Garba
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    गोंदिया. नवरात्र पर शहर पूरी तरह उत्सव के उत्साह में सरोबार है. एक ओर गुजराती समाज में परंपरागत गरबे की धूम रहेगी  वहीं कुछ स्थानों पर डांडिया-गरबा रीमिक्स की तर्ज पर युवाओं  थिरकेंगे और आयोजक   इसकी तैयारी जोर-शोर से कर रहे हैं. पिछले वर्षों में कोरोना संक्रमण के चलते यह उत्सव आयोजित नहीं हो सके थे. अब इसे लेकर  महिलाएं, युवतियां व युवक  काफी उत्साहित और विभिन्न स्थानों में रिहर्सल के दौर चल रहे हैं. नवरात्रि के शुरू होते ही शहर में गरबे और डांडिया की धूम रहती है. 

    शहर में मनोहर कॉलोनी, गुजराती स्कूल, हिंन्दी स्कूल प्रागंण, सुभाष गार्डन परिसर के साथ ही शहर के  इलाकों में भी यह  धूमधाम से आयोजित होता है. धार्मिक महत्व के साथ ही यह आनंद व मस्ती के  रंग बिखरने के लिए जाना जाता है. इसे लेकर श्रद्धालुओं में खासा उत्साह देखा जा सकता है. इस आयोजन में सभी आयु वर्ग के लोग शामिल होते हैं. युवाओं के लिए अपने संस्कृति से जुड़ने का सुनहरा अवसर होता है  वे पूरी रात डांडिया और गरबे की मस्ती में झूमते हैं.

    इससे चारों तरफ उत्सव का माहौल रहता है. नवरात्रों में शाम को डांडिया नृत्य के जरिए मां दुर्गा की पूजा की जाती है. नवरात्रि यानी उत्साह, उमंग और श्रृंगार के दिन नवरात्रि शुरू होने के कुछ दिन शेष हैं. शहर में गरबा का रंग चढ़ने लगा है और लोग इसकी तैयारियों में जुट गए हैं. दो वर्ष बाद इस उत्सव के प्रति उत्साह जबरदस्त है. शहर में कई स्थानों पर गरबा होंगे, इनमें शामिल होने के लिए प्रतिभागी प्रैक्टिस में जमकर पसीना बहा रहे हैं.

    गरबा में पहनी जाने वाली ट्रेडिशनल ड्रेस महिलाओं की चनिया चोली और पुरुषों की कोडिया और काठियावाड़ी की डिमांड  भी देखी जा रही है. इस बार ट्रेडिशनल लहंगा, बांधनी, डबल घेर लहंगा, मल्टी लेयर लहंगा, राजस्थानी, काठियावाड़ी ड्रेस की और गरबा फ्यूजन स्टाइल खरीदारी हो रही है.  मातारानी अम्बे की आराधना व शक्ति उपासना के पावन पर्व शारदीय नवरात्र महोत्सव के तहत शहर सहित क्षेत्र के ग्रामीण इलाकों में  कई जगहों पर मातारानी के दरबार सजते हैं. 

    नवरात्र के लिए देवी मंदिरों सहित दुर्गा पंडाल सज रहे हैं.  वहीं गरबा-डांडिया की प्रैक्टिस भी शुरू हो गई है. पारंपरिक ड्रेस के बिना गरबा-डांडिया का उत्साह अधूरा रहता है. यही वजह है कि इसके लिए युवतियां व महिलाएं चणियां-चोड़ी की बढ़-चढ़कर खरीदारी भी कर रही हैं. पहले रास-गरबा सिर्फ गुजराती समाज  तक सीमित था लेकिन अब इसकी लोकप्रियता  व इसके प्रति इतना लगाव  बढ़ गया है कि शायद ही कोई ऐसा  समाज होगा जिसमें इसका आयोजन नहीं होता है.