विपक्ष दिखा रहा है जोर, लोकतंत्र के मंदिर में बर्दाश्त नहीं है शोर

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समान शायद ही किसी नेता की संसद के प्रति गहन आस्था होगी. जब वे 2014 में पहली बार संसद के लिए निर्वाचित हुए तो उन्होंने संसद भवन की चौखट पर माथा टेक कर अपनी श्रद्धा व्यक्त की. यह दृश्य अभिभूत कर देनेवाला था क्योंकि इसके पहले किसी भी प्रधानमंत्री ने संसद के प्रति इतना सम्मान नहीं दर्शाया था. इसके अलावा मोदी ने संसद  को लोकतंत्र का मंदिर भी कहा था. अब आप हमें यह बताइए कि संसद रूपी मंदिर में बिना किसी चर्चा के सिर्फ 4 मिनट में बिल कैसे पास हो जाते हैं? कृषि कानूनों की वापसी इसी प्रकार हुई. इसके पहले जासूसी से संबंधित पेगासस मामले में भी सरकार ने संसद में चर्चा नहीं होने दी थी.’’

    हमने कहा, ‘‘आपको इतना समझना चाहिए कि मंदिर में सिर्फ प्रार्थना और आरती की जाती है. जिन्हें चर्चा या बहस करनी है वे बाहर जाकर कर सकते हैं, अंदर नहीं! मंदिर सिर्फ भक्तजनों के लिए होता है, शोर गुल मचाने वाले श्रद्धाहीनों के लिए नहीं! प्रधान मंत्री मानते हैं कि लोकतंत्र के मंदिर में सिर्फ वही होना चाहिए जो मन की बात के अनुकूल हो. जब बीजेपी का शानदार बैंड बज रहा है तो विपक्ष बेवक्त की शहनाई क्यों बजाना चाहता है? जिन 12 राज्यसभा सदस्यों को मानसून सत्र में किए गए हंगामे के कारण शीत सत्र में निलंबित किया गया उनसे सभापति वेंकैया नायडू ने कहा है कि वे अपनी करनी पर पश्चाताप व्यक्त करें माफी मांगे तो उनका निलंबन रद्द करने पर विचार किया जा सकता है.

    पड़ोसी ने कहा, सभापति को संसदरूपी मंदिर का प्रमुख पुजारी मानना चाहिए. यदि वे कहते हैं कि पाप के लिए पश्चाताप करो तो उनकी बात मानने में हर्ज ही क्या है? अब यह बताइए कि लोकतंत्र के मंदिर रूपी संसद में प्रधान मंत्री मोदी इतना कम क्यों आते हैं? 2014 से 2019 तक उन्होंने सिर्फ 22 बार संसद को संबोधित किया जबकि अटल बिहारी वाजपेयी ने पीएम रहते 77 बार संसद में भाषण दिया था.’’ हमने कहा, ‘‘मोदी दूरदर्शन और आकाशवाणी पर मन की बात कहकर कोटा पूरा कर लेते हैं. इतना काफी है.’’