राज्य में उखाड़ पछाड़ की राजनीति

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    महाराष्ट्र में जिस प्रकार की राजनीति चल रही है, उससे जनता की समस्याओं का समाधान होने की उम्मीद नहीं है. वास्तव में महाविकास आघाड़ी सिर्फ एक ही एजेंडा पर चल रही है कि बीजेपी को सत्ता से दूर रखा जाए. सरकार में शामिल तीनों पार्टियों शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस के बीच कोई सैद्धांतिक तालमेल नहीं है. इतने पर भी यह बेमल गठबंधन इस उद्देश्य से बनाया गा कि सबसे अधिक विधायकों वाली अनोखी पार्टी बीजेपी को बाहर रखकर ऐसी सरकार बना ली जाए जिसमें अपना स्वार्थ साधन किया जा सके.

    महाराष्ट्र के पूर्व गृहमंत्री अनिल देशमुख पर वसूली का आरोप लगाने पर उन्हें इस्तीफा देकर जांच के लिए पेश होना पड़ा. सचिन वझे ने माफी का गवाह (सरकारी गवाह) बनने की तैयारी दर्शाई है. यदि ऐसा हुआ तो और भी तथ्य सामने आएंगे. केंद्रीय जांच एजेंसियां भी सक्रियता दिखा रही हैं. 

    राउत का वेंकैया को पत्र 

    शिवसेना सांसद संजय राऊत ने सीधे राज्यसभा के सभापति व उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू को पत्र लिखकर केंद्रीय एजेंसियों की जांच और दबाव के खिलाफ आवाज उठाई हैं. राजनीति में भ्रष्टाचार और ईडी द्वारा जांच के मुद्दे को लेकर पक्ष-विपक्ष में टकराव जारी है. दूसरी ओर जनता यह चाहती है कि जांच एजेंसियों को सहयोग दिया जाए तथा उन्हें अपना काम करने दिया जाए. आखिर भ्रष्टाचार को क्यों प्रश्रय दिया जाना चाहिए. पहले भी तो तेलगी स्टैम्प घोटाले, घरकुल योजना में मंत्रियों पर कार्रवाई हुई थी.

    अपने बचार के लिए राजनीति की आड क्यों ली जानी चाहिए. भ्रष्टाचार के मुद्दे पर विपक्ष सरकार को घेरने की कोशि करता है तो राज्य सरकार का एक मंत्री इसे चुनौती देते हुए जांच एजेंसियों की नीयत पर शक जाहिर करता है. पहले भी एक अभिनेता के बेटे के ड्रम पार्टी में शामिल होने के विवाद में मंत्रियों ने जांच एजेंसी के अधिकारी के खिलाफ मोर्चा बांध लिया था. निष्पक्षता का तकाजा है कि जांच एजेंसियों को अपना काम करने दिया जाए.

    केंद्र सरकार से टकराव

    शिवसेना सांसद संजय राऊत के उपराष्ट्रपति को लिखे पत्र से महाविकास आघाडी और केंद्र की बीजेपी की सरकार के विरुद्ध लड़ाई और तेज हो गई है. प्रधानमंत्री मोदी ने यूपी-बिहार के श्रमिकों को मुंबई से वापस भेजने और उन राज्यों से कोरोना फैलाने का जो आरोप लगाया, उससे महाराष्ट्र में रोष बढ़ा है. कांग्रेस ने यह दलील दी है कि लॉकडाउन में मजदूर भूखे मर जाते इसलिए उन्हें मानवीय आधार पर वापस भेजना जरूरी था. जब सिर पर छत और काम न रहे तो पैसा पास नहीं होने से मजदूर मुंबई में रहकर क्या करते.

    सरकार की ओर से या तो संजय राऊत बोलते हैं या फिर नवाब मलिक दूसरी ओर बीजेपी की ओर से पूर्व सांसद किकरीट सोमैया आक्रामकता दिखाते रहे हैं. इतनी खटपट के बाद भी आश्चर्यजनक है कि प्रधानमंत्री मोदी ने राज्यसभा में भाषण के दोरान बार बार एनपीसी अध्यक्ष शरद पवार की तारीफ की. इसका अर्थ क्या है? पवार बार बार कह चुके हैं कि वे बीजेपी से कोई सहयोग नहीं करेंगे तथा महाविकास आघाडी सरकार फेबिकाल के जोड़ जैसी मजबूत है. दूसरी ओर बीजेपी नेता अपनी कल्पना में डूबे हुए हैं. बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष चंद्रकांत पाटिल ने भविष्यवाणी की कि 10 मार्च का 5 राज्यों के चुनाव नतीजे आने के साथ राज्य की सरकार बदल जाएगी.