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नागपुर. शिक्षा विभाग ने अनुदानित, बिना अनुदानित सहित सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को अनिवार्य किया. शुरुआत में टेट का पासिंग परसेंटेज काफी कम था लेकिन टेट उत्तीर्ण नहीं होने पर हाथ में आई नौकरी जाने के डर से ही राज्यभर में अपात्र उम्मीदवारों से रकम लेकर उन्हें पात्र बनाया गया. मामले की जांच पुणे पुलिस की साइबर सेल कर रही है. इसमें नागपुर जिले सहित विभाग के भी अनेक शिक्षकों पर गाज गिरने की संभावना व्यक्त की जा रही है.

इस मामले में आईएएस अधिकारी की गिरफ्तारी के बाद से बोगस तरीके से टेट पास करने वालों में हडकंप मच गया है. शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की नियुक्ति के लिए टीईटी अनिवार्य किया है लेकिन इसे 13 फरवरी 2013 से अनिवार्य किया गया. डीएड, बीएड के साथ ही टेट पात्र होने पर ही शिक्षकों को मान्यता मिलती है. नियम लागू होने के बाद इस परीक्षा में पात्र होने के लिए तीन वर्ष की कालावधि दी गई. लेकिन परीक्षा में उत्तीर्ण होने का प्रमाण बेहद कम होने से इसकी समयावधि को और बढ़ाया गया. 

राज्यभर में तार जुड़े होने के संकेत

इससे पहले विभाग में वर्ष 2000 से शिक्षण सेवक पद पर भर्ती शुरू की गई. उस वक्त तक टेट अनिवार्य नहीं था. पश्चात 2 मई 2012 से नौकरी भर्ती पर रोक लगा दी गई. केवल 9वीं, 10वीं के लिए विशेष तौर पर गणित,अंग्रेजी और साइंस के शिक्षकों को ही मान्यता दी गई. यह मान्यता सीधे तौर पर मंत्रालय से दी जाती रही है. शिक्षक भर्ती पर रोक से पहले राज्यभर में शिक्षण सेवकों की भर्ती हो चुकी थी. बाद में इन शिक्षक सेवकों के लिए भी टेट अनिवार्य किया गया है.

माना जाता है कि नौकरी हाथ से जाने के डर से ही टेट में उत्तीर्ण होने के लिए फर्जी तौर पर परीक्षा में पास कराने वाला रैकेट सक्रिय हुआ. नागपुर विभाग में भी करीब 1,200-1,300 शिक्षकों की नियुक्ति हुई. अब जब पुणे साइबर सेल ने राज्यभर के 7,800 शिक्षकों की सूची शिक्षा विभाग को सौंपी है तो इसमें विभाग में शिक्षकों का समावेश होना तय है. यही वजह है कि शिक्षा विभाग के तत्कालीन उप सचिव सुशील खोडवेकर की गिरफ्तारी के बाद से समूचे शिक्षा विभाग में हडकंप मचा हुआ है.