हाईकोर्ट की फटकार CM-राज्यपाल का आपसी भरोसा न होना दुर्भाग्यपूर्ण

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    बॉम्बे हाईकोर्ट ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे व राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी के बीच विभिन्न मुद्दों पर मतभेद को गंभीरता से लेते हुए टिप्पणी की कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य के 2 सर्वोच्च पदाधिकारियों को एक दूसरे पर विश्वास नहीं है. मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति एमएस कर्णिक की पीठ ने कहा कि मुख्यमंत्री और राज्यपाल के लिए एक साथ बैठना और मतभेदों को दूर करना उचित होगा. शीतयुद्ध जैसे इन मतभेदों का परिणाम राज्य के कामकाज पर पड़ रहा है.

    यह सकारात्मक ढंग से आगे नहीं बढ़ रहा है व सर्वसामान्य जनता का नुकसान हो रहा है. हाईकोर्ट ने विधानसभा अध्यक्ष के चयन की प्रक्रिया को चुनौती देने वाली 2 जनहित याचिकाओं पर सुनवाई की. इनमें से एक याचिका बीजेपी विधायक गिरीश महाजन की थी. ये याचिकाएं अधिवक्ता महेश  जेठमलानी और सुभाष झा के माध्यम से दाखिल की गई थीं. अदालत ने काफी देर जिरह के बाद याचिकाओं को ठुकरा दिया, जो बीजेपी के लिए बड़ा झटका है.

    हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत दिए गए कानून के समक्ष नागरिकों की समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं करती. हाईकोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को यह साबित करने के लिए अधिक तर्क देने होंगे कि विधानसभा अध्यक्ष के चुनाव से आम जनता कैसे प्रभावित हो रही है? जनता को इस बात में सबसे कम दिलचस्पी है कि विधानसभा का अध्यक्ष कौन होगा. जाइए और जनता से पूछिए कि लोकसभा का अध्यक्ष कौन है? इस अदालत में मौजूद कितने लोग इस सवाल का जवाब जानते हैं? आपको साबित करना होगा कि यह मुद्दा जनहित से जुड़ा है.

    अध्यक्ष केवल विधायिका का एक सदस्य रहता है, इसमें जनहित से जुड़ा मामला क्या है? हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र विधान परिषद में 12 सदस्यों के नामांकन में हो रही देरी को लेकर राजभवन को हड़काया. खंडपीठ ने कहा कि हमने 8 महीने पहले राज्यपाल कोटे के 12 सदस्यों की नियुक्ति को लेकर फैसला सुनाया था लेकिन राज्यपाल ने अब तक अंतिम निर्णय नहीं लिया है. कोर्ट के लिए उचित नहीं कि वह विधायिका के सभी मामलों में दखल दे. हमें राज्यपाल के विशेषाधिकार पर कुछ भरोसा रखना चाहिए. वर्तमान में राज्यपाल व मुख्यमंत्री दोनों अपनी-अपनी जगह पर सही नहीं हैं. इस हद तक बात नहीं जानी चाहिए.