मरीजों को लूटने में नामी अस्पताल आगे

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    देश के नामी निजी अस्पताल मरीजों के उपचार और जान बचाने के लिए होते हैं या उन्हें लूटने के लिए? चिकित्सा के पवित्र पेशे को निर्मम व्यवसाय बना लिया गया है. माना जा सकता है कि बड़े अस्पतालों की चेन खोलने में मोटी धनराशि लगती है परंतु चिकित्सा सेवाओं की फीस की कोई तर्कसंगत सीमा भी तो होनी चाहिए. 

    देखा गया है कि कुछ अस्पताल इतना ज्यादा चार्ज वसूल करते हैं कि उसे अदा करने में मरीज और उसके परिजनों का दिवाला ही निकल जाता है. कोरोना काल में तो निजी अस्पतालों और वहां के डाक्टरों ने मरीजों को जमकर लूटा. अपनी साख और नाम का बड़े अस्पताल बेजा फायदा उठा रहे हैं और दोनों हाथों से धन बटोर रहे हैं. मध्यम वर्गीय या गरीब मरीज को तो पूरी तरह निचोड़ लिया जाता है. मरीज धनवान है तो और भी तबियत से लूटा जाता है. 

    निष्पक्ष व्यापार नियामक के तौर पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग अपनी 4 वर्षों की जांच के बाद इस नतीजे पर पहुंचा कि देश के कुछ सबसे बड़े अस्पताल चेन प्रतिस्पर्धा कानून का उल्लंघन करते हुए अपनी इलाज सेवाओं ओर उत्पादों के लिए मनमाने ढंग से काफी अधिक रकम वसूल करते हैं और इसके लिए अपने प्रभुत्व का उपयोग करते हैं. इनमे अपोलो हॉस्पिटल, मैक्स हेल्थकेयर, सर गंगाराम हॉस्पिटल, बत्रा हॉस्पिटल एंड मेडिकल रिसर्च तथा सेंट स्टीफंस हॉस्पिटल का समावेश है. 

    सीसीआई की रिपोर्ट के अनुसार अपोलो हॉस्पिटल्स ने औसत रूप से 12,206 करोड़ रुपए और फोर्टिस हास्पिटल्स नने 4,834 करोड़ रुपए का कारोबार किया. दिल्ली एनसीआर में संचालित 12 सुपर स्पेशियलिटी अस्पतालों ने रूम रेंट, दवाओं, मेडिकल टेस्ट, मेडिकल उपकरणों तथा खाने-पीने की सामग्रियों के लिए मरीजों से अनुचित और अत्यधिक मूल्य वसूल कर अपनी पोजीशन का दुरूपयोग किया. सीसीआई प्रतिस्पर्धा कानूनों का उल्लंघन करनेवाले उद्यमों पर पिछले 3 वित्त वर्षों के औसत कारोबार का 10 प्रतिशत तक जुर्माना लगा सकता है. इन अस्पतालों से भी जुर्माना वसूला जाने के बारे में सीसीआई विचार करेगा.