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प्रतिकात्मक तस्वीर

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    नागपुर. बीते महीनों से सिटी में अंडरग्राउंड केबल की खराबी के कारण बिजली गुल की घटनाएं इतनी अधिक बढ़ गई हैं कि लोग परेशान हो गए हैं. बिजली गुल का कारण केबल फाल्ट को बताया जाता है और सबसे अहम बात यह कि इस फाल्ट को खोजने में ही महावितरण की टीम को 2-3 घंटे लग जाते हैं. तब तक सुधार नहीं हो पाता और नागरिक परेशान होते रहते हैं. बुधवार की रात करीब 1 बजे दक्षिण नागपुर के मानेवाड़ा इलाके की अनेक बस्तियों की बिजली गुल हो गई.

    कूलर-पंखे-एसी बंद होने से गर्मी और उमस से लोग परेशान हो गए. रात 3.35 बजे बिजली आई और ढाई घंटे से भी अधिक समय तक लोगों को जागते रहना पड़ा जिनके घर छोटे-छोटे बच्चे हैं वे अधिक परेशान रहे. घरों से बच्चों के रोने आवाजें आती रहीं. संबंधित बिजली कार्यालय से बताया गया कि केबल में खराबी आ गई है और टीम फाल्ट को खोज रही है. दक्षिण नागपुर में केबल में खराबी आने की घटनाएं आए दिन हो रही हैं. इससे नागरिकों को संदेह हो रहा है कि कहीं घटिया क्वालिटी के केबल तो डाले नहीं गए हैं क्योंकि अंडरग्राउंड केबलिंग 3-4 वर्षों पूर्व की ही है और इतनी जल्दी बार-बार खराबी आने का कारण समझ नहीं आ रहा है.

    खामला में 3 घंटे बंद

    गुरुवार को दोपहर 2 बजे खामला इलाके में भी बिजली गुल हो गई. भरी दोपहर बिजली गुल होने से सैकड़ों घरों में लोग त्रस्त हो गए. व्यापारी भी हालकान होते रहे. नागरिकों का कहना है कि बिजली का कोई ठिकाना नहीं रहता. कभी भी गुल हो जाती है. बिजली 4.50 बजे आई. लगभग 3 घंटे बिजली बंद रही. वहीं चिंचभुवन एरिया में भी सुबह 11 बजे बिजली गुल हुई जो दोपहर 1.10 बजे तक नहीं आई थी. संबंधित कार्यालय द्वारा भी केबल में खराबी को कारण बताया गया. सिटी के एक-दो इलाके ही बिजली गुल से परेशान नहीं हैं, अमू्मन इलाकों में इस तरह की शिकायतें आ रही हैं. 

    खुदाई से डेमेज हुए हैं केबल

    जानकारों का कहना है कि दरअसल सिटी के हर इलाके में कहीं केबल डालने तो कहीं सड़कों के निर्माण के लिए खुदाई के कार्य बड़े पैमाने पर हुए हैं. उस दौरान अनेक जगहों पर बिजली के केबलों को जेसीबी द्वारा डेमेज कर दिया गया था. केबल को जोड़ा गया है. गर्मी के दिनों में लोड बढ़ने से इस तरह के जोड़ में खराबी आ रही है. कई जगहों पर केबल बदलने का कार्य भी किया जाना है. बीते दो-ढाई वर्ष से कोरोना काल में नेटवर्क को बढ़ाने व इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने का काम भी नहीं हुआ है जिससे यह समस्या आ रही है. कुछ तो यह भी दावा कर रहे हैं कि इस वर्ष तो किसी तरह बिजली को इधर-उधर से शिफ्ट कर नागरिकों को अबाधित बिजली सेवा देने का प्रयास किया गया लेकिन अगर नेटवर्क नहीं बढ़ाया गया तो आगामी वर्ष में इससे भी बुरे हाल हो सकते हैं. आश्चर्य की बात यह है कि ऊर्जा मंत्री के शहर की ही हालत ऐसी है कि नागरिक परेशान हो रहे हैं. 

    लाखों खर्च पर रिजल्ट नहीं

    महावितरण में बड़े-बड़े पावर ट्रांसफार्मर के सुधार कार्य में लाखों रुपये खर्च किये जाते हैं लेकिन ऐसे ट्रांसफार्मर भी जल्द ही फिर खराब हो रहे हैं. एक सजग जनप्रतिनिधि ने बताया कि कुछ समय पहले हिवरीनगर सब-स्टेशन वाठोडा के पावर ट्रांसफार्मर में खराबी आ गई थी. इसे सुधारने भेजा गया लेकिन सुधार के बाद भी वह 15 दिनों में दोबारा खराब हो गया जिसके चलते कई बस्तियों में ट्रिपिंग हुई. ये पावर ट्रांसफार्मर 1 से 2 करोड़ रुपये के आते हैं और खराबी को सुधारने के लिए 5-6 लाख रुपये महावितरण खर्च करती है. इतना रुपया खर्च करने के बाद भी उक्त ट्रांसफार्मर 15 दिनों में भी फेल हो गया था. इससे सुधार कार्य पर भी संदेह उत्पन्न होता है. उन्होंने तो आरोप लगाया कि कामचलाऊ सुधार कर दोबारा फिट कर दिया गया होगा. पावर ट्रांसफार्मर का वजन भी टनों से होता है. खराब होने पर उसे सुधार के लिए भेजने और दोबारा लगाने में भारी मशक्कत करनी पड़ती है. ऐसे मामलों में वरिष्ठ अधिकारियों को विशेष नजर रखने की जरूरत है.