है. इसलिए जरूरी है कि ओवरसाईट कमेटी की रिपोर्ट को तुरंत सार्वजनिक किया जाये और महिला खिलाड़ियों विशेषकर महिला पहलवानों की सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की जाये.

बॉक्सिंग लीजेंड एमसी मैरी कोम के नेतृत्व वाली ओवरसाईट कमेटी ने अपनी रिपोर्ट कुछ सप्ताह पहले ही खेलमंत्री अनुराग ठाकुर को पेश कर दी थी. लेकिन उसका पूर्ण कंटेंट सार्वजनिक नहीं किया गया है और न ही यौन उत्पीड़न के संदर्भ में किसी के भी विरुद्ध कार्यवाही की गई है. पारदर्शिता का अभाव व कोई एक्शन न लिया जाना, निश्चितरूप से यह सोचने को मजबूर करता है कि क्या कमेटी का गठन केवल जनवरी की विस्फोटक स्थिति को शांत करने या आंखों में धूल झोंकने के लिए था? विनेश फोगाट का कहना है, ‘हमें शक है कि रिपोर्ट में बृजभूषण को क्लीन चिट दी गई है, इसलिए उसे अभी तक सार्वजनिक नहीं किया गया है.’ ध्यान रहे कि विनेश की कजिन बबिता भी ओवरसाईट कमेटी की सदस्य थीं. विनेश को अब बबिता पर भी विश्वास नहीं है. विनेश के अनुसार, ‘वह अब बीजेपी के साथ है और कमेटी शुरू से ही पक्षपाती थी क्योंकि उसका कोई सदस्य हमारे पास हमारा दृष्टिकोण जानने के लिए नहीं आया.’

इस पूरे एपिसोड में सोचने की बात यह है कि सात महिला पहलवानों, जिनमें एक नाबालिग भी है, ने दिल्ली पुलिस में अपनी शिकायत दर्ज कराई, लेकिन पुलिस ने न एफआईआर दर्ज की और न ही किसी को गिरफ्तार किया, जबकि एक मामला पोक्सो का भी बनता है, जिसमें प्रावधान है कि आरोपी पर तुरंत एफआईआर दर्ज करके उसे गिरफ्तार किया जाये. पहलवानों का कहना है कि पुलिस राजनीतिक दबाव में है. उनका यह अंदाज़ा सही प्रतीत होता है; क्योंकि आरोपों की गंभीरता त्वरित कार्यवाही की मांग करती है, जैसा कि कानूनी प्रावधान है. लेकिन पुलिस का कहना है कि वह शिकायतों की जांच कर रही है और ठोस साक्ष्य मिलने पर ही एफआईआर दर्ज करेगी. इसी वजह से पहलवानों ने एफआईआर दर्ज कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में लिखित याचिका दायर की. सुप्रीम कोर्ट ने इस सिलसिले में दिल्ली पुलिस को नोटिस दिया है और अब वह अगली सुनवाई 28 अप्रैल 2023 को करेगा.

जनवरी में पहलवानों ने अपने प्रदर्शन में किसी भी राजनीतिक दल को हस्तक्षेप नहीं करने दिया था. लेकिन इस बार सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया है. पहलवानों ने इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी हस्तक्षेप करने का आग्रह किया है. बजरंग के अनुसार, ‘मैं प्रधानमंत्री से मालूम करता हूं कि वह खामोश क्यों हैं? जब खिलाड़ी पदक लाते हैं तो आप उनके साथ खड़े होते हो, लेकिन जब वह सड़क पर हैं तो आप खामोश हैं. जब हम पदक जीतते हैं तो हम हरियाणा या विशेष समुदाय के नहीं होते, लेकिन जब हम अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं तो हरियाणा के हो जाते हैं. यह दोहरा मापदंड किस लिए?’

यह दुर्भाग्य है कि खेलों के इस चिंताजनक विषय का समाधान निकालने की बजाय इसे हरियाणा बनाम उत्तर प्रदेश, एक जाति बनाम दूसरी जाति का रंग दिया जा रहा है और पहलवानों से मालूम किया जा रहा है कि वे बीजेपी के हैं या कांग्रेस के? दरअसल, बात केवल दो मुद्दों पर होनी चाहिए. एक, अगर कुछ महिला पहलवानों के साथ कुछ गलत हुआ है, जैसा कि आरोप हैं, तो उन्हें जल्द इंसाफ किस तरह से मिले. दूसरा यह कि खेलों में यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर किस प्रकार पूरी तरह से विराम लगाया जाये. यह बात किसी से छुपी हुई नहीं है कि अक्सर युवा खिलाड़ी यौन उत्पीड़न का शिकार हो जाते हैं. पिछले दस वर्षों के दौरान ऐसे 45 मामले प्रकाश में आ चुके हैं. 

–  नरेंद्र शर्मा