PM के लिए खड़गे का नाम दक्षिण भारत साधने ‘इंडिया’ का पैंतरा

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बीजेपी (BJP) को दलित समुदाय से दूर करने तथा दक्षिण भारत की लगभग 200 सीटों को साधने के लिहाज से टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद के चेहरे के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) का नाम आगे किया, जिसका ‘आप’ नेता अरविंद केजरीवाल ने तत्काल समर्थन किया. विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ‘इंडिया’ का यह पैंतरा बहुत सोच-समझकर चला गया. दलित समुदाय से होने के अलावा खड़गे की साफ-सुथरी छवि है. उनका 50 वर्षों का राजनीतिक अनुभव है. वह 10 बार विधानसभा सदस्य, 2 बार लोकसभा सदस्य और 1 बार राज्यसभा सदस्य लोकसभा सीटें ने इस प्रस्ताव से ज्यादा और नाम पर दलित यूपी में बीजेपी क्योंकि वहां 21 जीती हैं देखा गया कि पार्टी अध्यक्ष पद पर खड़गे की ताजपोशी का फायदा कांग्रेस को मिला.

फिर भी यह प्रश्न उठता है कि क्या खड़गे का उत्तर भारत की दलित राजनीति में भी वैसा ही चुंबकीय प्रभाव पड़ेगा जैसा कर्नाटक में देखा गया? 2011 की जनगणना के अनुसार देश में अनुसूचित जाति की आबादी 20.14 करोड़ या 16.6 फीसदी थी. अनुसूचित जनजाति की आबादी भी 10.4 करोड़ या कुल आबादी का 8.6 प्रतिशत थी. इन दोनों समुदायों के लिए लोकसभा में 131 सीटें आरक्षित हैं. इनमें 84 सीटें अजा और 47 सीटें अजजा के लिए रिजर्व हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इन आरक्षित सीटों में से अकेले 77 सीटें हासिल की थीं. शायद यही सब सोचकर ममता और केजरीवाल ने खड़गे को पीएम का चेहरा बनाने का दांव चला, खड़गे एक निर्विवाद चेहरा हैं. एक खास बात यह भी है कि पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा के बाद से कर्नाटक का कोई नेता पीएम नहीं बना.

देवगौड़ा को हिंदी नहीं आती थी, जबकि खड़गे अच्छी तरह हिंदी बोलते हैं. मराठी, कन्नड़ व अंग्रेजी पर भी उनकी पकड़ है. इंडिया गठबंधन के रणनीतिकारों का अनुभव है कि खड़गे के नाम से दक्षिण के अलावा उत्तर भारत भी जुड़ेगा. इस कदम से बीजेपी को ओबीसी-दलित-आदिवासी वोट एकमुश्त तरीके से हासिल करने से रोका जा सकेगा. 

यह भी माना जा रहा है कि रंग में भंग न पड़े, इसलिए राहुल पर्दे के पीछे हैं. उनके नाम से ममता और अखिलेश यादव बिदक सकते हैं.देशभर में ऐसी 150 से ज्यादा हैं जहां दलित मतदाता निर्णायक साबित होते हैं. केजरीवाल का इसलिए समर्थन किया क्योंकि पंजाब में 30 प्रतिशत दिल्ली में लगभग 20 प्रतिशत दलित मतदाता हैं. खड़गे के वोटों को आसानी से खींचा जा सकता है. विपक्ष के लिए से दलित मतदाताओं को दूर करना इसलिए भी जरूरी है प्रतिशत दलित वोटर हैं. बीजेपी ने ज्यादातर ऐसी सीटें जहां दलित मतदाता प्रभावशाली स्थिति में हैं. पिछले कर्नाटक विधानसभा चुनाव मेंरहे हैं.

खड़गे ने ममता का प्रस्ताव यह कहकर ठंडे बस्ते में डाल दिया कि पहले तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी को पछाड़ना है. इसके बाद प्रधानमंत्री कौन बनेगा, इसका फैसला सर्वसम्मति से कर लिया जाएगा.