कहते थे खुद को मोदी का हनुमान बंगले से बेदखल हुए चिराग पासवान

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, खुद को प्रधानमंत्री मोदी का हनुमान कहने वाले चिराग पासवान बेघर हो गए. उनको दिल्ली के उस बंगले से बेदखल कर दिया गया जो उनके पिता दिवंगत रामविलास पासवान को आवंटित किया गया था. अब चिराग के सिर पर न तो पिता का साया रहा, न घर का छप्पर!’’

    हमने कहा, ‘‘व्यर्थ की सहानुभूति दिखाने की जरूरत नहीं है. कायदे से पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद चिराग को सरकारी बंगला खाली कर देना चाहिए था. यह कोई पुश्तैनी संपत्ति तो थी नहीं जो हक जमाए बैठे थे! रामविलास के निधन के बाद उनकी पार्टी लोजपा 2 धड़ों में बंट गई थी. चिराग और उनके चाचा पशुपतिकुमार पारस के बीच मतभेद बढ़ गए थे. बंगले को पार्टी ऑफिस बनाकर बैठकें ली जाती थीं. चिराग इसे अपने पिता के स्मारक के रूप में तब्दील करना चाहते थे. अब बंगला छिन जाने के बाद चिराग की हालत राजेंद्रकुमार-मीना कुमारी की फिल्म ‘चिराग कहां, रोशनी कहां’ के समान हो गई.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मोदी सरकार का रवैया सख्त है. उसने 3 दिनों के भीतर 3 बंगले खाली करवा लिए. अपनी पार्टी के लोगों को भी नहीं बख्शा गया. बीजेपी के सांसद रहे रामशंकर कठेरिया को 7,मोतीलाल नेहरू मार्ग बंगले से और पूर्व बीजेपी मंत्री प्रतापचंद्र सारंगी को 10,पं. गोविंदवल्ल्भ पंत मार्ग बंगले से बोरिया-बिस्तर समेत बाहर कर दिया गया. अब दिल्ली में उनकी हालत ऐसी हो गई कि आशियाना ढूंढते हैं, आबोदाना ढूंढते हैं.’’

    हमने कहा, ‘‘सरकारी बंगले पर अवैध कब्जा करने वालों के लिए यह एक सबक है. यदि चुनाव हार जाने वाले या दिवंगत सांसदों का बंगला खाली नहीं कराया जाएगा तो नए सांसद कहां रहेंगे?’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, चिराग पासवान ने बिहार विधानसभा चुनाव के समय बीजेपी का साथ देकर नीतीश कुमार की पार्टी जदयू के वोट काटने में मदद की थी लेकिन खुद चुनाव हार गए थे. बीजेपी ने पहले उन्हें यूज किया और अब तो बंगला भी हाथ से गया.’’

    हमने कहा, ‘‘चिराग के पास उनके पिता की दौलत होगी. दिल्ली से इतना दिल लगा है तो अपना खुद का बंगला बनवा लें.’’