Supreme court
सुप्रीम कोर्ट (File Photo)

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    नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि राज्य को अपने कर्मचारियों के लिए नीति बनाते समय व्यक्ति की गरिमा और निजता के एक तत्व के रूप में पारिवारिक जीवन की रक्षा के महत्व पर उचित ध्यान देना चाहिए। इसने कहा कि निजता, गरिमा और व्यक्तियों के पारिवारिक जीवन के अधिकारों में राज्य का हस्तक्षेप तर्कसंगत होना चाहिए।

    न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति विक्रमनाथ की पीठ ने केरल उच्च न्यायालय के उस आदेश की पुष्टि की जिसमें अंतर-आयुक्त स्थानान्तरण (आईसीटी) को वापस लेने वाले एक परिपत्र की वैधता को यह कहते हुए बरकरार रखा गया था कि केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सीमा शुल्क आयुक्तालय निरीक्षक (केंद्रीय उत्पाद शुल्क, निवारक अधिकारी और परीक्षक) समूह ‘बी’ पद भर्ती नियम 2016 में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

    पीठ ने कहा, “इसलिए जब हम केरल उच्च न्यायालय की खंडपीठ के फैसले को बरकरार रखते हैं तो हम यह प्रतिवादियों (केंद्र) पर छोड़ देते हैं कि वे जीवनसाथी के तबादले, दिव्यांगों और अनुकंपा आधार को समायोजित करने संबंधी नीति पर फिर से विचार करे।”  इसने कहा कि वर्तमान मामले में राज्य दो उद्देश्यों से निर्देशित रहा है: पहला, आईसीटी के दुरुपयोग की संभावना और दूसरा, सेवा में होने वाली विकृति जो मुकदमेबाजी की अधिकता को जन्म देती है।

    न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ द्वारा लिखे गए 50 पन्नों के फैसले में पीठ ने कहा कि स्थानांतरण और पदस्थापना से संबंधित कार्यकारी निर्देश और प्रशासनिक निर्देश स्थानांतरण या पदस्थापना का दावा करने का कोई अपरिहार्य अधिकार प्रदान नहीं करते हैं। न्यायालय ने कहा कि राज्य को अपने कर्मचारियों के लिए नीति बनाते समय व्यक्ति की गरिमा और निजता के एक तत्व के रूप में पारिवारिक जीवन की रक्षा के महत्व पर उचित ध्यान देना चाहिए। इसने यह भी कहा कि निजता, गरिमा और व्यक्तियों के पारिवारिक जीवन के अधिकारों में राज्य का हस्तक्षेप तर्कसंगत होना चाहिए। (एजेंसी)