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  • पुणे में 2028 तक ह्यूमनॉइड रोबोट तैयार करने की कोशिश
  • इंसानों जैसी तार्किकता पैदा करना वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती
शैलेंद्र सिंह @ नवभारत
पुणे: अभिनेता रजनीकांत अभिनीत फिल्म ‘रोबोट’ का चिट्टी आज भी लोगों के मन मस्तिष्क में छाया हुआ है। इस फिल्म में एक रोबोट के भीतर एहसास मसलन सोचने, समझने और तमाम निर्णय लेने जैसी भावनाएं पैदा हो गई थीं। इसी तर्ज पर डीआरडीओ के वैज्ञानिक भी पुणे में एक ह्यूमनॉइड (मानव रूपी) रोबोट तैयार कर रहे हैं। लेकिन वैज्ञानिकों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि मानव इंद्रियों और उसकी घटक बुद्धि को कृत्रिम रूप से रोबोट्स में कैसे विकसित किया जाए। यह शोध पुणे स्थित डीआरडीओ में चल रहा है और वहां के वरिष्ठ वैज्ञानिकों ने विश्वास जताया है कि यह 2028 तक सफल हो जाएगा। 

मानव रहित मशीनों के विकास पर जोर
पुणे शहर के पाषाण में डीआरडीओ (रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन) का कार्यालय है। यहां के वरिष्ठ वैज्ञानिक भविष्य में आर्म्ड फोर्सेज के लिए आवश्यक उन्नत प्रणालियों पर लगातार शोध कर रहे हैं। डीआरडीओ में आर्ममेंट एंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग सिस्टम के निदेशक डॉ. शैलेन्द्र गाडे ने समय के अनुसार मानव रहित मशीनों के विकास पर जोर दिया। जिसमें क्वाट्रपेड (चार पैरों वाले) मशीनों और विभिन्न प्रकार के रोबोट बनाने का मिशन शुरू किये गए हैं। सबसे महत्वाकांक्षी परियोजना एक ह्यूमनॉइड रोबोट बनाने की चुनौती है जो बिल्कुल इंसान की प्रतिकृति हो। डीआरडीओ के वैज्ञानिकों का मानना है कि 2028 तक पुणे शहर के डीआरडीओ में ऐसा ह्यूमनॉइड तैयार कर लिया जायेगा। 

 

वैज्ञानिकों और कई कंपनियों से ली जाएगी मदद
डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने अब तक कई तरह के रोबोट बनाए हैं, लेकिन अब उन्होंने ह्यूमनॉइड बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। इस प्रोजेक्ट के लिए कई वैज्ञानिक और निजी कंपनियों की मदद भी ली जा रही है। वैज्ञानिकों में मुख्य रूप से बेंगलुरु, हैदराबाद और पुणे के वैज्ञानिकों शामिल हैं। साथ ही 15 स्टार्टअप और 9 बड़ी कंपनियां भी इसमें हिस्सा ले सकती हैं। 

संवेदना और बुद्धि पर गहन शोध
डीआरडीओ के आर्मामेंट एंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग सिस्टम के महानिदेशक डॉ. शैलेन्द्र गाडे और डीआरडीओ के निदेशक डॉ. मकरंद जोशी ने कहा कि रोबोट बनाना तो आसान है, ह्यूमनॉइड बना भी आसान है। लेकिन मानव मस्तिष्क की संदेश प्रणाली की सूक्ष्म बारीकियों को एक कृत्रिम मानव में डालना सबसे बड़ी चुनौती है। इसके अलावा, मनुष्य की निर्णय लेने की क्षमता उसके विवेक पर निर्भर करती है। इसे कृत्रिम रूप से कैसे बनाया जाए यह हमारे सामने कठिनाई है। इस पर शोध जारी है और उम्मीद है कि 2028 तक सफलता मिल सकती है। 

डॉ. शैलेन्द्र गाडे, निदेशक, (आर्ममेंट एंड कॉम्बैट इंजीनियरिंग सिस्टम, डीआरडीओ, पुणे) ने बताया जब कोई इंसान सड़क पार करता है तो वह अपने दिमाग और विवेक का इस्तेमाल करता है। इस भावना को ह्यूमनॉइड में डालने के लिए इसमें सैकड़ों अलग-अलग तरह के सेंसर लगाए जायेंगे। हमारा शोध जारी है। क्या सारे काम बिना इंसान के होने चाहिए? यह भी हमारे सामने एक बड़ा सवाल है। हम वैज्ञानिकों के बीच एक और राय है कि इंसान की भागीदारी हर जगह होनी चाहिए, बिना इंसानी भागीदारी के ह्यूमनॉइड अथवा स्वचालित रोबोट का उपयोग करना असंभव है। 

डॉ. मकरंद जोशी, निदेशक, अनुसंधान एवं विकास विभाग (डीआरडीओ) ने बताया मान लीजिए कि यदि अंडा और एक पत्थर उठाना चाहते हैं, तो एक रोबोट और एक इंसान इसे कैसे उठाएंगे। इसके बीच एक बड़ा अंतर है। इंसान इसे अपनी बुद्धि, विवेक के साथ कितना बल लगाना है, लगाएगा। इन्हीं वस्तुओं को रोबोट के उठाने में अंतर होगा, क्योंकि उसे पता नहीं है कि इन वस्तुओं को उठाने में कितना बल प्रयोग करना है और कितनी सावधानी बरतनी है। इसके लिए सेंसर बनाना भी बेहद कठिन है। इन सभी चीजों को कृत्रिम मानव में डालते समय एआई तकनीक का इस्तेमाल किया जायेगा।