Khalistani Movement
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नवभारत स्पेशल डेस्क: खालिस्तान की उपज पटियाला के पंजाबी विश्वविद्यालय के एक भाषण कार्यक्रम के बीच हुई। अप्रैल 1979 में पटियाला के पंजाबी विश्वविद्यालय में एक सम्मेलन हो रहा था। तीन घंटे तक लगातार चले भाषणों में सब बोर हो गए थे। संयोजक खड़े होकर धन्यवाद प्रस्ताव की तैयारी कर रहे थे और वहां मौजूद लोग भी इस उम्मीद में खड़े हो गए थे कि अब लंच का समय हो गया है।

तभी अचानक दो लोग हॉल के पीछे से दौड़ते हुए आए और मंच पर चढ़ गए। उन्होंने भारतीय संविधान के विरोध में नारे लगाए और हवा में कुछ कागज फेंके, फिर वो जितनी तेजी से दौड़ते हुए अंदर आए थे उतनी ही तेजी से दौड़ते हुए बाहर चले गए। अगले दिन द ट्रिब्यून न्यूज पेपर के संपादक और जाने-माने पत्रकार प्रेम भाटिया ने लिखा कि विश्वविद्यालय सम्मेलन में जो घटना हुई है वह अत्यंत गंभीर है। उन्होंने एक शब्द का इस्तेमाल किया वह शब्द था ‘खालिस्तान’, जो ट्रिब्यून के पाठकों ने पहले कभी नहीं सुना था।

भारत की आजादी के बाद
भारत की आजादी के बाद कुछ सालों के अंदर ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा में भारतीय बसने लगे। बसने वाले भारतीयों में सबसे बड़ी तादाद पंजाब से आने वाले सिखों की थी। इनमें से कुछ लोग तो ब्रिटिश शासन के दौरान ही इन देशों में बस चुके थे। सिख लोगों की दिक्कतें तब शुरू हुईं जब कंपनियों ने जोर देना शुरू किया कि वो अपनी दाढ़ी कटाएं और पगड़ी पहनना बंद करें।

सिख समुदाय के लोग अपनी शिकायतें भारतीय उच्चायोग के सामनें रखीं, लेकिन उच्चायोग ने मामले में हस्तक्षेप करने से मना कर दिया और सिखों को सलाह दी कि अपनी शिकायतों के समाधान के लिए स्थानीय प्रशासन से संपर्क करें। 

अलगाववाद को ऐसे मिला बढ़ावा
भारतीय खूफिया एजेंसी रॉ के पूर्व अतिरिक्त सचिव बी रमण ने सिख अलगाववाद पर  लिखा कि सिखों के मुद्दों को विदेशी सरकारों के सामने उठाने में भारत सरकार की झिझक ने ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा में रहने वाले सिखों के एक तबके में इस भावना को बढ़ावा दिया कि एक अलग देश में ही उनके धार्मिक अधिकारों की रक्षा हो सकती है।  ब्रिटेन के सिख बस ड्राइवरों और कंडक्टरों ने चरण सिंह पंछी के नेतृत्व में सिख होम रूल मूवमेंट की शुरुआत की।

खालिस्तान का राष्ट्रपति
टेरी मिलिउस्की अपनी किताब ‘ब्लड फॉर ब्लड फिफ्टी इयर्स ऑफ द ग्लोबल खालिस्तान प्रोजेक्ट’ में लिखते हैं कि 13 अक्तूबर, 1971 को जगजीत सिंह चौहान ने न्यूयॉर्क टाइम्स में एक पूरे पन्ने का इश्तेहार दिया, जिसमें स्वतंत्र सिख राज्य खालिस्तान के लिए आंदोलन शुरू करने की बात कही गई थी। यहीं नहीं उसने अपने-आप को खालिस्तान का राष्ट्रपति भी घोषित कर दिया। बाद में रॉ की जांच में पता चला कि इस विज्ञापन का खर्च वॉशिंग्टन स्थित पाकिस्तान के दूतावास ने उठाया था।

इस बीच ब्रिटेन, अमेरिका और कनाडा में सिख युवाओं ने अंतरराष्ट्रीय सिख युवा फेडेरेशन, दल खालसा और बब्बर खालसा जैसे कई संगठनों की स्थापना की। इन सभी ने जगजीत सिंह चौहान को दरकिनार कर खालिस्तान की स्थापना के लिए हिंसक आंदोलन की वकालत की

खालिस्तानियों ने भारतीय विमान को किया हाइजैक

  • 29 सितंबर, 1981 को सिख चरमपंथी एक भारतीय विमान को हाइजैक कर लाहौर ले गए।
  • इसके बाद सिख चरमपंथियों ने एक के बाद एक तीन भारतीय विमानों को हाइजैक किया।
  • 24 अगस्त, 1984 को चरमपंथियों ने पाँचवीं बार भारतीय विमान को हाइजैक किया।

खालिस्तानी चरमपंथियों ने बदली रणनीति
खालिस्तानी चरमपंथियों ने हिंसा का दायरा बढ़ाकर पंजाब से बाहर दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और भारत के दूसरे हिस्सों में ले जाया गया। शुरू में खालिस्तानी चरमपंथियों को आम लोगों का समर्थन नहीं हासिल था लेकिन 1980 के दशक में उन्हें कुछ तबकों का समर्थन भी मिलने लगा था।

