भगवान विष्णु की ‘इस’ विशेष नगरी में करें पितृपक्ष की ‘यह’ विशेष विधि, जहां भगवान राम ने किया था पिता दशरथ का पिंडदान

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सीमा कुमारी

नवभारत डिजिटल टीम: सनातन धर्म में ‘पितृपक्ष’ (Pitru Paksha) का विशेष महत्व है। हिंदू परंपरा में पितृपक्ष, अपने पितरों को याद करने का एक प्रमुख अवसर है। इस साल ‘पितृपक्ष’ (Pitru Paksha 2023) 29 सितंबर, शुक्रवार से शुरू हो चुकी है, जो कि 14 अक्टूबर तक रहेंगे। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या तक के 16 दिनों को पितृपक्ष कहते हैं जिसमे हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं। जब बात आती है श्राद्ध कर्म की तो बिहार स्थित ‘गया’ (Gaya) का नाम बड़ी प्रमुखता व आदर से लिया जाता है। इन दिनों हर साल विष्णु जी की नगरी गया धाम में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला लगता है। इसकी शुरुआत होने के साथ ही पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए पिंडदान शुरू होता है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला 2023 के दौरान देश-विदेश से आए यात्रियों के ठहरने को लेकर गया शहर के गांधी मैदान में टेंट सिटी का निर्माण कराया गया है। बताया जा रहा है कि एक साथ लगभग 25 सौ तीर्थ यात्री यहां पर ठहर सकेंगे। इसके अलावा अन्य कई सुविधाएं भी दी गई है। पितृपक्ष मेला में आने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए आवासन, साफ-सफाई एवं बिजली की समुचित व्यवस्था की गई है।  

पितृपक्ष के दौरान अक्सर वैसे यात्री भी आते हैं जिनके ठहरने के लिए होटल या धर्मशाला की सुविधा नहीं होती है। ऐसे में टेंट सिटी का निर्माण कराया गया है, जो पूरी तरह से निशुल्क है। यहां जो भी यात्री ठहरेंगे, उनसे किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाता। इस विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला के अवसर पर यात्रियों की सुविधा के मद्देनजर स्पेशल ट्रेनें भी चलाई जा रही हैं।  

सनातन काल से श्राद्ध की परंपरा चली आ रही है। इसका उल्लेख वेदों पुराणों से मिलता है। ऋषियों मुनियों ने श्राद्ध के महत्व को माना है। शास्त्रों के अनुसार हर मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं, देव ऋण, गुरु ऋण तथा पितृ ऋण (माता-पिता)। इनमें श्राद्ध के माध्यम से ही पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।

‘गया’ (Gaya) समूचे भारत वर्ष में हीं नहीं सम्पूर्ण विश्व में दो स्थान श्राद्ध तर्पण हेतु बहुत प्रसिद्ध है। वह दो स्थान है बोधगया और विष्णुपद मन्दिर। विष्णुपद मंदिर वह स्थान जहां माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु के चरण उपस्थित है, जिसकी पूजा करने के लिए लोग देश के कोने-कोने से आते हैं। गया में जो दूसरा सबसे प्रमुख स्थान है जिसके लिए लोग दूर दूर से आते है वह स्थान एक नदी है, उसका नाम “फल्गु नदी” है। ऐसा माना जाता है कि मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने स्वयं इस स्थान पर अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान किया था।  

तब से यह माना जाने लगा की इस स्थान पर आकर कोई भी व्यक्ति अपने पितरों के निमित्त पिंड दान करेगा तो उसके पितृ उससे तृप्त रहेंगे और वह व्यक्ति अपने पितृ ऋण से उऋण हो जायेगा । इस स्थान का नाम ‘गया’ इसलिए रखा गया क्योंकि भगवान विष्णु ने यहीं के धरती पर असुर गयासुर का वध किया था। तब से इस स्थान का नाम भारत के प्रमुख तीर्थ स्थानों में आता है और बड़ी ही श्रद्धा और आदर से “गया जी” बोला जाता है।

जानकारों का मानना है कि हिंदुओं के साथ-साथ ‘गया’ (Gaya) तीर्थ बौद्ध धर्म के लोगों के भी पवित्र स्थल है। बोधगया को भगवान बुद्ध की भूमि भी कहा जाता है। बौद्ध धर्म के अनुयायियों ने अपनी शैली में यहां कई मंदिरों का निर्माण करवाया है।