Kamal Nath

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राजनीति में कोई नेता स्वेच्छा से रिटायर होना नहीं चाहता. वह आराम करने की बात तभी करता है जब उसके लिए अंगूर खट्टे होते हैं. जब तक सत्ता की मलाई मिलती रहती है, तब तक ऐसी वैराग्य भावना नहीं आती. जब नेता निराश हो जाता है तो पद छोड़ने या संन्यास लेने जैसी बातें करता है. उसका सुर कुछ ऐसा रहता है- हम छोड़ चले हैं महफिल को, याद आए कभी तो मत रोना. मध्यप्रदेश (Madhya Pradesh) में पहले कमलनाथ (Kamal Nath) की सरकार गिरी और फिर उनके प्रदेश कांग्रेस(Congress) अध्यक्ष रहते पार्टी की विधानसभा उपचुनावों में करारी हार हुई. अब वे अध्यक्ष पद छोड़ने का संकेत देते हुए कह रहे हैं कि मैं आराम करना चाहता हूं, मैंने काफी कुछ हासिल किया है.

बीजेपी नेता उमा भारती भी लगातार ऐसी घोषणा करती हैं और फिर पलट जाती हैं. कमलनाथ का ऐतबार भी कौन करेगा? जब कमलनाथ ने देखा कि कई नेता और विधायक उन पर हार का ठीकरा फोड़ रहे हैं तथा उन पर गलत टिकट बंटवारे, कमजोर प्रत्याशियों के चयन और गलत रणनीति अपनाने का आरोप लगा रहे हैं तो उन्होंने आराम करने वाली बात कही. यह एक तरह का पलायनवाद या जिम्मेदारी झटकने की प्रवृत्ति है. जब अपनी कमजोरियां स्वीकार करने का नैतिक साहस नहीं रह जाता तब ऐसे पैंतरे अपनाए जाते हैं. कमलनाथ स्व. राजीव गांधी के दून स्कूल के साथी थे. राजीव ही उन्हें राजनीति में लाए थे.

सोनिया गांधी का कमलनाथ पर भरोसा होने से वे मध्यप्रदेश के सीएम बनाए गए लेकिन कमलनाथ को ज्योतिरादित्य सिंधिया की उपेक्षा करना बहुत महंगा पड़ा. सिंधिया अपने साथियों सहित बीजेपी में चले गए और कमलनाथ की सरकार गिरकर शिवराजसिंह चौहान की बीजेपी सरकार आ गई. मध्यप्रदेश देखते ही देखते कांग्रेस के हाथ से निकल गया. अब कमलनाथ की हालत उजड़ी हुई रियासत के बिगड़े हुए नवाब जैसी होकर रह गई है. वे कांग्रेस के उन पुराने नेताओं में से हैं जिन्हें राहुल गांधी पसदं नहीं करते. बीजेपी के ‘कमल’ से मात खाने के बाद कमलनाथ आराम करने की बात कह रहे हैं. क्या उन्हें याद नहीं कि नेहरू ने नारा दिया था- आराम हराम है!