Despite covid, China's economy grew at the rate of 8.1 percent in 2021
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    आखिर सरकार किस वजह से चीनी कंपनियों के प्रति नरम रुख अपना रही है? गत वर्ष गलवान घाटी में संघर्ष और दोनों देशों के बीच सीमा पर बढ़े तनाव के बाद देश में चीन के खिलाफ भावनाएं तीव्र हो गई थीं. लोगों ने चीनी माल का बहिष्कार करना शुरू कर दिया था. भारत में चीनी फर्मों को व्यापार करने से हर संभव तरीके से रोकने की कोशिश भी की गई थी. चीनी सेना अब भी भारतीय इलाके से पूरी तरह हटी नहीं है. चीन का विस्तारवादी और धौंस जमाने वाला रवैया बदला नहीं है. इन बातों के बावजूद चीन और भारत के बीच व्यापार संबंध बने हुए हैं. अब चीनी फर्मों के संबंध में अपने रुख में बदलाव लाते हुए सरकार ने उदारता दिखाई है.

    सरकार ने घरेलू (स्वदेशी) कंपनियों को सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए बोली लगाने के लिए चीनी कंपनियों के साथ साझेदारी करने की अनुमति दी है. भारतीय कंपनियां चीनी फर्म के साथ प्रौद्योगिकी हस्तांतरण समझौतों के माध्यम से साझेदारी कर सकेंगी. इस तरह  चीन की तकनीक उपलब्ध हो सकेगी. सीमा पर तनाव की वजह से भारत सरकार ने जुलाई 2020 में अपने सामान्य वित्तीय नियमों में संशोधन किया था. इसमें कहा गया था कि भारत के साथ सीमा साझा करने वाले किसी भी पड़ोसी देश के बोलीकर्ताओं के सरकारी प्रोजेक्ट का पात्र होने के लिए पहले ‘सक्षम अधिकारी’ के साथ पंजीकरण कराना जरूरी होगा.

    वैसे भारत ने उन पड़ोसी देशों के बोलीकर्ताओं के लिए छूट का प्रावधान किया था जहां वह विकास परियोजनाओं के लिए काम कर रही हैं. इस तरह नेपाल, भूटान और बांग्लादेश को पहले ही अपने आप छूट मिल गई थी, जहां भारत के सहयोग से प्रोजेक्ट पर काम किया जा रहा है. वह आदेश चीन से संबंधित फर्मों के लिए था. यद्यपि जमीनी परिस्थितियों में कोई खास बदलाव नहीं आया है परंतु प्रोजेक्ट के काम तेजी से आगे बढ़ाने और प्रौद्योगिकी हासिल करने के लिहाज से भारत चीनी कंपनियों के प्रति उदार हो गया है.