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    गोंदिया. डीजल के दाम पिछले कुछ दिनों से लगातार बढ़ रहे हैं. इस मूल्य वृद्धि का प्रभाव काफी हद तक कृषि पर पड़ा है. अन्नदाता को डीजल व  खाद की कीमतों में हुए इजाफे से दोहरी मार का सामना करना पड़ रहा है.  किसानों के अनुसार ईंधन की कीमतों में वृद्धि और मजदूरी बढ़ने से खेती करना काफी महंगा हो गया है. खेती के लिए मशीनीकरण का उपयोग बढ़ गया है.

    ट्रैक्टर से जुताई की लागत में  वृद्धि हुई है. ईंधन की कीमतों में बढ़ोतरी का असर सीधे किसानों पर पड़ रहा है. इसके चलते किसान बेहाल हो गए हैं.  ट्रैक्टर की वजह से भले ही तीन दिन का काम अब एक दिन में हो गया हो, लेकिन ईंधन के दाम बढ़ने से आय-व्यय का संतुलन नहीं बनता है. पेट्रोल-डीजल की कीमतों के साथ-साथ महंगाई भी महीनों से बढ़ती जा रही है, निजी ट्रान्सपोर्ट ने भी ढुलाई किराए में वृद्धि की है. अब जब सब्जी व रबी सीजन की फसलें निकल रही हैं, किसान गांव से सब्जी व अन्य फसलें व सामग्री बेचने के लिए शहर ला रहे हैं  लेकिन कीमतों में बढ़ोतरी का झटका उन पर पड़ रहा है. 

    खेती के लिए ट्रैक्टर का उपयोग

    अल्पसंख्यक किसानों द्वारा ट्रैक्टरों का उपयोग बढ़ा है.  क्षेत्र में ट्रैक्टरों की बड़ी संख्या है. जुताई आदि  के लिए ट्रैक्टरों का व्यापक रूप से उपयोग होने लगा है.  ईंधन की कीमतों में वृद्धि ने ट्रैक्टरों द्वारा किए जाने वाले सभी कृषि कार्यों की दरों में वृद्धि हुई है.  इसका खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ रहा है. पिछले छह महीनों में ईंधन की कीमतें बढ़ने से माल भाड़ा दोगुना हो गया है. इससे किसानों का मुख्य खर्चा ढुलाई पर ही हो रहा है. इसलिए किसान मुश्किल में है.

      साग सब्जी या अन्य कृषि उपज खेत से बाजार में   बिक्री के लिए लाना मुश्किल होता जा रहा है. इसके अलावा, लोडिंग, अनलोडिंग व परिवहन की लागत बढ़ चुकी है. इसके बाद भी इस बात की कोई गारंटी नहीं होती कि बाजार में फसल लाने के बाद सही कीमत मिलेगी. इसलिए कुछ किसान फसल के साथ-साथ गांव में मिलने वाले दाम पर सब्जियां बेच रहे हैं. 

    वाहन चालकों ने बढ़ाए रेट, नहीं मिल रहे मजदूर

    किसान खेती कर अपना उदरनिर्वाह करते हैं. कभी सुल्तानी तो कभी आसमानी संकट का सामना कर रहे हैं. लेकिन ईंधन की बढ़ती कीमतों के कारण माल ढुलाई दरों में भी वृद्धि हुई है. बीज, खाद, दवाई के छिड़काव का खर्चा बढ़ता जा रहा है. इसकी तुलना में हाथ में संतोषजनक कमाई नहीं आ रही है. वर्तमान में बढ़ते तापमान की वजह से मजदूर भी नहीं मिल रहे हैं. साथ ही पेट्रोल एवं डीजल की बढ़ती कीमतों का हवाला देते हुए निजी वाहन चालकों ने अपने रेट बढ़ा दिए हैं. ऐसे में फसल को बाजार में बिक्री के लिए लाना आर्थिक रूप से संभव नहीं है. जिससे किसानों को अब बैलगाड़ी याद आने लगी है. 

    किसान अपनी उपज को बैलगाड़ी से बाजार में बेचने के लिए लाते थे. उस समय यातायात का कोई साधन नहीं था. वर्तमान में बैलगाड़ी द्वारा फसल को बिक्री के लिए जाना सुविधाजनक नहीं रहा है. क्योंकि इसमें बहुत कम माल ला सकता है. साथ ही बैलगाड़ी, मजदूरों का खर्च जेब पर भारी पड़ेगा. समय ज्यादा लगेगा आदि कारणों से बैलगाड़ी से माल ढुलाई संभव हो नहीं है. लेकिन किसानों को पुराने दिन याद आ रहे है जब सभी के पास बैलगाड़ी हुआ करती थी.