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    गोंदिया. गोंदिया व भंडारा जिले को तालाबों का जिला कहा जाता है. दोनों जिले मिलाकर छोटे बड़े लगभग 3500 तालाब है. जिसमें से गोंदिया जिले में लगभग 2130 तालाब है. इसमें से 1886 यह पूर्व मालगुजारी तालाब है. स्वतंत्रता के बाद 1950 में मालगुजारी समाप्त हो गए. इसके बाद शासन ने 1963 में यह तालाब अपने कब्जे में लिए. लेकिन तालाब से किसानों को सिंचाई के मुक्त अधिकार सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय अनुसार जैसे थे वैसे रखे गए.

    तालाब शासन के कब्जे में आने के बाद इस तालाब को मालगुजारी तालाब संबोधित किया जाने लगा. इन पूर्व मालगुजारी तालाबों को सही अर्थो में व्यवस्थापन की जरूरत निर्माण हो गई है. पूर्व विदर्भ में न्युनतम 1200 से 1500 मिमी. बारिश होती है. इस क्षेत्र में प्रमुख रूप से धान की फसल ली जाती है. अगस्त व सितंबर इस अवधि में बारिश अच्छी होती है. फिर भी उस समय बारिश नहीं होने से धान की फसलें खतरे में पड़ जाती है.

    जिससे धान फसल को एक या दो बार सिंचाई के लिए पानी की जरूरत पूर्ण होने की दृष्टि से तत्कालीन गोंड राजा हीर शहा के फर्मान अनुसार किसानों ने विशेषकर पवार व कोहड़ी समाज के किसानों ने जनसहभाग से तालाबों का निर्माण किया. गोंड राजा के कार्यकाल में राजाश्रय मिलने से तालाबों का विकास तेजी से हुआ था. इस अवधि में तालाबों को गोंडकालीन तालाब के रूप में संबोधित किया जाता था. 19वें शतक में अंग्रेज का राज्य आया. तब इन तालाबों की मालगुजारी वसूली करने की मालकी उस क्षेत्र के कुछ प्रतिष्ठित नागरिकों को दी गई.

    जिससे उन्हें मालगुजार संबोधित किया गया. यह मालगुजारी लाभ धारकों से वसूल की गई रकम में से निर्धारित रकम सरकार को जमा कर रहे थे. पानी का वितरण, देखरेख दुरूस्ती, गाद निकालने आदि काम लाभधारक कर रहे थे. लेकिन वसूली करने की सुविधा के लिए अंग्रेज काल में इन तालाबों की मालकी मालगुजार के पास गई. इसलिए उन्हें मालगुजारी तालाब नाम पड़ा. इसके बाद इन तालाबों की ओर दुर्लक्ष किया गया. जिससे जिले के पूर्व मालगुजारी तालाबों को आज व्यवस्थापन की जरूरत है.

    उस दौर में भी सिंचाई के लिए तंत्रज्ञान का उपयोग

    भूपृष्ठ पर पानी का संग्रह निर्मित कर धान फसल को बारिश समय पर नहीं आने से पुरक व्यवसाय के रूप में पानी देने के लिए तथा गन्ने की फसल का उत्पादन कर गुड़ उत्पादन करने के लिए यह तालाब निर्माण किए गए थे. धान व गन्ना खेती के साथ मत्स्य पालन की सुविधा इन तालाबों में की गई थी. विशेष बात यह है कि इन तालाबों का निर्माण करते समय उस काल में भी अभियांत्रिकी ज्ञान का उपयोग कर पानी संग्रह की उचित जगह का चयन किया गया था.

    उस दौर में आधुनिक जमीन को गिनने यंत्र नहीं थे. ट्रैक्टर व बुलडोजर की व्यवस्था नहीं थी. ऐसे समय किसानों ने जनसहयोग से सुनियोजित पद्धति से तालाबों का निर्माण किया. इसी तरह तालाब के साथ साथ कुओं का निर्माण किया गया. तालाबों की श्रृंखला निर्माण करते समय गांव के चारों बाजू पानी की व्यवस्था कैसे होगी व बाढ़ का खतरा निर्माण न हो इसी तरह पानी व्यर्थ न हो इसके लिए उस समय हस्तक्षेप किया गया.