शर्ट भी पैंट से बाहर रहती है, केजरीवाल के वकील की अनोखी दलील

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वकील को फीस इसीलिए दी जाती है कि वह तरह-तरह की बातें बनाए, लफ्फाजी करे और अपने मुवक्किल को मुसीबत से बचाए।  कुछ वकील ऐसे भी होते हैं जो कानूनी की बजाय भावनात्मक दलीलें देकर जज को पिघलाने की कोशिश करते हैं।  इस तरह के तर्क का न सिर होता है न पैर फिर भी उसमें इमोशन का फालूदा जरूर होता है।  दिल्ली के मुख्यमंत्री और ‘आप’ नेता अरविंद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) को पेशी से छूट दिलाने के लिए उनके वकील ने कुछ ऐसी ही दलीलें दी जिनमें कोई कानूनी पहलू नजर नहीं आता।  

शराब घोटाले से जुड़े मनी लॉ्ड्रिरंग केस में पूछताछ के लिए बुलाते हुए ईडी ने अब तक केजरीवाल को 8 समन भेजे लेकिन वह कभी हाजिर नहीं हुए। उन्हें 16 मार्च को पेश होने को कहा गया तो उन्होंने मजिस्ट्रेट के कोर्ट में पेशी की तारीख से पहले अदालत के समन के खिलाफ सेशन कोर्ट में याचिका दायर कर दी। हर व्यक्ति को अपने बचाव का कानूनी अधिकार है। केजरीवाल भी यही कर रहे हैं।  मुद्दा उनके वकील की दलीलों का है।  पेशी में केजरीवाल की व्यक्तिगत उपस्थिति से छूट की मांग करते हुए वकील ने अदालत को एक से एक नायाब तर्क दिए। उन्होंने न्यायाधीश को बताया कि अरविंद केजरीवाल से ज्यादा आम आदमी कौन हो सकता है! वह कभी सूट नहीं पहनते।  उनकी शर्ट भी पैंट के बाहर रहती है। 

वह जूता कभी नहीं पहनते बल्कि चप्पल पहने रहते हैं।  केजरी की सादगी का बखान कर वकील ने अदालत के ध्यान में परोक्ष रूप से यह बात लाने की कोशिश की कि ऐसे सामान्य रहन-सहन वाले व्यक्ति पर किसी घोटाले का आरोप कैसे लग सकता है? ऐसे आडंबर से दूर रहनेवाले सीधे-सरल व्यक्ति को क्यों समन भेजकर बुलाया जाए! देश के आम आदमी या कॉमन मैन का प्रतीक यदि कोई है तो केजरीवाल! पता नहीं केजरीवाल के वकील के ऐसे भावुकता भरे तर्क को अदालत ने किस रूप में लिया होगा? जब दिल्ली के उपमुख्यमंत्री रह चुके मनीष सिसोदिया 1 साल से ज्यादा समय से जेल में हैं तो केजरीवाल का आशंकित होना स्वाभाविक है। 

पूछताछ के नाम पर बुलाने के बाद गिरफ्तारी भी हो सकती है।  बार-बार समन टालकर पेशी में नहीं जाना भी महंगा पड़ सकता है। ईडी ने केजरीवाल के खिलाफ आईपीसी की धारा 174 के तहत केस चलाने की मांग की है।  इसमें लोकसेवक के आदेश पर हाजिर नहीं होने पर मामला चलाया जाता है और दोषी करार दिए जानेवाले व्यक्ति को 1 माह की जेल व 500 रु. जुर्माने की सजा हो सकती है। जहां तक कानून की बात है, वह आम आदमी और खास आदमी दोनों के लिए एक समान होता है।