Nagpur High Court
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    नागपुर. प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत एनएमआरडीए और प्रन्यास द्वारा  अलग-अलग स्थानों पर फ्लैट स्कीम तैयार की गई. किंतु योजना के तहत मिल रहे फ्लैट काफी महंगे होने के कारण राशि का जुगाड़ नहीं हो पा रहा है. अत: कुछ समय देने की गुजारिश करते हुए खुशाल बमनोते और अन्य की ओर से हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई.

    इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश एमएस जावलकर ने याचिकाकर्ताओं को 10 जून तक डिमांड के अनुसार राशि जुटाने का अंतिम मौका प्रदान कर सुनवाई स्थगित कर दी. याचिका पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं में से खुशाल बमनोते, गोवर्धन बंसोड और केशव बाजड ने याचिका वापस लेने की अर्जी दायर की. कुल 8 लोगों की ओर से याचिका दायर की गई.

    समय के भीतर निधि भर पाना संभव नहीं

    इन तीनों याचिकाकर्ताओं का मानना था कि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत लॉटरी से उन्हें फ्लैट का आवंटन हुआ. इसके लिए प्रन्यास की ओर से डिमांड जारी किया गया. डिमांड में राशि भरने की अंतिम तारिख निश्चित की गई किंतु फ्लैट की राशि और डिमांड की तारीख को देखते हुए इतने समय में निधि भर पाना संभव नहीं है. लेकिन यदि प्रन्यास द्वारा कुछ अधिक समय प्रदान किया गया तो बैंक से कर्ज लेने का प्रयास किया जा सकता है. कर्ज मिलने पर याचिकाकर्ता फ्लैट की राशि भरने की स्थिति में आ सकते हैं. सुनवाई के दौरान प्रन्यास की ओर से पैरवी कर रहे वकील ने बताया कि समय बढ़ाकर देने की नोटशीट पहले ही संबंधित प्राधिकारी के पास भेज दी गई है जिस पर जल्द ही फैसला हो सकता है.

    निधि नहीं दी तो नियमों के अनुसार लें निर्णय

    अदालत ने आदेश में कहा कि मामले को देखते हुए याचिकाकर्ताओं को 2 माह का समय दिया जाना चाहिए जिससे वे आवश्यक कर्ज प्राप्त कर सकेंगे. इसी से जुड़ी अन्य याचिका में अदालत ने 10 जून तक का समय बढ़ाकर देने के आदेश दिए थे. अत: इन याचिकाकर्ताओं को भी 10 जून तक समय बढ़ाकर देने के आदेश अदालत ने दिए. यदि समय के भीतर निधि जमा नहीं की गई तो नियमों के अनुसार निर्णय लेने की एनएमआरडीए और प्रन्यास को स्वतंत्रता भी प्रदान की गई.

    उल्लेखनीय है कि गत सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं ने कुछ कारणों से बैंक से कर्ज नहीं मिलने की जानकारी अदालत को दी थी. साथ ही राज्य सरकार से मदद की गुहार भी लगाई थी. इस पर अदालत ने किस तरह की परेशानियां आ रही है. इसका खुलासा करने के आदेश याचिकाकर्ताओं को दिए थे. अदालत का मानना था कि यदि परेशानी उजागर होगी तो राज्य सरकार की ओर से मदद की जा सकती है.