
- नागरिकों ने मुंह फेरा, चार दिन चांदनी साबित हुआ उपक्रम
वर्धा. गत वर्ष वर्धावासियों को पानी के लिये त्राही त्राही करनी पडी थी. जल किल्लत क्या होती है इसका अनुभव लिया था.जिसके उपरांत हर कोई पानी का जमीन में भंडारण करने के लिये उपदेश दे रहा था. जल किल्लत को देखते हुये छत पर गिरनेवाला पानी कुआं या हैन्डपंप के माध्यम से जमीन में छोडने के मुहिम आरंभ हुई. कुछ सामाजिक संगठनों ने पहल कर नागरिकों पानी महत्व बतायां. तत्पश्चात पानी बचाने की मुहिम व्यापक बनी. किंतु यह उपक्रम चार दिन की चांदनी की तरह चला. अब नागरिकों ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना से मुंह फेर लिया है. जिससे जिले में इस वर्ष केवल 15 नागरिकों द्वारा ही रेन वॉटर हार्वेस्टींग करने की जानकारी सामने आयी है.
बारिश का पानी छत गिरकर नाली से बहता था. वह पानी जमीन में छोडा गया तो भूगर्भ में संचय होकर जलस्तर में वृद्धि होती है. इस उद्देश्य को सामने रखकर वैद्यकीय जनजागृति मंच के अध्यक्ष डा़ सचिन पावडे ने यंत्र विकसित किया. इस तकनीक को तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस ने वर्ष 2017 में मान्यता भी दी. साथ ही पीएम आवास योजना अंतर्गत विविध शहर व गांव में बनाए जा रहे घरकुल में रेन वॉटर हार्वेस्टींग की गई तो ग्रापं, नगरपंचायत, महानगरपालिका के टैक्स में सहूलियत देने की घोषणा की गई थी. परंतु इस योजना पर अमल नही हुआ. यह यंत्रणा किसी भी मकान के स्लैब पर लगाना आसान है. छत पर गिरनेवाला बारिश का पानी इस तकनीक की माध्यम से शुद्ध होकर कुएं व हैन्डपंप में छोडा जा सकता है.
जिससे भुगर्भ में पानी के स्तर में वृद्धि होती है. जिससे ग्रीष्म में निर्माण होनेवाली जलकिल्लत से बडी राहत मिल सकती है. परंतु इस बात को प्रशासकीय यंत्रणा ने गंभीर नही लिया है.पानी के नाम पर निधि की बर्बादी शासन, प्रशासन व स्थानीय स्वराज्य संस्था प्रतिवर्ष कर रही है. अनेक योजना केवल ग्रीष्मकाल में उपाययोजना के काम पर चलाई जाती है. इस पर प्रति वर्ष करोडों का निधी खर्च किया जाता है. केवल निधी की बर्बादी की जाती है. भविष्य का खतरा देख हो अमल – डा पावडे जलकिल्लत की समस्या को रेन वॉटर हार्वेस्टींग के माध्यम से दूर किया जा सकता है. सरकारी नियम के तहत रेन वॉटर हार्वेस्टींग आवश्यक है. परंतु इस पर अमल नही होता. इस संदर्भ में जनजागृति करना आवश्यक है. अब तक केवल 15 लोगों द्वारा ही रेन वॉटर हार्वेस्टींग किया गया है.