Nearly 50% increase in child marriage cases last year: NCRB
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    भंडारा. बाल विवाह पर प्रतिबंध होने के बावजूद भी ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह कराए जाते है. बाल विवाह कानून को सख्ती से अमंल में लाने के लिए राज्य महिला आयोग ने एक कठोर फैसला लिया है. इस फैसले के तहत यदि किसी भी गांव में बाल विवाह होता है तो उस गांव के सरपंच को अपना पद गंवाना पड़ेगा. यहीं नहीं तो सरपंच, ग्रापं सदस्य, पुलिस पाटिल और पंजीयन अधिकारी पर कार्रवाई होगी. इतना ही नहीं तो अपराध भी दर्ज किया जाएगा.

    बता दें कि, बाल विवाह प्रतिबंध अधिनियम के तहत बाल विवाह होने पर नववधू, वर के माता-पिता, मंगल कार्यालय के मालिक, पंडित और फोटोग्राफर पर मामला दर्ज किया जाता है, लेकिन अब इस कानून के दायरे को बढ़ा दिया गया है. इसमें अब ग्रापं सरपंच, सदस्य, पुलिस पाटिल और पंजीयन अधिकारी को भी शामिल कर लिया गया है. बाल विवाह अधिनियम में परिजनों के साथ ही जनप्रतिनिधि भी रडार पर आ चुके हैं. अब यदि गांव में बाल विवाह होने पर सरपंचों को अपने पद से हाथ धोना पड़ेगा.

    बाल विवाह कानून में किया गया सुधार

    बाल विवाह प्रतिबंधक अधिनियम सबसे पहले साल 1929 में अमल में लाया गया. इस अधिनियम के तहत लडकी की उम्र 14 और लड़कों की उम्र 18 वर्ष निर्धारित की गई. इसके बाद 1955 में हिंदू विवाह एक्ट के अनुसार विवाह के लिए लड़कियों की उम्र 15 वर्ष व लड़कों की उम्र 18 वर्ष रखी गई.

    वर्ष 1978 में बालविवाह कानून में फिर से सुधार किया गया. इसमें लड़कियों के शादी की उम्र 18 और लड़कों की शादी की उम्र 21 कर दी गई. इसके बाद पुरुष और महिलाओं के विवाह योग्य उम्र में समानता लाने महिलाओं के लिए विवाह की कानूनी उम्र 18 से  21 करने के प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्री मंडल ने मंजूरी दी.