अब आ गया कोरोना का बेहद खतरनाक ओमिक्रॉन वैरिएंट, अत्यंत सतर्कता की जरूरत

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    यद्यपि कोरोना महामारी से निपटने के लिए सरकार ने यथासंभव प्रयत्न किए और लगने लगा था कि अब हालात सामान्य होने जा रहे हैं व जीवन फिर पटरी पर आ जाएगा लेकिन इसी दौरान द. अफ्रीका में कोरोना का नया वैरिएंट ओमिक्रॉन आतंक बनकर छा गया. यह 10 देशों में पहुंच गया है और इसके अन्यत्र फैलने की भी आशंका है. 

    वायरस का यह स्वरूप भारत में दूसरी लहर के दौरान आतंक मचानेवाले डेल्टा वैरिएंट से 5 गुना अधिक खतरनाक है. ओमिक्रॉन के खौफ से न्यूयार्क में आपातकाल की घोषणा हो गई है. वैज्ञानिकों ने कहा कि महामारी दोबारा आ सकती है. नये वेरिएंट के आगे बूस्टर भी फेल है.

    पिछले 18 महीनों में कोरोना वायरस ने 50 लाख से ज्यादा लोगों की जान ली. भारत में ही पांच लाख से ज्यादा लोगों को इस वायरस ने लील लिया. लगातार ये सूचनाएं भी आ रही हैं कि बड़ी संख्या में हुई मौतें रिकार्ड में ही नहीं आ पाई हैं. हो सकता है मौतों का असल आंकड़ा कई गुना ज्यादा हो. कोरोना को हल्के में लेने की चूक इस बार नहीं होनी चाहिए.

    5 गुना ज्यादा खतरनाक

    यूरोप, अमेरिका समेत दुनिया के कई देश चौथी, पांचवीं लहर से जूझ रहे हैं और कितनी लहरें आएंगी, किसी को अंदाज नहीं है. दक्षिण अफ्रीका, बोत्सवाना और हांगकांग में मिले कोरोना वायरस के नए स्वरूप ने चिंता को और बढ़ा दिया है. क्योंकि वायरस का यह स्वरूप भारत में दूसरी लहर के दौरान तबाही मचाने वाले डेल्टा वेरिएंट से पांच गुना ज्यादा खतरनाक है. वायरस में मिले 50 से ज्यादा बदलावों को देख विशेषज्ञ चकराए हुए हैं.

    पूरा टीकाकण अभियान खतरे में पड़ जाएगा

    शुरूआती जांच में लग रहा है कि नया स्वरूप वुहान में मिले वायरस के आधार पर बनी वैक्सीन की प्रतिरक्षा को भी चकमा दे रहा है. अगर ये बात सही निकली, तो भारत जैसे बड़े देशों में चला पूरा कोरोना टीकाकरण अभियान खतरे में पड़ जाएगा. अब चिंता ये होनी चाहिए कि ये वायरस फैले ना. कम से कम भारत में इसके प्रवेश को रोकने की हर संभव कोशिश होनी चाहिए. 

    जिस तरह से कारोबार और देश-राज्यों की सीमाओं को खोलने की मुहिम चल रही है, उसने संक्रमण फैलने के खतरे को कहीं ज्यादा बढ़ा दिया है. किसी एक देश से आ रही उड़ानों को रोकने उपाय नाकाफी रहे हैं, ये कोरोना की पिछली लहरों के वक्त हम देख चुके हैं. देश के अंदर ही हर तरह के आयोजन, उत्सवों को अनुमति देने के नुकसान सामने आने लगे हैं. 

    कई शहरों में कोरोना विस्फोट हो रहे हैं. कुछ संस्थानों में हुए आयोजन कोरोना के सुपर स्प्रेडर साबित हुए. संक्रमित हुए ज्यादातर लोगों ने कोरोना की दोनों वैक्सीन ले रखी थी. वैज्ञानिकों की लगातार चेतावनियोें के बाद भी लोग ये नहीं समझ रहे कि केवल वैक्सीन उन्हें कोरोना संक्रमण से नहीं बचा सकती. 

    देश इस वक्त कोरोना के मोर्चे पर कई और चुनौतियों से जूझ रहा है. लोग कोरोना जैसे लक्षणों के बावजूद कोरोना जांच करवाने नहीं आ रहे. वहीं टीका लगवाने को लेकर भी पहले जैसी गंभीरता गायब है, जबकि अब तक के हर अध्ययन में ये साबित हुआ है कि भारत में दिए जा रहे दोनों टीके कोरोना संक्रमण को गंभीर होने से रोकते हैं. 

    मौत का खतरा भी टालते हैं. देश के कई शहरों और गांवों ने अपनी तरफ से टीकाकरण को अनिवार्य करने की दिशा में कदम उठाए हैं. ज्यादातर निजी कंपनियों ने अपने कर्मचारियों के लिए वैक्सीन के दोनों डोज अनिवार्य कर दिए हैं, ताकि उनके दफ्तर, दुकान या कारखानों में कोरोना महामारी को रोका जा सके.

    बूस्टर डोज का जल्द फैसला जरूरी

    अब वक्त आ गया है कि सरकार को टीकाकरण के मामले में सख्त फैसले लेने होंगे. सरकारी सुविधाओं से लेकर बाकी छूट से टीकाकरण को जोड़ना होगा. देश में कोरोना टीकों की पर्याप्त उपलब्धता है, इसलिए अनिवार्य टीकाकरण के बावजूद टीकों का संकट नहीं होगा. यूरोप के कई देशों ने भी कोरोना टीकाकरण को अनिवार्य करने की दिशा में पहल शुरू कर दी है. 

    जितनी तेजी से टीकाकरण बढ़ाएंगे, वायरस फैलने और उसके स्वरूप में बदलाव या म्यूटेशन का खतरा उतना घटेगा. बच्चों, किशोरों के अलावा वृद्धों, कोरोना वारियर्स को वैक्सीन का बूस्टर डोज देने के बारे में भी जल्द फैसला अब जरूरी है. इनमें से ज्यादातर को छह से आठ महीने पहले अंतिम डोज लगा है. इस बात की आशंका है कि उनके शरीर में एंटीबॉडी कमजोर हो चुकी होगी. कोरोना योद्धाओं को पूरी सुरक्षा दिए बिना हम वायरस से निर्णायक युद्ध नहीं कर पाएंगे.