millet bajra

Loading

लखनऊ: श्रीअन्न (Shree Anna) अर्थात मिलेट्स या मोटे अनाज) छोटे किसानों का संबल बनेंगे। सिर्फ आर्थिक रूप से ही नहीं, सेहत के भी लिहाज से भी। छोटे किसानों (Farmers) में लघु और सीमांत किसान आते हैं। इनकी संख्या ही सर्वाधिक है। इनके पास ही अपेक्षाकृत संसाधन कम है। इसके नाते इनमें से कई को  बोआई के सीजन में कृषि निवेश के संकट से जूझना पड़ता है। फसल के अनुरूप निवेश न लगने से उपज और आय पर असर पड़ता है। मौसम की मार अलग से। इनकी सभी समस्याओं का हल बहुत हद कम समय और लागत में, हर तरह की भूमि में रोगों के प्रति प्रतिरोधी मोटे अनाजों (बाजरा, ज्वार, सावा, कोदो, मडुआ आदि) की खेती है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Chief Minister Yogi Adityanath) की अगुवाई वाली प्रदेश सरकार अंतरराष्ट्रीय मिलेट वर्ष-2023 (International Millet Year 2023) के मद्देनजर और प्रदेश के अधिसंख्यक किसानों के हित में मोटे अनाजों की खेती पर खासा जोर दे रही हैं।

करीब हफ्ते भर पहले दिल्ली में आयोजित वैश्विक श्रीअन्न सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि श्रीअन्न की खेती से देश के 2.5 करोड़ लघु-सीमांत किसान लाभान्वित होंगे। स्वाभाविक है कि कृषि बहुल उत्तर प्रदेश को इस पहल का सर्वाधिक लाभ मिलेगा। इसकी बहुत बड़ी वजह है मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की खेतीबाड़ी और किसानों के संभव हित के प्रति निजी दिलचस्पी। 

 खरीद के लिए क्रय केंद बनेंगे

उत्तर प्रदेश में खेतीबाड़ी की रही बात तो 2021 की जनगणना के मुताबिक यहां की आबादी करीब 20 करोड़ थी। इसमें से 15.53 करोड़ (75 फीसदी) लोग प्रदेश के करीब 11 लाख गांवों में रहते हैं। स्वाभाविक रूप से बढ़ती आबादी के अनुरूप यह संख्या भी बढ़ी होगी। प्रदेश के 90 फीसदी से अधिक किसान लघु-सीमांत श्रेणी में आते हैं। ऐसे में श्रीअन्न की खेती अपने नाम के ही अनुरूप इन किसानों के ‘श्री’ में कुछ हद तक वृद्धि कर सकती है। योगी सरकार की यही मंशा भी है। इसके लिए वह पूरे शिद्दत से प्रयास भी कर रही है। ऐसे किसानों को बेहतर उपज और रोग प्रतिरोधी बीजों के मिनीकिट का निशुल्क वितरण। सामान्य किसानों को इसी तरह के बीज पर 50 फीसदी अनुदान। लोग इन अनाजों की खूबियों से परिचित हों इसके लिए मीडिया के हर प्लेटफार्म पर आक्रामक प्रचार अभियान। मोटे अनाजों को केंद्र में रखकर ‘ईट मिलेट’ जैसे कार्यक्रम इसी की कड़ी हैं। उत्पादन होने पर किसानों को इनका वाजिब दाम दिलाने के लिए सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य पर इनके खरीद की घोषणा पहले ही कर चुकी है। जिन जिलों में इनका रकबा एक तय सीमा तक होगा वहां इनकी खरीद के लिए क्रय केंद बनेंगे।

कुपोषण अकाल मौतों की सबसे बड़ी वजह

रही सेहत की बात तो स्टेट ऑफ फंड एंड न्यूट्रिशन इन द वर्ल्ड रिपोर्ट-2022 के अनुसार, विश्व में करीब 77 करोड़ लोग कुपोषण की चुनौती का सामना कर रहे हैं। भारत में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 22.4 करोड़ है। नवी मुंबई स्थित अपोलो हॉस्पिटल की वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर तृप्ति दुबे के मुताबिक, कुपोषण अकाल मौतों की सबसे बड़ी वजह हैं। उत्पादक उम्र में होने वाली ऐसी मौतों का संबंधित व्यक्ति के घर, समाज और देश की उत्पादकता और अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। महिलाएं और बच्चों के स्वास्थ्य, प्रसव के दौरान शिशु एवं मातृ की मौत दर में भी कुपोषण की अहम भूमिका है। ऐसे में कुपोषण दूर करने वाली हर पहल का स्वागत किया जाना चाहिए।