ज्यादा टिकने से इनकार, साथ छोड़ देते PM के आर्थिक सलाहकार

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, जिंदगी में लगाव ऐसा होना चाहिए कि किसी के हो जाओ या किसी को अपना बना लो. अपनापन फेविकाल के जोड़ जैसा हो तो कभी भी टूटने की नौबत ही नहीं आएगी.’’ हमने कहा, ‘‘जो लोग किसी क्षेत्र के एक्सपर्ट रहते हैं, वे कहीं बंधकर नहीं रहते. यदि ऐसे प्रोफेशनल्स की बात नहीं मानी गई या उनकी सलाह की अनदेखी की गई तो वे तुरंत टाटा-बाय-बाय कहकर चले जाते हैं. उन्हें मालूम रहता है कि सितारों के आगे जहां और भी हैं! आपने देखा होगा कि मोदी सरकार के सलाहकार ज्यादा समय नहीं टिकते. पिछले 7 वर्षों में ऐसा ही होता आया है. इन सलाहकारों को जब लगता है कि उनकी एक्सपर्ट एडवाइस की कद्र नहीं है तो उनके मन में विचार आता है- चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, सरकार राजनीति के मुताबिक अपनी नीतियों को शेप देना चाहती है. वह दो कदम आगे बढ़कर फिर 4 कदम पीछे भी हट जाती है. वह जनता के सामने असंभव से वादे भी कर देती है. सरकार सलाहकारों पर अपनी सलाह लादती है. ऐसे में आर्थिक नीतियों का जानकार सलाहकार चकरा जाता है. या तो वह सरकार के कहने से रेत में से तेल निकाले या फिर इस्तीफा देकर चल दे. सरकार की कुछ घोषणाएं ऐसी रहती हैं कि घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने! ऐसी हालत में अरविंद सुब्रमण्यम, अरविंद पनगढि़या जैसे सलाहकार परेशान होते देखे गए हैं. अब भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यम ने भी इस्तीफा दे दिया. वे शिक्षा जगत में वापस लौट जाएंगे.’’ हमने कहा, ‘‘ऐसे ही रिजर्व बैंक के गवर्नर रहे रघुराम राजन भी अपना पद छोड़कर शिकागो यूनिवर्सिटी में पढ़ाने चले गए थे.’’