स्वर्ण मंदिर को बनाया अपने गतिविधियों का केंद्र 
इस बीच, खालिस्तानी चरमपंथियों ने अपनी गतिविधियों के लिए स्वर्ण मंदिर का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया। 26 अप्रैल, 1983 को पंजाब के डीआईजी एएस अटवाल की उस समय हत्या कर दी गई जब वो स्वर्ण मंदिर से बाहर आ रहे थे।तब ज्ञानी ज़ैल सिंह देश के गृह मंत्री थे, उन्होंने खालिस्तानियों में फूट डालने के लिए जरनैल सिंह भिंडरावाले का सहारा लिया लेकिन भिंडरावाले हाथ से निकल गए और खालिस्तानियों के नेता बन बैठे। उन्होंने अपने समर्थकों के साथ स्वर्ण मंदिर में शरण ली और वहाँ से अपनी गतिविधियां चलाने लगे।

इंदिरा गांधी की हत्या
राजीव गांधी और उनके दो नजदीकी लोगों ने रॉ के दिल्ली गेस्ट हाउस में अकाली दल के नेताओं से गुप्त मुलाकात की। ये बातचीत नाकाम हो गई और अकाली नेताओं ने खालिस्तानी तत्वों को स्वर्ण मंदिर छोड़ने के लिए मनाने में अपनी असमर्थता ज़ाहिर कर दी। इसकी परिणिति पहले ऑपरेशन ब्लू स्टार और फिर इंदिरा गाँधी की हत्या में हुई।

खालिस्तान आंदोलन को जनसमर्थन मिलना हुआ बंद 

  •  1980 का दशक समाप्त होते-होते खालिस्तान आंदोलन में दरार आनी शुरू हो गई।
  • इसकी शुरुआत 10 मई से 18 मई, 1988 तक हुए ऑपरेशन ब्लैक थंडर-2 से हुई।

चरमपंथियों का लीडरशिप कमजोर
 सुरक्षा एजेंसियों ने इन संगठनों में सेंध लगानी शुरू कर दी और खुफिया अफसरों ने तीन पंथिक कमेटी के प्रमुखों डॉक्टर सोहन सिंह, गुरबचन सिंह मनोचहल और वासन सिंह जफरवाल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से संपर्क साधना शुरू कर दिया। अमेरिका में रहने वाले गंगा सिंह ढिल्लों जैसे खालिस्तानियों का असर भी जाता रहा। अलगाववादियों का नेतृत्व धीरे-धीरे कमज़ोर होने लगा। इसका परिणाम ये हुआ कि चरमपंथियों की संख्या और नई भर्ती कम होने लगी।

मार गिराए जाने लगे चरमपंथी 
रमेश इंदर सिंह लिखते हैं कि कट्टर चरमपंथियों की संख्या कभी भी 1500 से अधिक नहीं रही। बड़ी संख्या में मारे जाने और सुरक्षा एजेंसियों के दबाव के चलते उनका काडर कम होने लगा और हिंसक आंदोलन समाप्त हो गया।

  • साल 1988 में 372 चरमपंथी मारे गए।
  • साल  1989 में 703, सन 1990 में 1335,
  • साल 1991 में 2300 और
  • साल 1992 में 2110 चरमपंथियों को सुरक्षा बलों ने मारा।
  • साल 1993 तक 916 चरमपंथियों ने पुलिस के सामने हथियार डाले।

चरमपंथी गतिविधियां समाप्त हुईं
पंजाब पुलिस ने चरमपंथियों के कारनामों और वरिष्ठता के हिसाब से रास्ते से हटाए जाने वाले चरमपंथियों की सूची बनाई और उनको बेअसर करने के अभियान में लग गए।

चरमपंथियों के खिलाफ सुरक्षा बलों के अभियान के आकार का अंदा इस बात से लगाया जा सकता है कि सेना के करीब एक लाख जवानों को पंजाब में तैनात किया गया।

इसके अलावा करीब 40 हज़ार अर्धसैनिक बलों के जवानों को भी पंजाब भेजा गया। इन सबको पंजाब पुलिस की मदद करने की जिम्मेदारी दी गई। 

सैनिक ऑपरेशन का नेतृत्व पहले लेफ़्टिनेंट जनरल जीएस गरेवाल और लेफ़्टिनेंट जनरल बीकेएस छिब्बर कर रहे थे, उनके बाद जनरल वीपी मलिक ने कमान संभाली।

इस सबका परिणाम ये हुआ कि खालिस्तान आंदोलन की कमर टूटने लगी। सन 1992 में जहाँ चरमपंथियों के हाथ 1518 नागरिकों की हत्या हुई थी, 1994 आते आते ये संख्या घट कर सिर्फ 2 रह गई।

31 अगस्त, 1995 को चरमपंथियों ने पंजाब के मुख्यमंत्री बेअंत सिंह की हत्या कर दी, जो पंजाब में हिंसा की आखिरी बड़ी वारदात थी।

वर्तमान समय में कनाडा में रह रहा भारत द्वारा घोषित आतंकी खालिस्तानी गुरप्रीत सिंह पन्नू आए दिन भारत विरोधी नारे लगाता रहता है। और तरह-तरह की धमकियां देता रहता है। वह फिर से अलगाववाद की मांग को तेज करने में जुटा है।