राहुल की अपनी व्याख्या, हिंदू और हिंदुत्ववादी का फर्क बताया

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    आम तौर पर लोग हिंदू और हिंदुत्ववादी शब्दों में फर्क नहीं करते लेकिन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य में इनका अर्थ भिन्न हो जाता है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने यही बात उदाहरण के तौर पर आसानी से समझाई है. उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी हिंदू थे और उनका हत्यारा नाथूराम गोडसे हिंदुत्ववाद था. इसका अर्थ यह है कि कोई इंसान अपने जीवन में व्यक्तिगत रूप से हिंदू रह सकता है. उसकी आस्था, उपासना पद्धति व्यक्तिगत होती है. 

    वह न तो किसी पर हिंदुत्व थोपता है न हिंदुत्व को लेकर अन्य धर्मावलम्बियों के प्रति आक्रामक रवैया अपनाता है. राहुल गांधी का आशय है कि सच्चा हिंदू उदार एवं सहिष्णु होता है वह अन्य धर्मों से नफरत नहीं करता और अन्य धर्मावलंबियों को अपना विरोधी या दुश्मन भी नहीं मानता. ऐसे हिंदू के लिए हिंदू होना एक जीवनशैली है. उसका आग्रह या जोर जबरदस्ती नहीं होती कि हर कोई उसका अनुकरण करे. 

    वह कट्टर न होकर समासेवी विचारधारा रखता है और मानता है कि हर कोई अपना धर्म मानने के लिए स्वतंत्र है और हिंदू होना एक व्यक्तिगत विषय है. नमाज सामूहिक हो सकती है लेकिन जरूरी नहीं कि हिंदुओं की प्रार्थना भी सामूहिक हो. हिंदू अपनी इच्छा से व्रत, अनुष्ठान करता है या नहीं भी करता. वह कभी मंदिर जाता है या नहीं भी जाता. हिंदू होना उसके लिए बंदिश नहीं लादता. एक ही घर के सदस्यों के इष्टदेव अलग-अलग रहते हैं लेकिन इसे लेकर कोई विवाद नहीं होता. 

    हिंदू धर्म में कट्टरता न होकर समावेशकता है इसलिए यह सदियों से टिका है. इसमें मूर्तयूजक से लेकर मूर्तिपूजा नहीं करने वाले आर्य समाजी भी शामिल हैं. सगुण उपासना वालों के अलावा निर्गुण  निराकार को मानने वाले कबीर पंथी भी हैं. हिंदुत्ववाद में आक्रामक राजनीति आ जाती है. राहुल गांधी ने दोनों शब्दों का फर्क बताते हुए कहा कि हिंदुत्ववादी सत्ता के भूखे होते हैं. 2014 से हिंदुत्ववादी सत्ता में हैं. हिंदू सत्य की खोज में कभी नहीं झुकता लेकिन हिंदुत्ववादी को सत्य से कुछ लेना देना नहीं है. वह नफरत से भरा होता है.