चुनौतियों को पार कर खाकी वर्दी पहनने का जज्बा, 6 महिला पुलिस कर्मचारियों ने रखी समाज के सामने अपनी मिसाल

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    • ठान लें तो आसानी से पूरा कर सकते है सपने

    यवतमाल: आमतौर में महिलाओं के जीवन में संघर्ष ही लिखा हुआ है। फिर भी महिलाएं अपने संघर्षमय जीवन को हंसी खुशी गुजारते हुए अपने सपनों को पूरा कर रही है। यवतमाल श्हर में भी अनेक ऐसी महिलाएं है, जिनका जीवन कठीनाईयों में गुजरा है। यवतमाल शहर में बने लोहारा के महिला पुलिस थाने में कार्यरत पुलिस थानेदार और अधिनस्थ पांच कर्मचारियों की स्ट्रगल की कहानी समाज को प्रेरणा देनेवाली साबित हो रही है।

    शिक्षक पिता से मिली प्रेरणा

    लोहारा के महिला पुलिस थाने की थानेदार के रूप में जिम्मेदारी संभालनेवाली पीआई दीपमाला भेंडे ने भी अपने जीवन में काफी स्ट्रगल किया है। वर्धा जिले के देवली तहसील में आनेवाले आगरगांव में रहनेवाले सेवानिवृत्त शिक्षक सुरेशराव भेंडे की बेटी दीपमाला ने पिता के आदर्श को अपनाते हुए अपने बलबूते कुछ अलग कर गुजरने की ठानी और पुलिस महकमें में शामिल हुई। पीआई दीपमाला भेंडे बताती है कि उनके माता पिता ने हमेशा चारों बेटियों की पढाई लिखाई पर ध्यान दिया। बेटियां अपने पैरों पर खडी रहकर अपना नाम बनाए यहीं उनके पिता की अपेक्षा थी। माता पिता की अपेक्षाओं पर चारों बहने खरी उतरी है। साल 2007 में उन्होंने वर्धा में एमपीएससी की परीक्षा दी और पहले प्रयास में ही परीक्षा पास की।

    इसके बाद 1 सितंबर 2009 में पीएसआई के रूप में पुलिस महकमे में जिम्मेदारी संभाली। नागपुर शहर, चंद्रपुर के वरोरा, एसआईडी यवतमाल, यवतमाल ग्रामीण, दारव्हा पुलिस थाना, अकोला प्रशिक्षण केंद्र, सायबर सेल यवतमाल की जिम्मेदारी संभालते हुए अब वे लोहोरा महिला पुलिस थाने की जिम्मेदारी संभाल रही है। शिक्षक पति अमित ज्ञानेशवर भोयर की हादसे में मृत्यु होने के बाद वे अपने पांच साले के बेटे को साथ में लेकर पुलिसियां ड्युटी निभा रही है। आज भी उनका जीवन संघर्षमय बना हुआ है। फिर भी अपने जीवन में आनेवाली प्रत्येक चुनौतियों का वे डटकर सामना कर रही है।

    सब्जी विक्रेता की बेटी को था खाकी का जुनून

    महिला पुलिस थाने में पुलिस नायक के रूप में कार्यरत रजनीगंधा गेडाम का स्ट्रगल भी समाज के लिए प्रेरणादायी है। वणी शहर में सब्जी विक्रेता माता पिता के सपनों को पूरा करने के लिए रजनीगंधा गेडाम ने सब्जियां बेचने के साथ ही पढाई भी जारी रखी। माता पिता ने भी साल 2009 में रजनीगंधा की शादी सब्जी विक्रेता साहबराव भिवगडे से करा दी। लेकिन रजनीगंधा पर खाकी का जुनून इस कदर परवान चढा था कि यह जुनून पूरा करने के लिए उन्होंने पूरा प्रयास किया।

    रजनीगंधा को उनके पति साहबराव भिवगडे ने पुलिस बनने के लिए काफी सहयोग किया, रजनीगंधा का जुनून ना टूटे इसके लिए मेहनत की। इतना ही नहीं तो रजनीगंधा ने पुलिस बनने का सपना पूरा करने के लिए जब उनकी बेटी एक साल की थी तब अपनी बेटी को अपने मां के पास रखा और पुलिस महकमे का प्रशिक्षण पूरा किया। बचपन से खाकी वर्दी पहनने का जो सपना था उस सपने को सब्जी विक्रेता पिता की बेटी और सब्जी विक्रेता पति की पत्नी ने पूरा करते हुए समाज के सामने आदर्श पेश किया है।

