पटाखों पर कोर्ट की पाबंदी के क्या हैं नियम, जानिए क्या है पटाखों का इतिहास

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  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने तय की पटाखा फोड़ने की समयसीमा
  • सुप्रीम कोर्ट ने लगाया प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर बैन
  • कहां और कैसे हुआ पटाखों का आविष्कार 
  • जानिए शिवकाशी का संक्षिप्त इतिहास

मुंबई: एक दौर था जब दिवाली (Diwali) के दिन लोग जमकर पटाखें (Firecracker) फोड़ा करते थे। लेकिन अब देश के कई राज्यों में वायु प्रदूषण की स्थिति काफी गंभीर हो चूकी है। लोग खुली हवा में सांस नहीं ले पा रहे हैं। आलम ये है कि सरकार वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने की कोशिश में जुट गई है। नए दिशा-निर्देश (Guideline) लागू किये जा रहे हैं। पटाखों की खरीद-बिक्री पर पाबंदी (Ban on Firecracker) लगाने पर भी विचार किया जा रहा है। वहीं कई राज्यों में पटाखों को फोड़ने का समय तक तय कर दिया गया है। इसी विषय पर यह विस्तृत रिपोर्ट बनाई गई है। लेकिन पहले जानतें हैं कि जिन पटाखों को लेकर लोग अपनी अलग-अलग राय दे रहे हैं या फोड़ना चाहते हैं वो किस राज्य में बनाई जाती है। भारत का वो कौन सा राज्य है जिसे पटाखों का शहर भी कहा जाता है। आइये जानते हैं भारत में पटाखों का इतिहास… 

शिवकाशी का इतिहास
तमिलनाडु राज्य के विरुदुनगर जिले में स्थित शिवकाशी को देश में पटाखों के शहर के नाम से जाना जाता है। इस अकेले शहर में भारत में इस्तेमाल होने वाले पटाखों के कुल उत्पादन का 80 फीसदी हिस्सा तैयार होता है। शिवकाशी में तकरीबन 8000 से अधिक छोटे-बड़े पटाखों के कारखाने हैं। यही कारण है कि इस शहर में पटाखों का उत्पादन सबसे अधिक होता है। और इसे पटाखों का शहर भी कहा जाता है। ये जानकर आपको हैरानी होगी कि भारत पटाखा निर्माण के क्षेत्र में विश्व में दूसरे स्थान पर है। 

 
कहां और कैसे हुआ पटाखों का आविष्कार 
पटाखा फोड़ते वक्त हमेशा मन में यह ख्याल आता है कि आखिरकार इसका आविष्कार कहां और कैसे हुआ? पटाखे का आविष्कार भारत में नहीं हुआ है पटाखे का आविष्कार चीन में हुआ। इतिहासकार बताते हैं कि छठी सदी में चीन में पहली बार पटाखे का इस्तेमाल किया गया था और इसकी खोज भी एक दुर्घटना की वजह से हुई थी। एक रसोईया से गलती से आग पर पोटेशियम नाइट्रेट गिर गया जिससे आज की लपटें तेज हो गई और जब वह कोयल और सल्फर के साथ मिला तो बड़ा धमाका हुआ। यहीं से पटाखे की खोज हुई और उसके बाद चीन में पटाखा इस्तेमाल किया जाने लगा। 
 
 
भारत कैसे पहुंचा पटाखा 
छठी शताब्दी में चीन में पटाखे के आविष्कार के बाद भारत में इसका आगमन 15वीं सदी के करीब हुआ ऐसा इतिहासकारों का मानना है। कहा यह जाता है कि विदेश में होने वाली आतिशबाजी को लेकर उसे समय के भारतीय राजाओं में काफी क्रेज था और तत्कालीन राजाओं ने भारत में आतिशबाजी की शुरुआत 15वीं सदी में की थी। यानी पटाखे की खोज के बाद भारत में पटाखे के इस्तेमाल में करीब नौ सदी का लंबा वक्त लगा और 15 वीं सदी के बाद से पटाखे का इस्तेमाल भारत में बदस्तूर हो रहा है। 

 
देशभर में प्रदूषण फैलाने वाले पटाखों पर बैन
वायु प्रदूषण पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण स्पष्टीकरण में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि केवल हरित पटाखों के उपयोग की ही अनुमति है। 2021 के आदेश को देश भर में लागू करने का फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया है। 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हालांकि पटाखों के इस्तेमाल पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं है, लेकिन बेरियम साल्ट वाले पटाखों पर प्रतिबंध है। इसमें कहा गया कि इसका खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है और चेतावनी दी गई कि किसी भी चूक के लिए विभिन्न स्तरों पर शीर्ष अधिकारियों को “व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी ठहराया जाएगा”। तब इसे सिर्फ दिल्ली और NCR के लिए लागू किया गया था। लेकिन अब ये फैसला पूरे देश में लागू होगा। सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि पर्यावरण की रक्षा करना हर किसी का कर्तव्य है। राजस्थान सरकार को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एएस बोपन्ना और एमएम सुंदरेश की पीठ ने ये आदेश जारी किया है। 
 
बॉम्बे हाईकोर्ट ने तय की पटाखा फोड़ने की समयसीमा 
बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) के फैसले के मुताबिक, दिवाली के दौरान मुंबई में पटाखों की इजाजत होगी, लेकिन शाम 7 से 10 बजे तक ही पटाखे फोड़ने की अनुमति है। अदालत ने साफा कहा है कि बीमारी मुक्त वातावरण या पटाखों के साथ त्योहार मनाने के बीच एक विकल्प चुनना होगा। मुख्य न्यायाधीश डीके उपाध्याय और न्यायमूर्ति जीएस कुलकर्णी की पीठ ने स्पष्ट किया कि वे पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा रहे हैं। क्योंकि वो पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करने के विशेषज्ञ नहीं हैं। इसके लिए उन्होंने लोगों की अलग-अलग राय और भारतीय संविधान के तहत धार्मिक प्रथाओं के उनके अधिकार पर विचार करते हुए निर्णय सरकार पर छोड़ दिया।