Shrikant sarmalkar Funeral

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जितेंद्र मल्लाह @नवभारत
मुंबई: शिवसेना के पूर्व विधायक श्रीकांत सरमलकर (Shrikant Sarmalkar) का मंगलवार को बांद्रा पूर्व के टीचर कॉलोनी स्थित शमशान भूमि में अंतिम संस्कार (Funeral) किया गया। संघर्ष के प्रारंभिक दिनों में साए की तरह साथ रहने वाले सरमलकर शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे के सर्वाधिक विश्वासपात्र हुआ करते थे। बालासाहेब उन्हें शिवसेना की तलवार कहते थे। बुलेट भी जिस श्रीकांत का कुछ नहीं बिगाड़ पाई थी, वह सोमवार को अपनी बीमारी से हार गए। अंतिम यात्रा में नहीं पहुंचा ठाकरे परिवार (Thackeray family)।

अंतिम यात्रा में पहुंचे सभी जाति धर्म के लोग 
बता दें कि स्वस्थ रहने के दौरान प्रतिदिन शाम 6 बजे से रात 10 बजे तक खेरनगर स्थित अपने कार्यालय के पास सड़क पर खड़े रहकर श्रीकांत आम जनता की समस्या सुनते थे और उन्हें इंसाफ दिलाने का प्रयास करते थे। उनके इसी जनसंपर्क का प्रभाव मंगलवार को उनके अंतिम संस्कार के दौरान देखने को मिला। जब उनकी अंतिम यात्रा में सर्वधर्मीय, सर्व पक्षीय और सर्व प्रांतीय लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। श्रीकांत पिछले करीब एक दशक से भी अधिक समय से अस्वस्थ थे। इस दौरान उन्हें पक्षाघात भी हुआ, इतने लंबे समय तक लोगों से कटे रहने के बावजूद सैकड़ों लोग श्रीकांत को अंतिम विदाई देने पहुंचे। 

मोर्चा किंग के नाम से थे मशहूर
एच-पूर्व मनपा कार्यालय एवं आसपास के पुलिस थानों में अक्सर मोर्चा निकालने वाले श्रीकांत का अभिनेता दिलीप कुमार के बंगले पर निकाला गया चड्डी मोर्चा काफी चर्चित हुआ था।  दक्षिण मुंबई के ब्रेबोर्न स्टेडियम स्थित बीसीसीआई कार्यालय पर किए गए बहुचर्चित हमला मामले में भी उनकी प्रमुख भूमिका थी। इसी तरह शिवसेना से नारायण राणे को निकाले जाने के बाद राणे के समर्थन में ‘मातोश्री’ स्थित बाला साहेब के निवास के पास कई दिनों तक डेरा डाल कर पूरी शिवसेना को चुनौती देने वाले श्रीकांत पूरे देश में चर्चा में आ गए थे। 

जिस्म बुलेट लेकर जिंदा रहे श्रीकांत 
श्रीकांत ने अपने सियासी जीवन की शुरुआत 1980 में बालासाहेब ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना के शाखा प्रमुख के रूप में की थी। 1985 में, बालासाहेब ने सरमलकर को मनपा चुनाव का टिकट दिया था, जिसमें उन्हें जीत मिली थी। वो छगन भुजबल, नारायण राणे के साथ मनपा सदन में पहुंचने वाले शिवसेना के पहले तीन नगरसेवकों में शामिल रहे। वे 1992 तक पार्षद बने रहे। इस दौरान वर्ष 1987 में उन पर जानलेवा हमला हुआ था। एक अज्ञात हमलावर ने उन्हें मनपा मुख्यालय के बाहर गोली मारी थी। तब डॉक्टरों ने चमत्कार करते हुए उनकी जान बचा ली थी। हैरानी के बात ये है कि उनके शरीर से कई गोलियां निकाल ली गई थीं, लेकिन एक गोली निकालने में डॉक्टर नाकाम रहे थे। ठीक होने के बाद उन्हें इससे संबंधित एक प्रमाण पत्र दिया गया था ताकि हवाई अड्डे पर या अन्य महत्वपूर्ण जगहों पर मेटल डिटेक्टर की जांच से गुजरते समय श्रीकांत को परेशानी न हो। 

नहीं आए ठाकरे, राणे परिवार के सदस्य
श्रीकांत बाला साहेब ठाकरे के करीबी थे। लेकिन उन्होंने नारायण राणे के लिए बालासाहेब के खिलाफ बगावत की थी। हालांकि श्रीकांत बाद में शिवसेना में वापस लौट आए थे और वापस लौटने पर बाला साहेब ने उन्हें शिवसेना की तलवार की उपमा दी थी। उद्धव ने श्रीकांत को पार्टी का उपनेता बनाया था। लेकिन श्रीकांत की अंतिम यात्रा में ठाकरे या राणे परिवार के किसी सदस्य का नहीं पहुंचना, हैरान कर रहा था।