Sharad Pawar Supriya Sule on Sunetra pawar regarding Baramati Lok Sabha Seat

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, एनसीपी (NCP) के संस्थापक शरद पवार (Sharad Pawar) ने ऐसी अनुदार मानसिकता का परिचय दिया है जो बेटी (Supriya Sule) और बहू में फर्क करती है। उन्होंने अपने भतीजे अजीत पवार (Ajit pawar) की पत्नी सुनेत्रा (Sunetra pawar) को ‘बाहरी’ करार दिया है। क्या बहू को ‘बाहरी’ कहना अच्छी बात है?’’

हमने कहा, ‘‘बहू हमेशा बाहर से ही लाई जाती है। वह जिस घर में शादी होकर जाती है, हमेशा के लिए वहां की हो जाती है। पति की वजह से उसके नए नाते जुड़ जाते हैं जैसे कि सास-ससुर, जेठ-जेठानी, देवर-देवरानी, ननद-ननदोई, मामा ससुर, काका ससुर, मामी सास, काकी सास। वह कुछ बच्चों की काकी, मामी बन जाती है। पति के छोटे भाइयों व बहनों की भाभी कहलाती है। इन सारे संबंधों की वजह से वह बाहरी नहीं रह जाती। वह कुलवधु या गृहलक्ष्मी बन जाती है। वह अपने संस्कार व भाग्य साथ लेकर आती है जिससे उसके पति का अभ्युदय होता है। यदि बहू को बाहरी मान लिया जाए तो उस तर्क से मां, दादी या अन्य महिलाएं भी बाहरी हुईं जो कुल में आकर मिलती चली गईं।’’ 

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, राजनीति में इतना सूक्ष्म चिंतन नहीं होता। शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया से अपनापन जताते हुए सुनेत्रा को बाहरी कह रहे हैं जबकि विवाह के बाद बेटी का ससुराल से नाता जुड़ जाता है। सुप्रिया के साथ उनके पति का सरनेम ‘सुले’ जुड़ा हुआ है। आजकल कुछ महिलाएं मायके और ससुराल दोनों का सरनेम लगाती हैं और दोनों घरानों को समान महत्व देती हैं। आपने कहीं कुमुद संघवी चावरे जैसा नाम पढ़ा होगा। यह अच्छी बात है जिसे एप्रेशिएट करना चाहिए।’’
 
हमने कहा, ‘‘बहू की वजह से वंश आगे बढ़ता है। वह माता-पिता का घर छोड़ ससुराल को अपना घर बना लेती है। उसे ‘बाहरी’ कहकर तिरस्कार करना अनुचित है। बहू के रूप में पली-पलाई बेटी घर में आती है जहां वह हिलमिल जाती है। इसी पारिवारिक एकता को समझाने के लिए एकता कपूर ने टीवी सीरियल बनाया था- ‘क्यूंकि सास भी कभी बहू थी’। इसमें आदर्श बहू तुलसी की भूमिका स्मृति ईरानी ने बखूबी की थी। यदि शरद पवार यह सीरियल देखें तो बहू को ‘बाहरी’ नहीं कहेंगे।’’