टाइमपास सरकार के लिए चुनौती, आरक्षण आंदोलन की जकड़ में महाराष्ट्र

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महाराष्ट्र (Maharashtra News) में 2024 यह चुनावी (Lok Sabha Election 2024) वर्ष है, पहले लोकसभा और उसके बाद सितंबर-अक्टूबर में राज्य में विधानसभा चुनाव भी होने जा रहे हैं। फिलहाल तो ऐसा ही तय है। चुनाव आते ही कई तरह के नेता और मुद्दे जो अमूमन वर्षों तक ठंडे बस्ते में पड़े रहते हैं, एक बार फिर जोर पकड़ने लगते हैं। इस बार भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।

अब तक सिर्फ मराठा समाज अपने आरक्षण की लड़ाई लड़ रहा था। मराठाओं की लड़ाई के पैटर्न के आगे सरकार लगातार झुकती चली जा रही है। अब इसी पैटर्न को दूसरे समाज भी अपनाने लगे हैं। मराठा समाज के बाद ओबीसी समाज तो वैसे भी सड़क पर आया हुआ है। धनगर समाज पहले से ही आंदोलन कर रहा है और अब विदर्भ का गोंड-गोवारी समाज भी रास्ते पर उतर आया है।

गोवारियों का नागपुर में 10 घंटे का महाचक्काजाम जिस तरह से सफल हुआ, उसे देखते हुए जलगांव में विमुक्ति जाति के बंधुओं ने मोर्चा खोल डाला। जलगांव में उनके द्वारा की गई तोड़फोड़ के बाद अब साफ नजर आ रहा है कि पूरा महाराष्ट्र आरक्षण आंदोलन की चपेट में आ गया है और यदि इस पर कोई ठोस फैसला नहीं किया गया तो यह बहुत जल्दी ही ज्वालामुखी का रूप धारण कर सकता है।

वैसे बीते 3-4 दशक में और खासकर मंडल आंदोलन के बाद से देश भर में जातियों के आंदोलन को नई दिशा से शुरू किया गया है। इस दौरान अलग-अलग जातियों की आड़ में ऐसे राजनेता तैयार हुए हैं जो सिर्फ इसकी बदौलत ही सांसद- विधायक चुनकर आते हैं।

जो भी दल विपक्ष में रहता है, वह आरक्षण की मांग को हवा देने का काम करके सहानुभूति वसूलने का काम करता है। यह अलग बात है कि सत्ता में आने के बाद वह ‘आरक्षण’ के ‘अस्तित्व’ पर ही सवाल उठाने लगता है। समय के साथ नेता और मुद्दे बदलते चले गए लेकिन आरक्षण की मांग बढ़ती चली गई। संविधान निर्माता डा। बाबासाहब आंबेडकर ने खुद आरक्षण को एक अस्थाई व्यवस्था के तहत लाया था, अब यह नेताओं के वोटबैंक का हिस्सा बन गया है।

 इधर महाराष्ट्र में आरक्षण आंदोलन का खामियाजा आम आदमी को भुगतना पड़ रहा है। महाराष्ट्र में तीन दलों वाली सरकार इन मुद्दों से कैसे निपट रही है, यह सभी जानते हैं। मनोज जरांगे 26 जनवरी से मुंबई में आंदोलन करने वाले थे, यह पता होने के बाद भी सरकार ने 28 जनवरी तक कुंभकर्ण की भूमिका निभाई। सरकार-मंत्री-अधिकारियों को चाहिए कि वे इस तरह के मुद्दे को गंभीरता से हल करें।

आंदोलन के मनोज जरांगे पैटर्न से प्रभावित विभिन्न समाजों के नेता अब यह जान गए हैं कि सरकार को कैसे झुकाया जा सकता है। कुछ की मांग वाजिब भी है। सरकार ही कई बार बहुत महत्वपूर्ण मुद्दों को वर्षों तक अपने निजी स्वार्थ के लिए लंबित रखना चाहती है। अब यह नहीं चलेगा।