    गरीब कबड्डी खिलाडी ने छूआ आसमान

    कहते है कि सपना उनका ही पूरा होता है जो अपने सपने को पूरा करने के लिए प्रत्येक चुनौतियों का डटकर मुकाबला करते है। लोहारा पुलिस थाने में सहायक पुलिस उपनिरीक्षक पद पर कार्यरत मेघा ढवले का जीवन काफी संघर्षमय रहा। घाटंजी शहर में अपने दादा दादी के पास रहकर बीएक सेकंड ईयर तक की पढाई पूर्ण की। कबड्डी खेलना मेघा ढवले को काफी पसंद है और इसी कबड्डी के खेल ने उनके जीवन में नया बदलाव लाया है।

    अमरावती में जिलास्तरीय और दिग्रस में तहसीलस्तरीय कबड्डी स्पर्धा में अपनी प्रतिस्पर्धकों को पछाडते हुए स्पर्धाएं जीतने का काम किया। इसके बाद कबड्डी स्पर्धा ने मेघा ढवले की किस्मत को बदलने का काम किया। कबड्डी के बेस पर ही पुलिस महकमें में मेघा 21 दिसंबर 1991 में शामिल हुई। वणी में कांस्टेबल पद पर कार्यरत होने के बाद पुलिस मुख्यालय, यवतमाल ग्रामीण, यवतमाल शहर, अवधूतवाडी और अब लोहारा थाने में सहायक पुलिस उपनिरीक्षक की जिम्मेदारी वे संभाल रही है।

    किसान की बेटी ने साल 2008 में सपना किया पूरा

    खेतों में दिनरात मेहनत कर फसलों की उगाई करनेवाले किसान अपने परिवार का पेट पालता है और बच्चों को पढाता भी है। नेर तहसील के छोटे से गांव बानगांव में रहनेवाली जयश्री हिरासिंह चव्हाण ने पुलिस नायक बनकर अपने परिवार की जिम्मेदारी को कंधे पर उठाया है। साल 2008 में जयश्री का पुलिस भर्ती में चयन हुआ। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण बात यह रही कि जयश्री के किसान पिता का कोरोना महामारी से देहांत हो गया और पिता की मृत्यु के बाद अपने मायके की जिम्मेदारी को संभालना शुरू किया।

    अन्य युवतियों को देखकर पुलिस बनने का लिया संकल्प

    पुलिस नाईक सरिता अधापुरे की सफलता की कहानी भी काफी हटके है। शहर के पुलिस मुख्यालय के नजदीक सरिता अधापुरे की मां का घर है। सरिता जब कक्षा पांचवी में पढती थीं तभी वे यहां के एक चिकित्सक के घर पर छोटे बच्चों की देखभाल करने का काम करती थीं। यहीं काम करते समय सरिता ने कक्षा बारहवीं तक पढाई पूर्ण की।

    इस बीच घर से नजदीक पुलिस मुख्यालय के ग्राउंड पर रोजाना सुबह और शाम के समय दौड लगाते देख सरिता ने भी पुलिस बनने का संकल्प लिया और संकल्प को पूरा करने में जुट गई। साल 2008 में भर्ती दी और साल 2009 में पुलिस सेवा में वे शामिल हुई। इस दौरान वे बीए सेकंड ईयर की परीक्षा भी नहीं दे पायी। सरिता अधापुरे ने पुलिस मुख्यालय, ट्राफीक ऑफीस, सिटी पुलिस और अब लोहारा थाने में सेवा देना शुरू रखा है।

    पुलिस बनने की चाहत

    महागांव तहसील के मुकूटगुंज में रहनेवाली वर्षा जगन्नाथ पुंड के माता पिता पेशे से शिक्षक थे। माता पिता को उम्मीद थी कि उनकी बेटी बीएड की पढाई पूर्ण कर शिक्षिका बने। लेकिन वर्षा पुंड को तो खाकी वर्दी पहनने की चाहत थीं। पुलिस बनने के लिए वर्षा पुंड में जीतोड मेहनत की। आखिरकार उनकी यह मेहनत रंग लायी। साल 2008 में हुई पुलिस भर्ती के दौरान वर्षा का पुलिस विभाग में चयन हुआ और उनकी खुशी का ठीकाना नहीं रहा। वर्षा पुंड लोहारा पुलिस थाने में पुलिस नायक के रूप में कार्यरत है और फिलहाल वह पीएसआई की तैयारी कर रही है।