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लखनऊ: उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव की घोषणा के बाद ही सियासी गर्मी अपने चरम पर है। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सियासी दलों में राजनीतिक दांवपेंच में बीच टिकटों का बंटवारा किया जा चुका है और अब प्रचार का दौर जारी है। निकाय चुनाव के द्वितीय चरण के नामांकन की तिथि सोमवार को समाप्त हो गई। सोमवार को ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पश्चिमी यूपी के सहारनपुर से इस चुनाव के प्रचार का शंखनाद भी किए। सूबे में मुख्य मुकाबला भाजपा और सपा में देखा जा रहा है। साथ ही इन दोनों दलों में दावेदारों की संख्या स्वाभाविक तौर पर अधिक होने के कारण राजनीतिक दुश्वारियां भी बहुत हैं।  निकाय चुनाव के टिकट बंटवारे के साथ ही दावेदारों में नाराजगी भी काफी देखी जा रही है।

समाजवादी पार्टी अपने घर में ही संघर्ष करती दिख रही

नाराजगी के इस दंश से कोई भी पार्टी वैसे तो अछूती नहीं है लेकिन समाजवादी पार्टी अपने घर में ही संघर्ष करती दिख रही है और उसको फिलहाल अपने ही लोगों से चुनावी मैदान में हाथ आजमाना पड़ रहा है। वहीँ भाजपा भी इससे अछूती नहीं है. खुद प्रयागराज से टिकट न मिलने से भाजपा के कैबिनेट मंत्री नंदी का दर्द सामने या तो आगरा आदि से दावेदारों की नोकझोंक की खबरें सुर्खियाँ बनीं। पिछड़ों-दलितों के संतुलन के साथ परम्परागत मतों को टिकट बंटवारे में साध रही भाजपा ने रविवार को समाजवादी पार्टी की शाहजहांपुर के कुर्मी कार्ड को तोड़ते हुए उसके प्रत्याशी अर्चना वर्मा को पार्टी में शामिल करा कर टिकट दे दिया। बताते चलें इस क्षेत्र में मुस्लिम, यादव, कुर्मी और गुप्ता समाज की आबादी काफी अधिक है। ऐसे में भाजपा ने सपा को निकाय चुनाव में यह बड़ा झटका दिया है। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए सपा मुखिया अखिलेश यादव का कहना था कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने वालों का दिवालियापन देखिए कि उनके पास चुनाव लड़ाने के लिए प्रत्याशी तक नहीं है। इसका मतलब या तो भाजपा के पास कोई कार्यकर्ता नहीं है या फिर भाजपा में अपने कार्यकर्ताओं को टिकट न देकर अपमान करने की परंपरा है। भाजपा अंदरूनी लड़ाई में उलझी है।

अपने ही घर में अपनों से ही संघर्ष में सपा

समाजवादी पार्टी अपने गढ़ में ही संघर्ष करती दिख रही है। पार्टी से टिकट के कई दावेदार टिकट न मिलने की दशा में बागी बनकर सपा के उम्मीदवारों के सामने ताल ठोकते दिख रहे हैं। हालांकि पार्टी की तरफ से उनके मान मनोबल की भी कोशिश जारी है। खबरों की मानें तो सपा के गढ़ इटावा, भरथना, शिवपाल यादव के क्षेत्र जसवंतनगर, लखना, बकेवर, औरैया, कन्नौज, मैनपुरी, आदि में टिकट ना पाने से नाराज सपा के लोग ही पार्टी के प्रत्याशियों के सामने ताल ठोकते नजर आ रहे हैं।

भाजपा का पिछड़ों दलितों के संतुलन के साथ ब्राह्मण वैश्य वोटरों को साधने की कवायद

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने 16 में से 11 महापौर के टिकट काटकर 13 नगर निगम में नए चेहरों को मौका दे दिया है। परिवारवाद से दूर कार्यकर्ताओं को मौका देने की घोषणा को अमल में लाते हुए हुए पार्टी ने नगर पालिका परिषद अध्यक्ष और नगर निगम महापौर प्रत्याशी पद पर किसी भी सांसद, विधायक और मंत्री के परिजनों को प्रत्याशी नहीं बनाया है। साथ ही बीजेपी ने महापौर के चुनाव में 05 ब्राम्हण, 05 वैश्य, 02 कुर्मी, 01 कोरी, 01 धोबी, 01 तेली, 01 कलाल और 01 कायस्थ समाज के व्यक्ति को टिकट देकर अपने मूल वोटरों को साधने का प्रयास किया है। साथ ही पिछड़े वर्ग में कुर्मी और तेली समाज को जो कि भाजपा के बड़े वोट बैंक माने जाते रहे हैं टिकट देकर पिछड़ों और दलितों के बीच में संतुलन स्थापित करने का काम किया है।