चुनावी वादों का चक्कर भूलभुलैया में उलझा वोटर

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज(Nishanebaaz), मोहब्बत और चुनाव में बहुत से वादे किए जाते हैं पर निभाए नहीं जाते. हमें ऐसी वादाखिलाफी बिल्कुल पसंद नहीं है. जो भी उम्मीदवार वोट मांगने आए, उससे कहना चाहिए- जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा. अभी बिहार में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं और मध्यप्रदेश में भी 28 सीटों पर उपचुनाव हैं. जनता लाचार है जबकि वादों की भरमार है.’’ हमने कहा, ‘‘जब कोई पार्टी चुनावी वादा करती है और मतदाता उस पर विश्वास करते हैं तो आप बीच में क्यों दखलंदाजी करते हैं? देखिए कितना अच्छा वादा है- तुम मुझे वोट दो, मैं तुम्हें वैक्सीन दूंगा! मुफ्त की कोरोना वैक्सीन का वादा कितना लुभावना और सामयिक है.

नीतीश कुमार की नीतियों की तारीफ कीजिए.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, इतनी वैक्सीन आएगी कहां से कि हर वोटर को फ्री में लगा दी जाए! इसके अलावा केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कह रखा है कि जब कोरोना की वैक्सीन निकलेगी तो उस पर सबसे पहला हक हेल्थ वर्कर्स का होगा. डाक्टर, नर्स, अटेंडेंट को पहले यह टीका लगाया जाएगा जो कि कोरोना पेशेंट का इलाज करने में ज्यादा जोखिम उठाते हैं.’’ हमने कहा, ‘‘चुनावी वादों को बगैर किसी शंका या संदेह के स्वीकार कीजिए. इस वादे से उस पार्टी की साख जुड़ी रहती है. पार्टी या गठबंधन का कमिटमेंट रहता है कि कसमे-वादे निभाएंगे हम!’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, चुनावी वादे कागजी फूलों के समान होते हैं.

आपको शेर याद होगा- हकीकत छुप नहीं सकती कभी झूठे उसूलों से कि खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज के फूलों से.’’ हमने कहा, ‘‘कागज के फूल पर इत्र छिड़क दीजिए और फिर देखिए कि खुशबू आती है या नहीं! हर चुनाव वादों का मौसम लेकर आता है. गरीबी हटाओ का कांग्रेसी वादा आपको याद होगा. मोदी सरकार का बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ स्लोगन भी कितना बढ़िया है. किसानों को मुफ्त बिजली देने या सत्ता में आने पर बिजली बिल माफ करने का वादा भी आम तौर पर किया जाता है. तमिलनाडु में तो एक समय कलर टीवी देने का वादा किया गया था. चुनावी वादे भारत में ही नहीं, अमेरिका में भी किए जाते हैं. 3 नवंबर को ट्रम्प और उनके प्रतिद्वंद्वी जो बाइडेन की किस्मत का फैसला वहां के मतदाता करेंगे. जहां तक चुनावी वादों के खोखलेपन का सवाल है- ये पब्लिक है, सब जानती है!’’