Supreme Court, Justice BR Gavai

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सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के न्यायाधीश बीआर गवई (Justice BR Gavai) का यह सवाल समसामयिक है कि पिछड़ी जातियों के जिन लोगों को आरक्षण (Reservation) का फायदा मिल चुका है, क्या वे इसे छोड़ नहीं सकते ताकि उनके ही वर्ग के दूसरे वंचित लोगों को इसका फायदा मिले! स्वयं पिछड़े समाज से आनेवाले न्यायमूर्ति गवई ने सामाजिक न्याय के संदर्भ में यह औचित्यपूर्ण बात कही है।  वे जानते हैं कि आज भी बड़ी तादाद में पिछड़े वर्ग के लोग अवसरों से वंचित हैं और कुछ परिवारों की कई पीढि़यां अपनी आर्थिक-सामाजिक हालत सुधरने के बाद भी आरक्षण छोड़ नहीं रही हैं।  यह मुद्दा कोई सामान्य वर्ग का व्यक्ति उठाता तो उस पर दलित विरोधी या आरक्षण विरोधी होने का आरोप लगता। 

जस्टिस गवई ने अपना मुद्दा स्पष्ट करते हुए कहा कि अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग का शख्स यदि आईएएस या आईबपीएम बन जाता है तो उसके पास बेहतरीन सुविधाएं होती हैं।  उसके पास कोई अभाव नहीं रह जाता अर्थात जिंदगी पूरी तरह संवर जाती है इसके बाद भी उसके बच्चों और फिर बच्चों के भी बच्चों को आरक्षण मिलता है। 

सवाल है कि क्या इसे जारी रहना चाहिए? जस्टिस गवई ने कहा कि कुछ जातियां जो एक निश्चित स्थिति तक पहुंच चुकी हैं और अगड़ी जातियों के बराबर हैं तो क्या क्रीमीलेयर मानते हुए उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर निकल जाना चाहिए।  सुप्रीम कोर्ट की 7 जजों की संविधान पीठ में 23 याचिकाओं की सुनवाई के दौरान यह मुद्दा उठा।  केंद्र सरकार की ओर से पेश सालिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र सरकार एससी-एसटी के ज्यादा पिछड़ों को कोटा में कोटा देने के पक्ष में है। 

वह आरक्षण के उपवर्गीकरण का समर्थन करती है।  यह संविधान पीठ ईवी चिन्नैया विरुद्ध आंध्रप्रदेश मामले में हाईकोर्ट के उस फैसले की वैधता जांच रही है जिसमें कहा गया था कि राज्यों के पास एससी-एसटी आरक्षण को उपवर्गीकृत करने की शक्ति नहीं है।  इस पर याचिकाकर्ताओं के वकील गोपाल शंकरनारायण ने तर्क दिया कि ऐसा नहीं हो सकता क्योंकि ऐसा करने के लिए कोई ऑफिस मेमोरेंडम नहीं है।  अनुच्छेद 15-16 के तहत एससी-एसटी पर लागू होनेवाला पैरामीटर ऐतिहासिक अस्पृश्यता है।