आरपी सिंह को जदयू अध्यक्ष बनाकर नीतीश कुमार ने फेंकी गुगली

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बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) या तो नाराज हैं या हताश. उन्हें बीजेपी (BJP) का रवैया पसंद नहीं आ रहा है जिसने उन्हें सीएम पद तो दे रखा है लेकिन उनकी पार्टी जदयू (JD(U) President) में सुरंग लगाने से भी नहीं चूक रही है. अरुणाचल में जदयू के 7 में से 6 विधायकों को बीजेपी ने फोड़कर अपने साथ ले लिया. यह नीतीश कुमार को करारा झटका है. बीजेपी का अमैत्रीपूर्ण रवैया देखते हुए नीतीश ने गुगली फेंकी और अपनी जगह राज्यसभा सदस्य रामचंद्र प्रसाद (आरपी) सिंह (Ram Chandra Prasad Singh) को जदयू का नया अध्यक्ष बना दिया. नीतीश का कहना है कि अब वे सुशासन पर ध्यान देना चाहते हैं. दो पदों पर एक साथ रहना आसान नहीं है. उन्होंने यह भी कहा कि वह तो मुख्यमंत्री बनना नहीं चाहते थे लेकिन बीजेपी के आग्रह की वजह से उन्होंने यह पद संभाला.

BJP के रवैये से परेशानी

नीतीश कुमार 2022 तक अध्यक्ष पद पर कायम रह सकते थे लेकिन उन्होंने कुछ सोचकर ही आरपी सिंह को पार्टी अध्यक्ष बनाया. बीजेपी अपनी अधिक सीटों की वजह से बड़े भाई की भूमिका में है, इस वजह से नीतीश असहज महसूस कर रहे हैं. यदि पार्टी अध्यक्ष रहते हुए वे बीजेपी रवैये को लेकर कोई सख्त फैसला लेते तो उन पर मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय अध्यक्ष होने के नाते गठबंधन धर्म की मर्यादा को क्षति पहुंचाने का सवाल उठ सकता था इसलिए नीतीश ने अध्यक्ष पद छोड़ने का मास्टर स्ट्रोक खेला. फैसले तो अब भी नीतीश ही लिया करेंगे लेकिन सिर्फ मुहर आरपी सिंह के नाम की होगी. आरपी सिंह पूर्व आईएएस अधिकारी हैं और नीतीश के गृहजिले नालंदा के निवासी हैं. वे भी नीतीश के समान कुर्मी समुदाय के हैं. जदयू में नीतीश कुमार के बाद आरपी सिंह और ललन सिंह ही वरिष्ठ नेता माने जाते रहे हैं. ललन सिंह की संगठन की बजाय केंद्रीय राजनीति में रुचि है, इसलिए आरपी सिंह को अध्यक्ष बनने का मौका दिया गया.

दोनों पार्टियों में दरक रहा विश्वास

बिहार की राजनीति में स्थिरता नहीं है. जदयू व बीजेपी परस्पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं. उनमें संदेह का माहौल बना हुआ है. राजद ने संकेत दिया है कि यदि नीतीश भाजपा से नाता तोड़ते हैं तो नए सिरे से गठबंधन पर बात की जा सकती है. पहले भी नीतीश के नेतृत्व में जदयू-राजद की मिलीजुली सरकार रह चुकी है. कहा जा रहा है कि जदयू राजद नेता लालूप्रसाद यादव से संपर्क साध रही है जो झारखंड में चारा घोटाले की सजा काट रहे हैं. दूसरी ओर बीजेपी भी बिहार में अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए राजद, कांग्रेस व अन्य छोटे दलों के विधायकों को अपने पाले में लाने के लिए सक्रिय हो उठी है. बिहार विधानसभा चुनाव के बाद जदयू का रुतबा बुरी तरह घट गया है. नीतीश को सीएम तो बनाया गया लेकिन उनकी पार्टी राज्य में बीजेपी की जूनियर पार्टनर है. अब यदि जदयू ने बीजेपी के खिलाफ टेढ़ी नजरें कीं तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इसके लिए जिम्मेदार नहीं माना जाएगा क्योंकि पार्टी नेतृत्व उन्होंने जानबूझकर आरपी सिंह को सौंप दिया है. मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश अपना प्रभाव बढ़ाना चाहेंगे और बीजेपी के दोनों उपमुख्यमंत्रियों को दबाकर रखेंगे. चूंकि नीतीश पहले से ‘सुशासन बाबू’ कहलाते रहे हैं, इसलिए सीएम के तौर पर वे अपने फैसलों को लेकर स्वतंत्र रहेंगे. यदि इसमें कोई व्यवधान आया तो जदयू बीजेपी को जिम्मेदार ठहराएगी. नीतीश आरपी सिंह के कंधे पर बंदूक रखकर बीजेपी को निशाना बनाएंगे.