संघ को मोदी-शाह की क्षमता पर शंका

आरएसएस ने बीजेपी के इस भ्रम या मिथक को तोड़ा है कि मोदी और शाह अजेय हैं और उनके चुनाव प्रचार में उतरने से जीत सुनिश्चित हो जाती है. दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों की समीक्षा करते हुए संघ ने अपने

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आरएसएस ने बीजेपी के इस भ्रम या मिथक को तोड़ा है कि मोदी और शाह अजेय हैं और उनके चुनाव प्रचार में उतरने से जीत सुनिश्चित हो जाती है. दिल्ली विधानसभा चुनाव नतीजों की समीक्षा करते हुए संघ ने अपने मुखपत्र में कहा है कि बीजेपी को यह समझने की जरूरत है कि मोदी व शाह विधानसभा स्तर के चुनावों में हमेशा मदद नहीं कर सकते. पार्टी के राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के नेता खुद मेहनत न करें और यह सोचें कि मोदी और शाह की कुछ रैलियों से बीजेपी के पक्ष में जबरदस्त चुनावी माहौल बन जाएगा तो ऐसा बिल्कुल नहीं है. दिल्ली के चुनाव में प्रधानमंत्री ने 2 सभाओं तथा अमित शाह ने लगभग 50 रैलियों को संबोधित किया लेकिन फिर भी कुल 70 में से बीजेपी को 8 ही सीटें मिल पाईं. केजरीवाल की प्रचंड जीत पर बीजेपी का शीर्ष नेतृत्व ब्रेक नहीं लगा पाया. दिल्ली की इसी जनता ने 2019 के आम चुनाव में सभी सातों लोकसभा सीट बीजेपी की झोली में डाल दी थीं लेकिन विधानसभा चुनाव में उसने बीजेपी को अंगूठा दिखा दिया. सच तो यह है कि जनता समझदार और अपने हितों के प्रति जागरूक है. उसे मालूम है कि केंद्र में मोदी ठीक हैं, लेकिन दिल्ली में केजरीवाल ही चाहिए जो उनकी समस्या हल करने की क्षमता रखते हैं. केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी इसलिए जीती क्योंकि उसने बिजली-पानी की दरें कम कीं, सरकारी स्कूलों का स्तर सुधारा, मोहल्ला क्लीनिक खोले और बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा का प्रावधान किया. इतने पर भी दिल्ली सरकार के खजाने में कमी नहीं आई. चुनाव प्रचार में मोदी और शाह राष्ट्रवाद, कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने, सीएए, पाकिस्तान के मुद्दे उठाते रहे. दिल्ली के मतदाताओं को विधानसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर के ये मुद्दे गैरजरूरी लगे. बीजेपी समझ नहीं पाई कि विधानसभा चुनाव में स्थानीय मुद्दे ही चलते हैं. इसलिए संघ का यह परामर्श बिल्कुल उचित है कि स्थानीय लोगों की अपेक्षा पर खरे उतरने के लिए पार्टी को नये सिरे से तैयार करने की जरूरत है.