RTMNU, nagpur University

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    • 503 संलग्नित कॉलेज 
    • 123 किराये की इमारतों में 
    • 39 कॉलेज सिटी में 
    • 23 ग्रामीण में 

    नागपुर. राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय से संलग्नित 503 कॉलेजों में से अनेक कॉलेजों में वर्षों से साधन-सुविधाओं का अभाव है. ग्रामीण ही नहीं बल्कि शहरी भागों के कॉलेजों में भी प्राध्यापकों की कमी बनी हुई है. नियमित होने के बाद भी पार्ट टाइम की तरह चल रहे इन कॉलेजों में छात्रों की हाजिरी तो दर्ज होती है लेकिन छात्र नजर नहीं आते. जानकारी के अनुसार करीब 123 कॉलेज अब भी किराये की इमारत में चल रहे हैं. इनमें से कुछ कॉलेज तो पूर्णत: अनुदानित हैं. 

    एक दौर था जब नागपुर विवि से संलग्नित महाविद्यालयों की संख्या राज्यभर में सबसे अधिक थी. गोंडवाना विवि बनने के बाद कुछ संख्या कम हुई लेकिन अब भी अनेक कॉलेजों में सुविधाओं का अभाव है. खासतौर पर साइंस फैकल्टी के कॉलेजों में प्रयोगशाला का अभाव है. छात्र प्रैक्टिकल भी नोट बुक पर ही कर लेते हैं. वनस्पति शास्त्र में एमएससी पढ़ाने वाले कॉलेजों में वनस्पति उद्यान नजर नहीं आते. कुछ कॉलेजों ने तो उद्यान को बंद कर वहां स्टोर रूम बना लिया है. कम्प्यूटर लैब में महीनों-महीनों छात्र नजर नहीं आते. 

    टीचिंग-नॉन टीचिंग स्टाफ नहीं 

    किराये की इमारतों में चलने वाले कॉलेजों में नागपुर शहर में 39, ग्रामीण में 23, भंडारा जिले में 25, गोंदिया जिले में 20 और वर्धा जिले में 15 कॉलेज हैं. इनमें से अधिकांश कॉलेजों के पास आवश्यक साधन-सुविधाओं का अभाव है. कुछ संस्थाओं ने वेबसाइट पर एड्रेस गलत दे रखा है. इन कॉलेजों में छात्र प्रवेश तो लेते हैं लेकिन वर्षभर में गिनती की क्लॉसेस लगती हैं. इसकी मुख्य वजह कॉलेजों में प्राध्यापकों की कमी है. कुछ कॉलेजों में 2-3 नॉन टीचिंग स्टाफ ही है. बताया जाता है कि 54 विज्ञान पाठ्यक्रम चलाने वाले कॉलेज किराये की इमारत में हैं. वहीं 4 शारीरिक शिक्षण कॉलेज भी इसी तरह चल रहे हैं. नियमानुसार हर कॉलेज में खेल मैदान होना आवश्यक है. साथ ही लाइब्रेरी, कैंटीन भी जरूरी है लेकिन 2-4 कमरों में चल रहे इन कॉलेजों के लिए विवि के मापदंडों का पालन बेमानी है. 

    विवि का नियंत्रण नहीं 

    पिछले वर्षों में विवि का कॉलेजों पर नियंत्रण कम हो गया है. कोविड के 2 वर्ष ऑनलाइन में निकल जाने से ही स्थिति बिगड़ी है. विवि द्वारा समय-समय पर इन कॉलेजों को नोटिस जारी कर मापदंडों को पूर्ण करने की हिदायद दी जाती है लेकिन अब यह सिलसिला लगभग रुक गया है. राजनीतिक दबाव की वजह से उपकुलपति सहित अन्य अधिकारी भी कार्यवाही नहीं करते. वहीं स्थानीय जांच समिति (एलईसी) द्वारा निरीक्षण किया जाता है तो उन्हें भी ले-देकर ‘सेट’ कर लिया जाता है. यही वजह है कि वर्षों से लापरवाही चल रही है. जानकारों की मानें तो विवि के पास इन कॉलेजों की सूची तैयार है लेकिन जब भी कार्यवाही की बात आती है तो ‘नेताओं’ के फोन बजने लगते हैं.